चंद्रबाबू नायडू ने 70 के दशक में अपना राजनीतिक करियर कांग्रेस के साथ शुरू किया. संजय गांधी के खास बनने के बाद वह 1978 में आंध्र प्रदेश में विधायक बने और 1980 से 1982 के बीच उन्होंने राज्य की कैबिनेट में भी अपनी भागीदारी निभाई. चंद्रबाबू आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के मजबूत नेता बनकर उभर रहे थे. लेकिन 1981 में उनके निजी जीवन में कुछ ऐसा हुआ जिसने शायद उनके राजनीतिक करियर की ट्रैजेक्ट्री बदल दी.
वह 10 सितंबर 1981 का दिन था जब चंद्रबाबू ने नारा भुवनेश्वरी से शादी की. भुवनेश्वरी तेलुगु इंडस्ट्री के दिग्गज अभिनेता नन्दमूरि तारक रामाराव उर्फ एनटीआर (NTR) की बेटी थीं. एनटीआर ने आगे चलकर 1982 में तेलुगु देसम पार्टी (TDP) की स्थापना की. उनका कहना था कि वह आंध्र प्रदेश को कांग्रेस की भ्रष्ट राजनीति से मुक्त करना चाहते हैं. ससुर के पार्टी बनाने की देर थी कि चंद्रबाबू भी टीडीपी में शामिल हो गए.
...और मुख्यमंत्री बन गए नायडू
यह चंद्रबाबू के राजनीतिक करियर का टर्निंग प्वॉइंट था. वह 1989 और 1994 में टीडीपी के टिकट पर विधायक बने. 1994 में टीडीपी की सरकार बनने पर उन्हें वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी भी सौंपी गई. इस समय तक नायडू खुद को टीडीपी में एक कद्दावर नेता के रूप में स्थापित कर चुके थे. इसका प्रमाण 1995 में देखने को मिला जब उन्होंने अपने ससुर रामाराव की सरकार पलट दी.
राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि एनटीआर की दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती की पार्टी और सरकार में बढ़ती दखलअंदाजी इस तख्तापलट का कारण बनी. अगस्त 1995 में नायडू पार्टी के अध्यक्ष बने और एक सितंबर 1995 को उन्होंने पहली बार आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. अगले साल एनटीआर के निधन के बाद लक्ष्मी पार्वती ने 'एनटीआर टीडीपी' लॉन्च कर पार्टी के नेताओं को लामबंद करना चाहा. लेकिन टीडीपी कैडर नायडू का वफादार रहा. एक कांग्रेस कार्यकर्ता से लेकर आंध्र प्रदेश के सबसे ताकतवर नेता तक का सफर नायडू ने पूरा कर लिया था.
आर्थिक सुधारक की बनी छवि
पहले कार्यकाल में नायडू 1995 से लेकर 2004 तक मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान वह राज्य में आर्थिक सुधार लाने वाले मुख्यमंत्री के रूप में पहचाने जाने लगे. नायडू ने राजधानी हैदराबाद को इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी का हब बनाने में बड़ी भूमिका निभाई. नायडू के 10 साल के कार्यकाल के दौरान न सिर्फ हैदराबाद में आधुनिकीकरण देखने को मिला, बल्कि राजधानी में कई बड़ी कंपनियों ने निवेश भी किया. नायडू के निर्देशन में ही हैदराबाद में हाईटेक सिटी (Hyderabad Information Technology and Engineering Consultancy City) की स्थापना भी हुई, जो आज हैदराबाद के आर्थिक विकास का एक प्रमुख कारण है.
राष्ट्रीय राजनीति में रही है अहम भूमिका
दिल्ली में गैर-कांग्रेसी गठबंधन राजनीति वाली अवधि (1996-2004) के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में नायडू की भागीदारी अहम रही. 1996 के संसदीय चुनावों के बाद उन्होंने संयुक्त मोर्चा के संयोजक की भूमिका निभाई. इस मोर्चे में 13 राजनीतिक दलों का गठबंधन था जिसने केंद्र में सत्ता हासिल की. 1996 से 1998 तक सत्ता में रही गठबंधन सरकार का नेतृत्व पहले एच.डी. देवगौड़ा ने और बाद में इंद्र कुमार गुजराल ने किया.
1999 के लोकसभा चुनावों के बाद राष्ट्रीय मामलों में चंद्रबाबू नायडू का महत्व और भी बढ़ गया. टीडीपी और भाजपा ने मिलकर आंध्र प्रदेश में चुनाव लड़ा और 42 में से 36 सीटें हासिल कीं. लोकसभा में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. टीडीपी ने अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार को समर्थन दिया. टीडीपी हालांकि सरकार में सीधे तौर पर शामिल नहीं हुई. नायडू ने बाद में दावा किया था कि हालांकि वाजपेयी ने उनकी पार्टी को आठ कैबिनेट मंत्री पद की पेशकश की थी, लेकिन टीडीपी केंद्रीय मंत्रिमंडल से दूर रही और एनडीए सरकार को बाहरी समर्थन की पेशकश की.
हो चुका है जानलेवा हमला
अक्तूबर 2003 में नायडू पर पीपल्स वॉर ग्रुप (PWG) ने जानलेवा हमला किया. तिरुमाला जा रहे मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला करने के लिए कुल 17 लैंड माइन लगाई गईं, जिनमें से 9 में विस्फोट हुआ. नायडू देश के पहले मुख्यमंत्री थे जिनपर नक्सलियों ने जानलेवा हमला किया था. नायडू छोटी-मोटी चोटों के साथ हमले से जिन्दा बाहर आ गए और इसे चमत्कारी माना गया.
हमले के फौरन बाद नायडू ने विधानसभा भंग कर दी. अप्रैल 2004 में लोकसभा चुनावों के साथ-साथ आंध्र प्रदेश के चुनाव भी हुए. हालांकि जनता के बीच सत्ता-विरोधी लहर के कारण नायडू सरकार गिर गई.
दूसरी बार बने नए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री
इसके बाद नायडू 10 साल तक आंध्र प्रदेश में विपक्ष के नेता बने रहे. साल 2014 में आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद हवा का रुख फिर बदला और नायडू ने एक बार फिर बीजेपी और जनसेना पार्टी की मदद से सरकार बना ली. इस बार हालांकि वह सिर्फ एक कार्यकाल के लिए ही मुख्यमंत्री रह पाए. नए आंध्र प्रदेश की न तो कोई राजधानी थी, न ही हैदराबाद जैसा कोई इकोनॉमिक हब. आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा न मिलने के कारण बीजेपी के साथ भी नायडू के रिश्ते बिगड़ते चले गए और 2019 के आंध्र प्रदेश चुनाव में टीडीपी 175 में से सिर्फ 23 सीट हासिल कर सकी.
अब 2024 में नायडू 161 सीटें जीतकर चौथी बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं. पिछले कार्यकाल में उन्होंने अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाने का जो काम शुरू किया था, इस बार वह उसे खत्म करने का इरादा रख रहे हैं. शपथ ग्रहण से पहले ही नायडू ने अमरावती को अपनी राजधानी बनाने की बात भी साफ कर दी है. देखना दिलचस्प होगा कि इस कार्यकाल में नायडू कौन-कौनसे 'अधूरे' काम पूरे करते हैं.