92 साल की उम्र में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन हो गया है. मनमोहन सिंह के निधन पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति ने दुख जताते हुए इसे देश के लिए बड़ा नुकसान बताया है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की कमान दो बार संभाली. एक बार उन्होंने 2004 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और दूसरी बार 2009 में वो प्रधानमंत्री बने. जवाहरलाल नेहरु और इंदिरा गांधी के बाद वो तीसरे ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए.
डॉ. मनमोहन सिंह उनके बतौर वित्त मंत्री के कार्यकाल के लिए भी याद किया जाता है. वह देश के सबसे सफल वित्त मंत्रियों में से एक थे. साल 1991 में वह उस समय देश के वित्त मंत्री बने, जब भारत गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था. ऐसे में, डॉ सिंह की लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन (LPG) की नीतियों से अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव आया.
'एक्सीडेंटल' पीएम ही नहीं वित्त मंत्री भी
अक्सर डॉ. मनमोहन सिंह को 'एक्सीडेंटल' प्राइम मिनिस्टर के तौर पर याद किया जाता है जबकि बहुत से लोग कहते हैं कि उनके लिए फाइनेंस मिनिस्टर बनना भी 'एक्सीडेंटल' ही था. मनमोहन सिंह ने योजना आयोग के सदस्य और उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर और यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन के प्रमुख के तौर पर अपनी सेवाएं दीं. साल 1991 में नरसिम्हा राव ने उन्हें देश का वित्त मंत्री बनाया. एके भट्टाचार्य की किताब India’s Finance Ministers: Stumbling into Reforms (1977 to 1998) में उनके वित्त मंत्री बनने के एक किस्से का जिक्र है.
बताया जाता है कि पीवी नरसिम्हा राव ने अपने तत्कालीन सलाहकार पीसी एलेक्ज़ेंडर से कहा कि उन्हें वित्त मंत्री के रूप में ऐसा शख्स चाहिए जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छी धाक हो. एलेक्ज़ेंडर ने आईजी पटेल का नाम लिया जो पहले रिज़र्व बैंक के गवर्नर रह चुके थे. हालांकि, पटेल ने इस प्रस्ताव को मना कर दिया क्योंकि वे उस समय दिल्ली में रहने के लिए तैयार नहीं थे. फिर एलेक्ज़ेंडर ने मनमोहन सिंह का नाम सुझाया. शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले एलेक्ज़ेंडर ने मनमोहन सिंह को फ़ोन किया. उस समय मनमोहन सो रहे थे और उन्हें जगाकर कहा गया कि वह भारत के अगले वित्त मंत्री होंगे.
मनमोहन सिंह को इस पर विश्वास ही नहीं हुआ. और वह सामान्य तौर पर यूजीसी के दफ्तर चले गए. यहां खुद नरसिम्हा राव ने उन्हें फोन किया और कहा कि 12 बजे शपथ ग्रहण समारोह है और आपको एक घंटे पहले आना है. तब मनमोहन सिंह शपथ के लिए पहुंचें. इस तरह से उनका वित्त मंत्री बनना भी एक्सीडेंटल ही था.
मशहूर है ठंडे पानी से नहाने का किस्सा
बताया जाता है कि मनमोहन सिंह बचपन से ही शर्मीले थे. पंजाब यूनिवर्सिटी के बाद इंग्लैंड के कैंब्रिज में पढ़ाई के दौरान भी उनका यही रूप था. वहां रहने के दौरान उन्होंने पूरा समय ठंडे पानी से नहाकर बिताया था. दरअसल, नहाते वक्त लंबे बालों के चलते वह झिझक महसूस करते थे. इसलिए वह सभी के उठने से पहले सुबह 4 बजे नहाते थे ताकि उनके लंबे बाल और कोई ना देखे. लेकिन तब तक गर्म पानी नहीं आता था और उन्हें ठंडे पानी से नहाना पड़ता था. इंग्लैंड की सर्दी में ठंडे पानी से नहाना अपने आप में साहस का काम था.
उर्दू देखकर बोलते थे हिंदी
मनमोहन सिंह के बारे में एक दिलचस्प तथ्य ये है भी है कि वह हिंदी बोल तो लेते थे, लेकिन पढ़ने में बहुत ज्यादा अच्छे नहीं थे. हिंदी बोलने के लिए उन्हें स्क्रिप्ट उर्दू में लिखकर दी जाती थी क्योंकि वह उर्दू पढ़ने में सहज थे और भाषण देने से पहले वह बाकायदा उसकी प्रैक्टिस करते थे.
नहीं आता था अंडे तक उबालना
मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने उनकी जीवनी, 'स्ट्रिक्टली पर्सनल-मनमोहन एंड गुरशरन' में उनकी शख़्सियत के अलग-अलग पहलुओं पर लिखा. उन्होंने लिखा कि उनके पिता को अंडे तक उबालना नहीं आता था. न ही वह टीवी ऑन करना जानते थे. उन्होंने यह भी लिखा कि उनका पूरा परिवार दो महीने में एक बार बाहर खाने जाता था. उनके परिवार को कमला नगर की कृष्णा स्वीट्स में दक्षिण भारतीय खाना या दरियागंज के तंदूर में मुग़लाई खाना पसंद था. चायनीज़ खाने के लिए वह मालचा रोड पर 'फ़ूजिया' रेस्तरां में जाते थे और चाट के लिए बंगाली मार्केट.
परिवार नहीं बैठता था सरकारी गाड़ी में
दमन सिंह ने यह भी लिखा कि मनमोहन सिंह अपनी सरकारी गाड़ी में परिवार को बैठने की इजाजत नहीं थी. मनमोहन सिंह कभी अपने परिवार, यहां तक कि बच्चों को भी सरकारी गाड़ी इस्तेमाल नहीं करने देते थे. अगर वे किसी जगह पर जा रहे हो और वह जगह उनके रास्ते में पड़ रही हो, तब भी वो अपने परिवार को अपनी सरकारी गाड़ी पर नहीं बैठने देते थे.