Happy Birthday Firoz Gandhi: फिरोज गांधी ने कैसे जीता था इंदिरा का दिल, पंडित नेहरू के न चाहते हुए भी की थी शादी, जानिए दोनों की प्रेम कहानी

Love Story of Firoz Gandhi And Indira Gandhi: फिरोज और इंदिरा गांधी के प्रेम-प्रसंग की जानकारी कमला नेहरू को हुई तो वह बहुत गुस्सा हुईं. दोनों के अलग-अलग धर्मों के होने की वजह से भारतीय राजनीति में खलबली मचने का डर पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी सताने लगा था.  

फिरोज और इंदिरा गांधी (फाइल फोटो)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 12 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:25 AM IST
  • फिरोज गांधी का जन्म 12 सितंबर 1912 को हुआ था
  • 1942 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार इंदिरा से की थी शादी 

कांग्रेस के पूर्व सांसद और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी का जन्म आज ही के दिन 12 सितंबर 1912 को हुआ था. फिरोज गांधी एक राजनेता के साथ पत्रकार भी थे. आइए आज जानते हैं फिरोज ने कैसे इंदिरा गांधी का दिल जीता था और पंडित जवाहरलाल नेहरू के न चाहते हुए भी कैसे शादी की थी. 

ऐसे इलाहाबाद आए फिरोज गांधी
पांच भाई बहनों में सबसे बड़े फिरोज गांधी का असली नाम फिरोज घांदी था. उनके पिता जहांगीर घांदी गुजरात के भरूच के रहने वाले एक पारसी थे (हालांकि कुछ इतिहासकार उनके मुस्लिम होने का दावा भी करते हैं). पिता की मौत के बाद फिरोज अपनी मां रत्तीमई फरदून के साथ भरूच से पहले मुंबई और फिर साल 1915 में इलाहाबाद आकर रहने लगे. बताया जाता है कि यहां उनकी मौसी डॉ. शीरीन कमिसएरिएट रहती थीं, जो सिटी लेडी डफरिन हॉस्पिटल में एक प्रख्यात सर्जन थीं.

इंदिरा गांधी से हुई मुलाकात
इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने विद्या मंदिर हाईस्कूल में एडमिशन लिया और यहां से स्कूली शिक्षा पूरी कर इविंग क्रिश्चियन कालेज से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई के साथ साथ उन्होंने आजादी के आंदोलन में भी भाग लेना शुरू कर दिया. इलाहाबाद उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों का केंद्र था. फिरोज गांधी इसके प्रभाव में आए और नेहरू परिवार से भी उनका संपर्क हुआ. 

उन्होंने 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार में भाग लिया और 1930- 1932 के आंदोलन में जेल की सजा काटी. 1930 में फिरोज की मुलाकात इंदिरा गांधी उर्फ इंदिरा प्रियदर्शनी से हुई. इसके बाद फिरोज गांधी 1935 में आगे के अध्ययन के लिए लंदन गए और उन्होंने 'स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स' से अंतरराष्ट्रीय कानून में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की.

लवस्टोरी रही बहुत चर्चित
इंदिरा ने अपने पिता जवाहरलाल नेहरू की मर्जी के खिलाफ फिरोज गांधी से शादी की थी. दोनों की लवस्टोरी बहुत चर्चित रही. कहते हैं कि आजादी की लड़ाई में इंदिरा की मां कमला नेहरू एक कॉलेज के सामने धरना देने के दौरान बेहोश हो गई थीं. उस समय फिरोज गांधी ने उनकी बहुत देखभाल की थी. कमला नेहरू का हालचाल जानने के लिए फिरोज अक्सर उनके घर जाते थे. इसी दौरान उनके और इंदिरा गांधी के बीच नजदीकियां बढ़ीं. 

फिरोज जब इलाहाबाद रहने लगे उस दौरान वो आनंद भवन जाते रहते थे. 1933 में 21 साल के फिरोज गांधी ने 16 साल की इंदिरा के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. लेकिन इंदिरा ने इसे खारिज कर दिया. बात आई गई हो गई और फिरोज फिर नेहरू परिवार के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में जुट गए. इसी बीच एक बार फिर इंदिरा और फिरोज की नजदीकियां बढ़ी और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. लंदन में पढ़ाई के दौरान भी इंदिरा और फिरोज की मुलाकात हुई थी. वहां भी दोनों अक्सर मिला करते थे.

महात्मा गांधी ने दिया था सरनेम
कुछ समय बाद जब फिरोज और इंदिरा के प्रेम-प्रसंग की जानकारी कमला नेहरू को हुई तो वे बहुत गुस्सा हुईं. दोनों के अलग-अलग धर्मों के होने की वजह से भारतीय राजनीति में खलबली मचने का डर जवाहरलाल नेहरू को भी सताने लगा था. जवाहर लाल नेहरू फिरोज और इंदिरा की शादी के खिलाफ थे. उन्होंने यह बात महात्मा गांधी से बताई और सलाह मांगी. महात्मा गांधी ने फिरोज को गांधी सरनेम की उपाधि दे दी और इस तरह फिरोज खान, फिरोज गांधी बन गए और इंदिरा नेहरू अब इंदिरा गांधी बन गईं. फिरोज और इंदिरा की शादी 1942 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई.

फिरोज गांधी का कैसा था राजनीति सफर
अगस्त, 1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' में फिरोज गांधी कुछ समय तक भूमिगत रहने के बाद गिरफ्तार कर लिए गए. जेल से छूटने के बाद फिरोज फिर आंदोलन में जुट गए. इसी बीच इंदिरा ने 1944 में राजीव और 1946 में संजय गांधी को जन्म दिया. इसके बाद फिरोज गांधी 1946 में लखनऊ के दैनिक पत्र 'नेशनल हेराल्ड' के प्रबन्ध निर्देशक का पद संभाला.

साल 1952 के प्रथम आम चुनाव में वे लोकसभा के सदस्य रायबरेली सीट से चुने गए. इसके बाद उन्होंने लखनऊ छोड़ दिया. कुछ साल वे और इंदिरा, नेहरू जी के साथ रहे. इंदिरा जी का अधिकांश समय प्रधानमंत्री पिता की देख-रेख में बीतता था. 1956 में फिरोज गांधी ने प्रधानमंत्री निवास में रहना छोड़ दिया और वे सांसद के साधारण मकान में अकेले ही रहने लगे.

 फिरोज गांधी और जवाहर लाल नेहरू के रिश्तों में आई खटास
1952 में रायबरेली से पहले निर्वाचित सांसद चुने जाने के साथ ही फिरोज गांधी और जवाहर लाल नेहरू के रिश्तों में खटास आनी शुरू हो गई थी. कहा जाता है कि फिरोज गांधी राजनीति में बहुत ईमानदार और सक्रियता से काम करते थे इसलिए वह सरकर की आलोचना करने में पीछे नहीं रहते थे. इसकी वजह से उनके ससुर और देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी असहज होना पड़ता था. इसको लेकर दोनों के बीच संबंध कई बार तल्‍ख भी रहे लेकिन फिरोज गांधी का रवैया लगातार सरकार के प्रति आलोचनात्मक बना रहा. 

सरकार का पहला घोटाला सामने लाने का श्रेय
कहा जाता है कि फिरोज नेहरू सरकार की आर्थिक नीतियों और बड़े उद्योगपतियों के प्रति झुकाव को लेकर नाराज रहते थे. कहा जाता है कि आजाद भारत में सरकार का पहला घोटाला सामने लाने का श्रेय भी फिरोज गांधी को जाता है जिन्होंने दिसंबर 1955 में एक बैंक और इंश्योरेंश कंपनी के चेयरमैन राम किशन डालमिया के फ्रॉड को उजागर किया. जिन्होंने बैंकों के पैसे का उपयोग निजी कंपनियों में निवेश के लिए किया था. 

इंदिरा गांधी से भी दूरियां बढ़ती गईं 
इसके बाद 1958 में उन्होंने संसद में हरिदास मूंदडा के एलआईसी में किए गए घोटाले को उठाया. उन्होंने ही देश की राष्ट्रीय इंश्योरेंस कंपनी में हुए इस बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया था. उन्होंने सरकार की आर्थिक अनियिमितताओं को भी सामने लाना शुरू कर दिया. इस घोटाले को लेकर फिरोज गांधी का रुख इतना मुखर था कि विरोधी सांसदों से ज्यादा उनकी आवाज संसद में सुनी जाती थी.

उनके इस विरोध ने जवाहर लाल नेहरू की पाक साफ छवि को भी नुकसान पहुंचाया. यह फिरोज गांधी ही ‌थे जिनके आवाज उठाने के कारण नेहरू सरकार के वित्त मंत्री टीटी कृष्‍णमाचारी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसी के साथ ही ससुर जवाहर लाल नेहरू और पत्नी इंदिरा गांधी से फिरोज गांधी की दूरियां बढ़ती गईं. 

47 साल की उम्र में ली आखिरी सांस 
एक समय ऐसा भी आया जब दोनों अलग अलग रहने लगे. कहा जाता है कि सरकार में हस्तक्षेप और लगातार आलोचना के कारण पंडित नेहरू ने फिरोज गांधी से बोलना तक बंद कर दिया था. जीवन के अंतिम दिनों में फिरोज गांधी बिल्कुल अकेले से हो गए थे. इसी अकेलेपन के बीच उन्हें 1958 में पहला हार्टअटैक पड़ा जिसने उनके शरीर को बहुत हानि पहुंचाई. इसके बाद उन्होंने खुद को राजनीति से अलग कर लिया. दो साल बाद ही साल 1960 में दूसरा हार्टअटैक पड़ने के कारण उन्हें विलिंगडन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया जहां 8 सितंबर 1960 को मात्र 47 साल की उम्र में आखिरी सांस ली.

 

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