G-20 Summit: क्या है इस शिखर सम्मेलन का एजेंडा, जी-20 की मेजबानी से भारत को कैसे होगा फायदा, यहां जानिए इस संगठन से जुड़ी हर बात

भारत ने जी-20 सम्मेलन की थीम वसुधैव कुटुंबकम रखी है. इस सम्मेलन के जरिए भारत इस विचार को भी देना चाहता है कि वो सिर्फ अपने बारे में नहीं बल्कि पूरी दुनिया के बारे में सोच रहा है. 

G-20 Summit
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 09 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 10:15 AM IST
  • जी-20 शिखर सम्मेलन 10 सितंबर 2023 तक चलेगा
  • भारत 30 नवंबर 2023 तक जी-20 की करेगा अध्यक्षता 

जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिए राष्ट्रीय राजधानी दिल्‍ली पूरी तरह तैयार हो चुकी है. ये सम्‍मेलन 9 से लेकर 10 सितंबर 2023 तक चलेगा. इसमें जी-20 सदस्‍य देशों के राष्‍ट्रप्रमुखों के अलावा नौ अन्‍य देशों को आमंत्रित किया गया है. जी-20 की मेजबानी भारत के लिए काफी बड़ा मौका है. आइए आज जानते हैं इससे भारत को क्‍या-क्या फायदा होने वाला है और इस बार एजेंडा में क्या है?

क्‍या है जी-20
साल 1997 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के लिए वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक मंच के रूप में जी-20 की शुरुआत की गई थी. जी-20 को ग्रुप ऑफ ट्वेंटी कहा जाता है. इस समूह के 19 देश सदस्य हैं. ग्रुप का 20वां सदस्य यूरोपीय संघ है. जी-20 समिट का आयोजन साल में एक बार होता है. हालांकि 2008 से शुरुआत के बाद 2009 और 2010 साल में जी-20 समिट का आयोजन दो-दो बार किया गया था. 

कब से शामिल होने लगे राष्ट्राध्यक्ष
2008 में अमेरिका की सबसे बड़ी वित्तीय कंपनी लीमन ब्रदर्स दिवालिया हो गई, जिसके बाद दुनियाभर में बड़ा फाइनेंशियल क्राइसिस आया. 2008 में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने सुझाव दिया कि जी-20 के मंच पर अब सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष को बुलाया जाए ताकी मजबूती से फैसले लिए जा सके. बस, 2008 को जी-20 का एक बार और जन्म हुआ. 

इस सम्‍मेलन में ग्रुप के सदस्‍य देशों के राष्‍ट्राध्‍यक्ष को बुलाया जाने लगा. कुछ अन्‍य देशों को भी बुलाया जाता है. इसके बाद सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष बैठकर कई मुद्दों पर चर्चा करते हैं. इस सम्मेलन का मुख्य फोकस आर्थिक संकट से जूझने के साथ-साथ बाकी संकटों पर भी ध्यान देने तक बढ़ाया गया.

ये हैं जी-20 के सदस्‍य देश
जी-20 को सबसे बड़ा वैश्विक संगठन माना जाता है. इसके सदस्‍य देशों में भारत के अलावा फ्रांस, चीन, कनाडा, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, अमेरिका, यूके, तुर्की, दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब, रूस, मैक्सिको, जापान, इटली, इंडोनेशिया और 20वें सदस्य के तौर पर यूरोपीय संघ शामिल है. जी-20 की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक वैश्विक व्यापार में भी ये संगठन 80 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है और करीब दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्‍व करता है.

कौन तय करता है एजेंडा 
जी-20 का अध्यक्ष ही इसका एजेंडा तय करता है लेकिन उसे इसमें दो अन्य देशों को भी शामिल करना होता है. एजेंडा को तय करने का जिम्मा ट्रॉयका के पास होता है. ट्रॉयका तीन देशों से मिलकर बनता है. पहला वो देश जो पिछले साल जी-20 का अध्यक्ष था यानी इंडोनेशिया. दूसरा, वो देश जो वर्तमान में जी-20 का अध्यक्ष है यानी भारत और तीसरा वो देश जो अगले साल जी-20 का अध्यक्ष होगा यानी ब्राजील.

क्‍या है जी-20 का काम
जी-20 का मूल एजेंडा आर्थिक सहयोग और वित्तीय स्थिरता का है, लेकिन समय के साथ व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सस्टेनेबल डेवलपमेंट, स्वास्थ्य, कृषि और भ्रष्टाचार निरोधी एजेंडा भी इसमें शामिल कर लिया गया है. इसमें दो समानांतर तरीकों से चर्चा होती है, पहला फाइनेंशियल और दूसरा शेरपा ट्रैक. फाइनेंशियल ट्रैक में बातचीत का काम वित्त मंत्री संभालते हैं और शेरपा ट्रैक में शेरपा यानी वह व्यक्ति जिसे सरकार शेरपा के तौर पर नियुक्त करती है. 

भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन
भारत 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक जी-20 की अध्यक्षता करेगा. 16 नवंबर 2022 को जी-20 बाली शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी को जी-20 की अध्यक्षता सौंपी गई थी. इससे पहले 8 नवंबर 2022 को पीएम ने जी-20 का लोगो लॉन्च किया था और भारत की जी-20 प्रेसीडेंसी थीम- वसुधैव कुटुम्बकम यानी- वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर का अनावरण किया था. जी-20 के लोगो को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में डिजाइन किया गया है, जो हमारे पृथ्वी-समर्थक दृष्टिकोण और चुनौतियों के बीच विकास का प्रतीक है.

भारत को इसकी मेजबानी से क्‍या-क्या मिलेगा 
1. जी-20 देशों का दुनिया की जीडीपी में 85 फीसदी हिस्सा है. वहीं दुनिया के व्यापार में 75 फीसदी की हिस्सेदारी भी इन्हीं की है. इस लिहाज से ये सम्‍मेलन बहुत महत्‍वपूर्ण है. इसकी मेजबानी से भारत को वैश्विक मंच पर प्रमुख खिलाड़ी बनने का मौका मिल रहा है. 
2. ये वो समय है जब दुनिया में अफरातफरी का माहौल है. दुनिया कोविड महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के साइड इफेक्‍ट्स झेल रही है. ऐसे में जी-20 की मेजबानी के जरिए भारत के पास दुनिया को अपनी शक्ति, सामर्थ्‍य और संस्‍कृति को प्रदर्शित करने का बेहतर मौका है. इससे दुनिया में भारत की आवाज और बुलंद होगी. साथ ही भारत के जी-20 सदस्‍य देशों के साथ व्‍यापार संबन्‍ध मजबूत होंगे.
3. इस समय भारत दुनिया में तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में उभर रहा है. दुनिया में नए भारत की तस्‍वीर सामने आई है. ऐसे में जी-20 सम्‍मेलन के आयोजन के जरिए भारत के पास दुनिया के सामने अधिक निवेश को आकर्षित करने के लिए अपनी क्षमता और उपलब्धियों का प्रदर्शन करने का पूरा मौका है. साथ ही स्‍टार्टअप इकोसिस्‍टम के लिए भी ये बैठक काफी अहम है.
4. हाल ही में जी-20 को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्‍यू में कहा था कि भारत की जी-20 अध्यक्षता के कई सकारात्मक परिणाम आए हैं. जी-20 को दुनिया भविष्‍य के रोडमैप के तौर पर देख रही है. भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र होगा. इन बातों से ये स्‍पष्‍ट है कि जी-20 के जरिए भारत एक नई तस्‍वीर, शक्ति और सामर्थ्‍य को दुनिया के सामने रखेगा, ताकि नए अवसर और निवेश से भारत की आर्थिक गति को मजबूती मिले और भारत की विकसित राष्‍ट्र बनने की राह आसान हो सके.
5. भारत को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं. इस दौरान देश ने कई उपलब्धियां हासिल की है. हम आज कई क्षेत्रों में टॉप-5 में हैं, कई में टॉप-3 तो कुछ जगहों पर टॉप पर हैं.  इसके बावजूद भारत को विकासशील देशों में गिना जाता है. इसलिए जी-20 एक ऐसा फोरम हैं जहां भारत अपनी श्रेष्ठता को और बेहतर ढंग से बता सकता है.

इन 9 देशों को बुलाने से भारत को एक और लाभ
जी-20 सम्मेलन में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन समेत दुनिया के कई ताकतवर देश शामिल होने भारत आए हैं. इसके साथ ही जी-20 में शामिल होने के लिए भारत ने उन 9 देशों  इजिप्ट, बांग्लादेश, मॉरिशस, नीदरलैंड्स, ओमान, नाइजीरिया, सिंगापुर, स्पेन और यूएई के नेताओं को भी आमंत्रित किया है जो अभी तक इस समूह का हिस्सा नहीं हैं. 

अब भारत के दूरदर्शी नजरिए को समझिए. इन विकासशील और अल्पविकसित देशों के हितों को जी-20 के एजेंडे में जगह दिलाकर भारत इन देशों के ग्लोबल लीडर के रूप में जाना जाएगा. इन देशों के भी मुद्दों में कार्बन उत्सर्जन को लेकर गरीब देशो को मिलने वाली आर्थिक मदद, क्लीन एनर्जी को लेकर अल्प विकसित देशों को तकनीकी और आर्थिक मदद, खाद्यान्न सुरक्षा और सप्लाई चेन का मामला काफी अहम माना जा रहा है.

जी-20 सम्मेलन में भारत की जरूरत 
1. वैश्विक: जहां भारत को इस विभाजित दुनिया में अग्रणी भूमिका निभाना है, जिसकी लंबे समय तक छाप छोड़ना भी एक मूलभूत उद्देश्य है. साथ ही विकासशील देशों के सरोकारों को आगे बढ़ाना और उनके मुद्दों को प्राथमिकता से रखना भी भारत की जिम्मेदारी है.
2. क्षेत्रीय: वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशिया का अगुआ देश भारत ही है. इस वजह से दक्षिण एशिया के बाकी देशों के हितों को (जो जी-20 का हिस्सा नहीं है) आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी भारत की ही है.
3. घरेलू: आज पूरी दुनिया में भारत के नाम का डंका बज रहा है. पूरी दुनिया को भी भारत की जरूरत है. ऐसे में दुनियाभर में भारत की बढ़ती हैसियत की घरेलू माहौल में पुष्टि करना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है.

क्या है जी-20 का मुख्य आर्थिक एजेंडा
जी-20 में ऐसे तो कई मुद्दों पर चर्चा होती है, लेकिन जी-20 का जन्म आर्थिक चुनौतियों से लड़ने के लिए हुआ था. इस बार जो भारत ने मुख्य आर्थिक एजेंडा तय किया है, वह भारी कर्ज में फंसे देशों की समस्याओं को सुलझाने का है. दुनिया में कई देश डेट ट्रैप यानी कर्ज के जाल जैसे आर्थिक संकट पर में फंसे हैं. दुनिया में विश्व बैंक और IMF के से भी बड़ा अब चीन बन गया है जो सबसे ज्यादा कर्ज बांटता है. IMF के अनुसार अफ्रीका के 40 देश आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, जिनमें से 20 देशों को चीन ने कर्ज दिया है.

इन मुद्दों पर भी भारत देगा जोर
जलवायु संकट: भारत से जलवायु परिवर्तन और सतत विकास पर चर्चा का नेतृत्व करने की जो उम्मीद विश्व ने रखी है, भारत उस पर खरा उतर रहा है. COP27 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे देशों को मुआवजे के लिए घाटा और नुकसान फंड की स्थापना करने पर बात बनी थी. भारत जी-20 सम्मेलन में इस फंड के क्रियान्वयन के लिए बात रख सकता है. साफ शब्दों में कहें तो भारत का ध्यान विकासशील देशों को उनके जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए विकसित देशों की आवश्यकता पर केंद्रित करने पर है.

डिजिटल फासले को कम करना: दुनिया की आधी आबादी के पास डिजिटल सुविधाएं नहीं हैं और भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख खिलाड़ी है. सम्मेलन में भारत से टेक्नोलॉजी और डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सदस्य देशों के बीच अधिक सहयोग पर जोर देने की उम्मीद है. भारत JAM (जन धन-आधार-मोबाइल) के जरिए अपने समावेशी डिजिटल क्रांति की विशेषता का लाभ भी दूसरों को दे सकता है. यूपीआई पेमेंट सिस्टम इसका एक बेहतरीन उदाहरण है.


 

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