भारत के चीफ जस्टिस (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ (CJI Chandrachud) 10 नवंबर 2024 को रिटायर होने वाले हैं. अब नए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस संजीव खन्ना (Justice Sanjiv Khanna) होने वाले हैं. वे भारत के 51वें चीफ जस्टिस होंगे. सीजेआई चंद्रचूड़ ने जस्टिस खन्ना के नाम की सिफारिश केंद्रीय कानून मंत्रालय से की है. अगर केंद्र सरकार इस सिफारिश को स्वीकार करती है, तो अगले चीफ जस्टिस खन्ना होंगे.
जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ था. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की और 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में वकील के रूप में नामांकन कराया. अपने करियर की शुरुआत में, उन्होंने तिस हजारी कोर्ट परिसर में जिला अदालतों में प्रैक्टिस की और फिर दिल्ली हाई कोर्ट में वकील बने.
जस्टिस खन्ना ने अपने करियर के शुरुआती दिनों में कई टैक्सेशन केस संभाले हैं, जिसके कारण उन्हें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के सीनियर स्टैंडिंग कॉउन्सिल के रूप में लंबे समय तक काम करने का मौका मिला. उन्होंने अडिशनल पब्लिक प्रासीक्यूटर के रूप में भी सर्विस की है और दिल्ली हाई कोर्ट में आपराधिक मामलों में अक्सर एमीकस क्यूरी के रूप में नियुक्त हुए. एमिकस क्यूरी, कोर्ट की मदद करके कानून के आधार पर निर्णय लेने में मदद करते हैं.
दिल्ली हाई कोर्ट के एडिशनल जज
जस्टिस खन्ना का ज्यूडिशियल करियर 24 जून 2005 को दिल्ली हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ शुरू हुआ. 20 फरवरी 2006 को उन्हें परमानेंट जज बनाया गया. दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कई बड़े पदों पर काम किया. इसमें दिल्ली ज्यूडिशियल अकेडमी और दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर के चेयरमैन के रूप में उनकी भूमिका शामिल है.
18 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट में उनका अपॉइंटमेंट थोड़ा असामान्य था. क्योंकि जस्टिस खन्ना को किसी भी हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस के रूप में सर्विस किए बिना ही सीधे सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान, वे कई बड़े मामलों में कॉन्स्टिट्यूशन बेंच का हिस्सा रहे.
जस्टिस खन्ना के कुछ बड़े जजमेंट
जस्टिस संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट में अपने समय के दौरान कई बड़े निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
- सूचना का अधिकार और ज्यूडिशियरी ट्रांसपेरेंसी: 2019 के एक ऐतिहासिक फैसले में, जस्टिस खन्ना पांच-जजों की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच का हिस्सा थे जिसने दिल्ली हाई कोर्ट के उस निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें भारत के चीफ जस्टिस के ऑफिस को सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत लाने का निर्णय लिया गया था.
-अनुच्छेद 370 हटाना: जस्टिस खन्ना ने अनुच्छेद 370 को हटाने के सरकार के निर्णय का समर्थन किया था.
-इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम: वे उस बेंच का हिस्सा भी थे जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया, यह कहते हुए कि यह सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है. जस्टिस खन्ना ने कहा कि गुमनाम डोनेशन के कारण चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता की कमी होती है, इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित होती है.
- इलेक्शन इंटीग्रिटी और वोटर वेरिफिकेशन: उन्होंने कई फैसले चुनाव प्रक्रिया को लेकर भी दिए. उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) पर चुनाव आयोग के रुख को बरकरार रखा और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) स्लिप की 100% वेरिफिकेशन की याचिका को खारिज कर दिया.
हंस राज खन्ना से पारिवारिक कनेक्शन
जस्टिस संजीव खन्ना का चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनना इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि वे जस्टिस हंस राज खन्ना (Justice Hans Raj Khanna) के भतीजे हैं. हंस राज खन्ना की गिनती देश के उन जजों में होती है जिन्हें दशकों से याद रखा जाएगा. आपातकाल के दौरान 1976 के ADM जबलपुर मामले (ADM Jabalpur case) में उन्होंने सरकार से असहमति जताई थी, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Prime Minister Indira Gandhi) ने लागू किया था.
ADM जबलपुर मामले, जिसे "Habeas Corpus case" के रूप में भी जाना जाता है, में पांच-जजों की बेंच को यह तय करना था कि क्या आपातकाल के दौरान किसी व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित किया जा सकता है. जबकि चार जजों ने सरकार का समर्थन किया था, लेकिन जस्टिस हंस राज खन्ना अकेले असहमति जताने वाले जज थे. उन्होंने कहा था कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जिसे राष्ट्रीय संकट के समय में भी समझौता नहीं किया जा सकता. उनके शब्दों में कहें, "जैसे जीवन ईश्वर का उपहार है, वैसे ही स्वतंत्रता कानून का उपहार है."
इस असहमति की वजह से जस्टिस हंस राज खन्ना को भारत के चीफ जस्टिस का पद नहीं मिला था, क्योंकि उन्हें 1977 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद जस्टिस एम.एच. बेग ने ट्रांसफर कर दिया था. हंस राज खन्ना ने आखिर में इस अन्याय के विरोध में सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया था.
हालांकि, जस्टिस खन्ना का कार्यकाल काफी छोटा होगा. ये छह महीने से भी कम समय का होगा.