ऐसे समय में जब पूरी दुनिया खुद को प्लास्टिक की चपेट में पा रही है, हमें कुछ प्रेरणादायक स्थान मिलते हैं जो इस बात का सबूत हैं कि हम अपने तरीकों को सही करके अपने ग्रह, पृथ्वी के बेहतर निवास बनने की कोशिश कर रहे हैं.
जब बात प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने की आती है तो भारत के उन कुछ स्थानों में से एक स्थान सबसे अलग है जो वास्तव में जबरदस्त काम कर रहे हैं. केरल का कन्नूर जिला एक ऐसी जगह है जो तारीफ के काबिल है. विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के मौके पर हम आपके सामने कन्नूर जिला और इसकी सफलता की कहानी लेकर आए हैं. हाल ही में, जिले ने नल्ला नाडु, नल्ला मन्नू, जिसका अर्थ अच्छी मिट्टी के साथ एक अच्छा गांव है के नारे के साथ प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ एक अभियान चलाया. अब आप पूछेंगे कि इस अभियान में हुआ क्या?
लोगों को शिक्षित करने का भी करते हैं काम
स्थानीय लोगों को हथकरघा से बने थैलों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ कैरी बैग, डिस्पोजेबल प्लास्टिक के बर्तन और बोतलों जैसे सिंगल-यूज वाले प्लास्टिक के उपयोग को व्यवस्थित रूप से समाप्त करने से लेकर जिले ने प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ एक लंबी और अक्सर कठिन लड़ाई शुरू की. प्लास्टिक पर हमारी निर्भरता को देखते हुए शुरुआत में यह एक असंभव कार्य जैसा लगा. लेकिन इस परियोजना के लिए अथक प्रयास, जिसमें लोगों को प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में शिक्षित करना भी शामिल था ने जिले को इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद की. अप्रैल 2017 में जिले को भारत का पहला प्लास्टिक मुक्त जिला घोषित किया गया.
कैसे किया काम?
कचरा दोबारा से ना हो इसको ध्यान में रखने के लिए किसी भी डंपिंग गतिविधियों के लिए सड़कों के किनारे और किसी भी जल निकाय जैसी जगहों पर कड़ी निगरानी रखी गई थी. प्लास्टिक कैरी बैग की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध ने जिले के लिए चमत्कार का काम किया. फिर उस नियम का पालन किया जहां किसी भी प्रकार के सार्वजनिक समारोहों के दौरान डिस्पोजेबल वस्तुओं के उपयोग के लिए जिला कार्यालयों से अनुमति लेनी पड़ती थी.
इन सभी ने निश्चित रूप से पर्यटकों पर भी अपनी छाप छोड़ी है. एक ऐसे गंतव्य की यात्रा करने के बारे में अच्छा महसूस होता है जो पर्यावरण के प्रति जागरूक है. एशिया के सबसे स्वच्छ गांवों में से एक, मावलिननॉन्ग गांव (Mawlynnong village)मेघालय का एक प्यारा सा गांव है. सिक्किम एक ऐसा राज्य है जिसने पूरे राज्य को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने के लिए बहुत सारे प्रयास किए हैं.
क्या आप जानते हैं कि सिक्किम का लाचुंग गांव वास्तव में डिस्पोजेबल प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने में अग्रणी था? लाचुंग 90 के दशक से ऐसे प्रयास करता आ रहा है. कन्नूर अब खुद को उस प्रभावशाली सूची में पाता है. प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने के को लेकर कई सारे गांव कन्नूर से प्रेरणा ले रहे हैं.