आदेश 7/11 क्या है, जिसके आधार पर कोर्ट फैसला करेगा कि Gyanvapi Masjid Case में याचिका सुनवाई के योग्य है या नहीं

Gyanvapi Masjid Dispute: ज्ञानवापी मामले में आम लोगों को एक शब्द 7/11 मिला है. इसका इस्तेमाल तो सभी कर रहे हैं, लेकिन इसका मतलब क्या है. इस शब्द में क्या खास है. ये बहुत कम लोग जानते हैं. इसी पर ज्ञानवापी मामले का पूरा भविष्य टिका है. कोर्ट इसी के आधार पर फैसला करेगा कि हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं.

ज्ञानवापी मस्जिद
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2022,
  • अपडेटेड 4:13 PM IST
  • CPC के 7/11 पर टिका है ज्ञानवापी केस का भविष्य
  • इसी के आधार पर तय होगा कि याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में आदेश देते हुए वाराणसी की जिला अदालत को कहा कि प्राथमिकता के आधार पर इस याचिका के सुनवाई योग्य होने पर फैसला करें. यानी पहले सुनवाई इस मुद्दे पर हो कि हिंदू पक्षकारों की ये याचिका सुनवाई योग्य है भी या नहीं.
इस सुनवाई का मुख्य आधार उपासना स्थल कानून के साथ सिविल प्रक्रिया संहिता में आदेश 7 नियम 11 ही है. ये आदेश मुख्यतया किसी वाद यानी याचिका को अदालत में खारिज करता है. इसकी और विस्तार में व्याख्या इस तरह की गई है. दीवानी प्रक्रिया संहिता यानी सिविल प्रोसीजर कोड CPC का आदेश 7 नियम 11 कहता है कि किसी वाद यानी मुकदमे को अदालत सुनने से अस्वीकार कर देगी, अगर इन कसौटियों पर वो दावा खरा ना उतरे.

1. जहां अर्जी में कॉज ऑफ एक्शन यानी कार्रवाई करने का कोई कारण नहीं दिखाया या बताया गया हो.
2. जहां दावा की गई राहत का कम मूल्यांकन किया गया हो. वादी, अदालत की ओर से तय समय सीमा के भीतर मूल्यांकन को सही करने के लिए निर्देश देने के बाद भी दूसरा पक्ष ऐसा करने में विफल रहे.
3. जहां दावा की गई राहत का उचित मूल्यांकन तो किया गया हो, लेकिन वाद के दस्तावेजों पर अपर्याप्त धनराशि की स्टाम्प लगी हो. अदालत की ओर से तय मोहलत के भीतर आवश्यक स्टाम्प लगाने के आदेश के बावजूद वादी ऐसा करने में विफल रहे.
4. जहां वादपत्र में दिया गया कोई बयान या प्रार्थना किसी कानून से निषिद्ध यानी सुनवाई से वर्जित प्रतीत होता हो.
5. जहां इसे डुप्लीकेट में दाखिल नहीं किया गया.
6. जहां वादी नियम 9 के प्रावधान का पालन करने में विफल रहे.  यानी वादी के जरिए वाद की अपेक्षित प्रतियां दाखिल करने के अदालती आदेशों का पालन करने में विफल रहे.

मुस्लिम पक्ष का क्या है दावा-
इस मामले में मुस्लिम पक्षकार अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी वाराणसी ने कहा है कि हिंदू पक्ष की याचिका 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट के तहत सुनवाई के लिए वर्जित है. इसलिए ये CPC आदेश 7 नियम 11 के प्रावधान e के तहत आता है, जिसमें कहा गया है कि जहां वादपत्र में दिया गया कोई बयान किसी कानून द्वारा वर्जित प्रतीत होता है, उसे अदालत अस्वीकार करेगी.

हिंदू पक्ष का दावा-
हिन्दू पक्षकारों का कहना है कि वहां 15 अगस्त 1947 से पहले और बाद तक लगातार देवी श्रृंगार गौरी की पूजा अर्चना होती रही है. लिहाजा उनका वाद ऑर्डर 7 नियम 11 के प्रावधान चार की परिधि से बाहर और ऊपर है. यानी कोर्ट इस पर न केवल सुनवाई कर सकता है बल्कि उनके दावे के मुताबिक न्याय कर उनका अधिकार भी दिला सकता है. इसमें उपासना स्थल कानून और आर्डर सात नियम 11 और प्रावधान (d) भी प्रभावी नहीं होता.

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