मिट्टी के बिना हो सकेगी अब खेती, बारामती के कृषि वैज्ञानिकों ने किया सफल प्रयोग, ली नीदरलैंड तकनीक की मदद 

पिछले एक-दो सालों में, ज्यादा से ज्यादा किसानों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया है. भारत सरकार ने अभी तक इसके लिए सब्सिडी शुरू करने का विचार कर रही है. हालांकि अभी सब्सिडी शुरू नहीं हुई है. इस तकनीक के लिए किसानों को सब्सिडी देने के लिए सरकारी दिशा-निर्देश बना लिए हैं.

Farming can be done without soil
gnttv.com
  • बारामती,
  • 17 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:53 PM IST
  • नीदरलैंड तकनीक की ली मदद 
  • मिट्टी के बिना होगी खेती

बढ़ते शहरीकरण के कारण जमीन का बंटवारा हो रहा है. जमीन कम होती जा रही है. और जो जमीन है उसकी उत्पादकता कम हो गई है. इसलिए किसान परेशान है. पर अब किसान भाईयों को परेशान होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि महाराष्ट्र के बारामती के कृषि विज्ञान केंद्र ने इस पर समाधान ढूंढ लिया है. बारामती कृषी विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने नीदरलैंड तकनीक के मदद से मिट्टी के बिना खेती करने का आसान तरीका लाया है. इस तकनीक की मदद से किसान बिना मिट्टी के और कम पानी में फसलों की ज्यादा उपज ले सकता है.

कृषि विज्ञान केंद्र में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के आठ अलग-अलग प्रकार किसानों को देखने मिल रहे हैं. पहला प्रकार है ए फ्रेम, एनएफटी, फ्लैट बेड, एग्रोनॉमिक्स, डीडब्ल्यूसी जिसे हम डीप वॉटर कल्चर कहते हैं. इसके अलावा इनडोर ग्रो लाइट और डच बकेट जैसी विभिन्न प्रणालियां दिखाई गई हैं. इस तकनीक में किसान पानी में या कोकोपीट (नारियल का भूसा) मिट्टी की खेती के विभिन्न तरीके अपना सकते हैं. जहां-जहां जमीन है जिन भूमियों पर उत्पादन नहीं होता है, जैसे कि पथरीली जमीन है वहां इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह तकनीक खासकर शहरों में ज्यादा इस्तेमाल की जा सकती है, जहां जमीन कम है और घरों के आंगन में इस तरह की खेती करना बहुत ही आसान हो सकता है.

फसल का जमीन से कोई सम्बंध नहीं 
इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक यशवंत जगदाले ने किसान तक से बात करते हुए कहा कि, एयरोपोनिक और हाइड्रोपोनिक तकनीक यानी फसल का जमीन से कोई संबंध नहीं आता है. जिसका सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह है कि मिट्टी से होने वाली बीमारियां मिट्टी के संपर्क में नहीं आती हैं, इसलिए फसलों में रोग होने की संभावना नहीं रहती है. नियमित तरीकों की तुलना में फसल उत्पादन में 30 से 35 फीसदी की वृद्धि होती है. यह तकनीक सब्जी की श्रेणी में अधिक इस्तेमाल की जा रही है. सब्जियां और फल की श्रेणी में सलाद पत्ता, पालक सब्जी है, फल वाली सब्जी में खीरा, शिमला मिर्च लगाते हैं.

अब, पिछले एक-दो सालों में, ज्यादा से ज्यादा किसानों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया है. भारत सरकार ने अभी तक इसके लिए सब्सिडी शुरू करने का विचार कर रही है. हालांकि अभी सब्सिडी शुरू नहीं हुई है. इस तकनीक के लिए किसानों को सब्सिडी देने के लिए सरकारी दिशा-निर्देश बना लिए हैं. बारामती कृषि विज्ञान केंद्र में इस तकनीक की आठ अलग-अलग प्रणालियां बना ली हैं.

यह प्रत्येक प्रणाली की लागत और कितना क्षेत्र कवर करती है, तदनुसार, हमारा अनुमान है कि औसत लागत कम से कम 1800 रुपये प्रति मीटर होगी, तथा अधिकतम लागत 2500 रु होगी. नीदरलैंड और इजराइल तकनीक की मदद से मिट्टी के बिना खेती का प्रयोग सफल रहा है. खास बात यह है कि जो स्ट्रॉबेरी शीतकालीन वातावरण में उगाई जाती है. वह देश के किसी भी कोने में इस तकनीक की मदद से किसी भी ऋतु में उगाई जा रही है. इस नियंत्रित वातावरण में हम साल भर स्ट्रॉबेरी खा सकते हैं स्ट्रॉबेरी का आकार मिठास मिट्टी से भी ज्यादा होती है.

क्या है हाइड्रोपोनिक फसल उत्पादन? 
हाइड्रोपोनिक फसल उत्पादन विधियों में, फसल उर्वरक को पुनः चक्रित करते हैं, जिसका अर्थ है कि हम उस पानी को चक्रित करते हैं, जिसका उपयोग पौधे विकास के लिए करते हैं. इसका मतलब है कि उर्वरक की कम से कम 50 फीसदी बचत हो सकती है, और इसलिए यह तकनीक उपयुक्त है. जमीन का संपर्क न होने के कारण किसानों को सेंद्रिय तरीके से उपज मिलेगी और फायदा भी दोगुना होगा.

(वसंत प्रह्लाद मोरे की रिपोर्ट)
 

 

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