UPSC Lateral Entry क्या है और इस पर विपक्ष ने क्यों बनाया सरकार को निशाना, समझिए A to Z

मोदी सरकार ने लेटरल एंट्री की शुरुआत 2018 में की थी. इसके जरिए सरकार तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर मंत्रालयों में अधिकारियों के पदों पर 45 भर्तियां करने वाली है. लेटरल एंट्री प्रक्रिया में पारदर्शिता न होने के कारण पहले भी विपक्षी दल सरकार को इस पहल के लिए घेर चुके हैं. 

The UPSC released a notification inviting applications for the posts of Joint Secretary and Director/Deputy Secretary. (File photo))
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 18 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 10:54 AM IST

केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में लेटरल एंट्री मोड के जरिए 45 सीनियर लेवल के अफसरों की भर्ती के लिए निकाले गए विज्ञापन से सियासी कोहराम मच गया है. विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह आरक्षण प्रणाली को व्यवस्थित रूप से कमजोर कर रही है. लेकिन यह लेटरल एंट्री क्या है, और इससे जुड़ी समस्याएं कौनसी हैं? 

क्या है लेटरल एंट्री?
लेटरल एंट्री शब्द का संबंध सरकारी संगठनों में विशेषज्ञों की नियुक्ति से है. इसका इस्तेमाल आमतौर पर निजी क्षेत्र से आने वाले विशेषज्ञों की नियुक्ति के लिए किया जाता है. मोदी सरकार ने इस प्रणाली की शुरुआत 2018 में की थी. सरकार राजस्व, वित्तीय सेवाओं, आर्थिक मामलों, कृषि, सहयोग और किसान कल्याण, सड़क परिवहन और राजमार्ग जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्तियों की सीधी भर्ती के लिए लेटरल एंट्री प्रणाली का इस्तेमाल करती है. 

लेटरल एंट्री के जरिए जो पद भरे जाते हैं वे इससे पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय वन सेवा (IFS) जैसे दूसरे ग्रुप-ए के अधिकारियों को दिए जाते थे. लेटरल एंट्री प्रक्रिया में पारदर्शिता न होने के कारण पहले भी विपक्षी दल सरकार को इस पहल के लिए घेर चुके हैं. 

क्या कहता है यूपीएससी का विज्ञापन?
इस बार केंद्रीय लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) ने अलग-अलग मंत्रालयों में संयुक्त सचिव और निदेशक/उपसचिव स्तर के 45 अधिकारियों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला है. इनमें 10 पद संयुक्त सचिव और 35 पद निदेशक/उपसचिव के लिए हैं. नियुक्ति के बाद ये सभी अधिकारी तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर सरकार के साथ काम करेंगे. अच्छे प्रदर्शन पर यह कॉन्ट्रैक्ट पांच साल तक भी बढ़ाया जा सकता है. आवेदन की आखिरी तारीख 17 सितंबर है.

लेटरल एंट्री के जरिए अब तक 63 नियुक्तियां की जा चुकी हैं, जिनमें से 35 नियुक्तियां निजी क्षेत्र से थीं. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल मंत्रालयों/विभागों में 57 अधिकारी लेटरल एंट्री के जरिए पदों पर मौजूद हैं. 

विपक्ष ने की तीखी आलोचना
लेटरल एंट्री के जरिए ये 45 भर्तियां करने के सरकार के फैसले को सभी विपक्षी दलों ने एकटुक आलोचना का निशाना बनाया है. संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सरकार के इस कदम को 'संविधान पर हमला' बताया है. उन्होंने एक्स पर लिखा, "नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं. केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है. यह यूपीएससी की तैयारी कर रहे प्रतिभाशाली युवाओं के हक पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है." 

राहुल की ही पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि यह कदम अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को महत्वपूर्ण सरकारी पदों से किनारे करने का भाजपा का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है.  खरगे ने एक्स पर लिखा, "संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली बीजेपी ने आरक्षण पर दोहरा हमला किया है! एक सुनियोजित साजिश के तहत भाजपा जानबूझकर नौकरियों में ऐसी भर्तियां कर रही है ताकि एससी, एसटी, ओबीसी वर्गों को आरक्षण से दूर रखा जा सके." 

बिहार में कांग्रेस के प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने कहा कि यह "बीजेपी की निजी सेना यानि खाकी पेंट वालों को सीधे भारत सरकार के महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों में उच्च पदों पर बैठाने" की कोशिश है.

लालू ने कहा, "इसमें कोई सरकारी कर्मचारी आवेदन नहीं कर सकता. इसमें संविधान प्रदत कोई आरक्षण नहीं है. कारपोरेट में काम कर रहे बीजेपी की निजी सेना यानि खाकी पेंट वालों को सीधे भारत सरकार के महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों में उच्च पदों पर बैठाने का यह "नागपुरिया मॉडल” है. संघी मॉडल के तहत इस नियुक्ति प्रक्रिया में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलेगा. वंचितों के अधिकारों पर एनडीए के लोग डाका डाल रहे है." 

लालू के बेटे और बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि यह आरक्षण प्रणाली और डॉ. भीमराव अंबेडकर के संविधान पर एक "गंदा मजाक" है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार इन पदों को सीधी तरह भरती तो 45 में से करीब आधे अधिकारी एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों से आते. 

तेजस्वी यादव ने कहा, “पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री, बिहार में उनकी पिट्ठू पार्टियां और उनके नेता बड़े जोर-शोर से दावा करते थे कि आरक्षण खत्म कर कोई उनका हक नहीं छीन सकता, लेकिन उनकी आंखों के सामने, उनके समर्थन और सहयोग से वंचित, उपेक्षित और गरीब वर्गों के अधिकारों को लूटा जा रहा है.” 

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने भी सरकार के इस कदम की आलोचना की. मायावती ने एक्स पर लिखा, "केन्द्र में संयुक्त सचिव, निदेशक एवं उपसचिव के 45 उच्च पदों पर सीधी भर्ती का निर्णय सही नहीं है, क्योंकि सीधी भर्ती के माध्यम से नीचे के पदों पर काम कर रहे कर्मचारियों को पदोन्नति के लाभ से वंचित रहना पड़ेगा." 

उन्होंने लिखा, "इसके साथ ही इन सरकारी नियुक्तियों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों के लोगों को उनके कोटे के अनुपात में अगर नियुक्ति नहीं दी जाती है तो यह संविधान का सीधा उल्लंघन होगा." 

इस बीच, समाजवादी पार्टी (SP) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लेटरल एंट्री पद्धति की आलोचना करते हुए एक देशव्यापी आंदोलन की मांग की. उन्होंने एक्स पर लिखा, "भाजपा अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाजे से यूपीएससी के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साज़िश कर रही है, उसके खिलाफ एक देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने का समय आ गया है." 

उन्होंने कहा, "दरअसल ये सारी चाल पीडीए से आरक्षण और उनके अधिकार छीनने की है. अब जब भाजपा ये जान गयी है कि संविधान को खत्म करने की भाजपाई चाल के खिलाफ देश भर का पीडीए जाग उठा है तो वो ऐसे पदों पर सीधी भर्ती करके आरक्षण को दूसरे बहाने से नकारना चाहती है." 

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