लंदन की गलियों में जब हजारों धावक 27 अप्रैल को लंदन मैराथन में भाग लेंगे, तब एक चेहरा सबसे अलग नज़र आएगा. सफेद कपड़े, माथे पर तिलक, मन में दृढ़ संकल्प और हृदय में अध्यात्म लिए दौड़ेंगी 35 वर्षीय हिंदू संन्यासी ब्रह्मचारिणी श्रीप्रिया चैतन्य. यह पहली बार होगा जब कोई महिला संन्यासी इस विश्वप्रसिद्ध मैराथन में हिस्सा लेगी और वो भी न केवल 42.2 किलोमीटर की चुनौतीपूर्ण दौड़ के लिए, बल्कि समाज की सोच को एक नई दिशा देने के लिए.
श्रीप्रिया चैतन्य नॉर्थ लंदन के चिन्मय मिशन की एक आध्यात्मिक शिक्षिका हैं. उन्होंने इस मैराथन की तैयारी जनवरी से शुरू कर दी थी. उनका उद्देश्य सिर्फ दौड़ पूरी करना नहीं है, बल्कि इसके जरिए धार्मिक रूढ़ियों को तोड़ना, हिंदू दर्शन को सरल भाषा में नई पीढ़ी तक पहुंचाना, और संन्यास की भूमिका को नए नजरिए से पेश करना भी है.
श्रीप्रिया कहती हैं, “मैराथन शारीरिक रूप से तो चुनौती है ही, लेकिन असल परीक्षा मानसिक दृढ़ता की होती है. मेरे लिए यह दौड़ केवल स्पर्धा नहीं है, यह एक साधना है. ध्यान और अध्यात्म ही मेरी ताकत हैं.”
आध्यात्म और एथलेटिक्स का संगम
भारत में शिक्षा प्राप्त करने के बाद, श्रीप्रिया पिछले सात साल से लंदन में चिन्मय मिशन के जरिए लोगों को हिंदू दर्शन का सरल पाठ पढ़ा रही हैं. वे एक लेखिका हैं, पॉडकास्ट होस्ट हैं और बीबीसी रेडियो के कार्यक्रमों में भी नियमित रूप से शामिल होती हैं.
उनकी प्रेरणा हैं स्वामी चिन्मयानंद, जिन्होंने 1950 के दशक में भारत की पदयात्रा की थी और जीवन भर ज्ञानवर्धन व समाज सेवा के लिए कार्य किया. श्रीप्रिया कहती हैं, “स्वामी जी ने जो किया, उसके सामने 26 मील की दौड़ कुछ भी नहीं है. मैं उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रही हूं, बस माध्यम थोड़ा अलग है.”
पुरानी धारणाओं को तोड़ने की पहल
इस दौड़ के जरिए श्रीप्रिया एक और अहम संदेश देना चाहती हैं. हिंदू धर्म में महिलाओं, विशेष रूप से ब्रह्मचारिणी के स्थान को लेकर जो भ्रांतियां हैं, उन्हें तोड़ना. अक्सर लोगों की सोच यह होती है कि संन्यास लेने का मतलब है दुनिया से कट जाना, पर श्रीप्रिया इस धारणा को पलटना चाहती हैं. इसपर वे कहती हैं, “मैं चाहती हूं कि लोग समझें कि आध्यात्मिक जीवन जीने का मतलब सामाजिक जीवन से कटना नहीं है. हम पुरानी परंपराओं और आधुनिक जीवनशैली को एक साथ जी सकते हैं. प्राचीन ज्ञान और आज की चुनौतियां एक-दूसरे की पूरक हो सकती हैं.”
सांस्कृतिक संवाद का माध्यम बनेगी दौड़
इस मैराथन में भाग लेने के पीछे श्रीप्रिया का एक और लक्ष्य है- धन जुटाना, जिससे चिन्मय मिशन के वैश्विक प्रयासों को समर्थन मिल सके. मिशन का उद्देश्य है हिंदू दर्शन को विभिन्न पृष्ठभूमियों और संस्कृतियों के लोगों के लिए सुलभ और व्यावहारिक बनाना. वे कहती हैं, “मैं उस कार्य का सम्मान करना चाहती हूं जो यह संगठन दुनिया भर में कर रहा है. मुझे उम्मीद है कि मेरी दौड़ से लोग प्रेरित होंगे और विभिन्न धर्मों, परंपराओं और विचारों के प्रति सम्मान बढ़ेगा.”
50 हजार धावकों के बीच एक संन्यासी
27 अप्रैल को होने वाली इस लंदन मैराथन में दुनिया भर के करीब 50,000 धावक हिस्सा लेंगे, लेकिन श्रीप्रिया की भागीदारी सबसे अनूठी होगी. उनकी उपस्थिति न केवल भारत की समृद्ध परंपरा और दर्शन का प्रतिनिधित्व करेगी, बल्कि यह भी दिखाएगी कि ध्यान, साधना और भक्ति से प्रेरित जीवन भी सामाजिक बदलाव ला सकता है.
श्रीप्रिया चैतन्य की इस दौड़ को केवल एक खेल की घटना समझना गलत होगा. यह एक संस्कृति संवाद, रूढ़ियों के खिलाफ एक कदम, और आध्यात्मिक जीवन के आधुनिक अर्थ को परिभाषित करने की कोशिश है. वे यह सिद्ध कर रही हैं कि संन्यास का अर्थ पलायन नहीं, बल्कि सक्रिय सेवा और बदलाव की भावना है.