हबीबगंज रेलवे स्टेशन से रानी कमलापति तक..... जानें कौन हैं ये बहादुर रानी और कैसे बदला जाता है रेलवे स्टेशन का नाम

रानी कमलापति 16वीं शताब्दी में राजा निजाम शाह की सात पत्नियों में से एक थीं. जिनके गोंड वंश ने 18वीं शताब्दी में भोपाल से 55 किमी दूर गिन्नौरगढ़ पर शासन किया था. मध्य प्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान के अनुसार, कमलापति "भोपाल की अंतिम हिंदू रानी" थीं, जिन्होंने जल प्रबंधन के क्षेत्र में काफी काम किया और पार्क और मंदिर स्थापित किए.

Photo: PIB
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 15 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 8:57 PM IST
  • गोंड वंश ने 18वीं शताब्दी में भोपाल से 55 किमी दूर गिन्नौरगढ़ पर शासन किया था
  • रानी कमलापति 16वीं शताब्दी में राजा निजाम शाह की सात पत्नियों में से एक थीं
  • मध्य प्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान के अनुसार, कमलापति "भोपाल की अंतिम हिंदू रानी" थीं

भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन कर दिया गया है. दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले सप्ताह केंद्र को इसका प्रस्ताव दिया था, जिसे बिना किसी देरी के मंजूरी दे दी गयी है. यह अपनी तरह का देश का पहला स्टेशन है जिसे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर बनाया गया है. स्टेशन का उद्घाटन सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।

दरअसल, इस स्टेशन का नाम पहले हबीबगंज था, लेकिन कुछ समय पहले गोंड साम्राज्य की बहादुर और निडर रानी कमलापति के सम्मान में इस स्टेशन को रानी कमलापति रेलवे स्टेशन का नाम दिया गया है.  

तो चलिए जानते हैं आखिर कौन थी रानी कमलापति...... 

रानी कमलापति 16वीं शताब्दी में राजा निजाम शाह की सात पत्नियों में से एक थीं. जिनके गोंड वंश ने 18वीं शताब्दी में भोपाल से 55 किमी दूर गिन्नौरगढ़ पर शासन किया था. राज्य सरकार के अनुसार, कमलापति एक ऐसी रानी थी  जिन्होंने पति की हत्या के बाद अपने शासनकाल को बचाने के लिए हमलावरों का सामना बहादुरी के साथ किया.  

मध्य प्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान के अनुसार, कमलापति "भोपाल की अंतिम हिंदू रानी" थीं, जिन्होंने जल प्रबंधन के क्षेत्र में काफी काम किया और पार्क और मंदिर स्थापित किए.

गोंड है भारत के सबसे बड़े आदिवासी समुदाय में से एक 

आपको बता दें, गोंड भारत के सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक हैं, जो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार और ओडिशा में फैले हुए हैं. इसी को देखते हुए 19वीं सदी के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को इस पुनर्विकसित रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया जा रहा है. 
 
रेलवे स्टेशन के नाम कैसे बदले जाते हैं?

दरअसल, स्टेशनों के नाम बदलना पूरी तरह से राज्य का विषय है, भले ही रेलवे केंद्र सरकार से संबंधित हो. राज्य सरकारें इन मामलों के लिए गृह मंत्रालय, नोडल मंत्रालय को एक अनुरोध भेजती हैं, जो रेल मंत्रालय को लूप में रखते हुए अपनी मंजूरी देता है. आमतौर पर, यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रस्तावित नए नाम वाला कोई अन्य स्टेशन भारत में कहीं भी मौजूद न हो. 

रेलवे स्टेशन का नाम बदलने पर क्या होता है?

एक बार जब राज्य सरकार द्वारा सारा प्रोसेस पूरा कर दिया जाता है, तो यह भारतीय रेलवे को भेजा जाता है और वह अपना काम करती है. रेलवे नए स्टेशन का "कोड" जेनरेट करता है. उदाहरण के लिए फैजाबाद जंक्शन का कोड "FD" हुआ करता था, लेकिन नाम बदलने के बाद, नया कोड "AYC" है. जो नाम बदला गया है वह फिर इसके टिकट सिस्टम में फीड किया जाता है ताकि कोड के साथ नया नाम इसके टिकटों और आरक्षण और ट्रेन की जानकारी पर दिखाई दे सके.

सबसे आखिर में, यह सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए स्टेशन पर लिखे नाम - भवन, प्लेटफॉर्म साइनेज, आदि और अन्य जगहों पर लिखवाया जाता है.

क्या होगी स्टेशन की खासियत?

आपको बता दें, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप  (PPE) के तहत बना ये देश का पहला पुनर्विकसित स्टेशन है जिसे एडवांस क्लास सुविधाओं से लैस है. इसकी बिल्डिंग को पर्यावरण के हिसाब से डिज़ाइन किया गया  है. साथ में दिव्यांगजनों की सहूलियत और उनके आवागमन में आसानी को भी ध्यान में रखा गया है. 

पीएम करेंगे रेलवे की कई पहलों को राष्ट्र को समर्पित 

गौरतलब हो कि कार्यक्रम के दौरान, पीएम मध्य प्रदेश में रेलवे की कई पहलों को राष्ट्र को समर्पित करेंगे. इसमें उज्जैन-फतेहाबाद चंद्रावतीगंज ब्रॉड गॉज सेक्शन, भोपाल-बरखेड़ा सेक्शन में तीसरी रेललाइन, गॉज कनवर्टेड और इलेक्ट्रिफाइड मथेला-निमाड़ खीरी ब्रॉड गॉज सेक्शन और इलेक्ट्रिफाइड गुना-ग्वालियर सेक्शन शामिल हैं. प्रधानमंत्री उज्जैन-इंदौर और इंदौर-उज्जैन के बीच दो नई मेमू ट्रेनों को भी ह्री झंडी दिखाकर रवाना करेंगे. 

 

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