History of Supreme Court: 75 साल से अटल खड़ी है न्याय की ये इमारत, पहले राष्ट्रपति ने किया था उद्घाटन...कुछ ऐसे किया ओल्ड पार्लियामेंट से तिलक मार्ग तक का सफर तय

भारत के एक लोकतांत्रिक देश बनने के ठीक दो दिन बाद, 28 जनवरी, 1950 को सुप्रीम कोर्ट का औपचारिक उद्घाटन हुआ. यह समारोह पुराने संसद भवन के एक हिस्से, चैंबर ऑफ प्रिंसेस में आयोजित किया गया था.

75 Years of Supreme court (Photo/India Today Archives)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:05 PM IST
  • तिलक मार्ग में बाद में बना सुप्रीम कोर्ट 
  • इमारत में भी हुए हैं कई बदलाव 

दिल्ली के तिलक मार्ग पर बनी एक इमारत पिछले 75 साल से अटल खड़ी है. 75 साल पुरानी ये बिल्डिंग सालों से लोगों के लिए न्याय का मंदिर है. संस्कृत में इसकी शिलालेख, पर लिखा है "यतो धर्मस्ततो जयः" यानी "जहां धर्म है, वहां विजय है". 

भारतीय संविधान द्वारा स्थापित भारत का सुप्रीम कोर्ट देश की सबसे बड़ी ज्यूडिशियल बॉडी है. संविधान के अनुच्छेद 124 में इसका जिक्र मिलता है. सुप्रीम कोर्ट ने आधिकारिक तौर पर 26 जनवरी, 1950 को अपना काम शुरू किया, उसी दिन भारतीय संविधान लागू हुआ.

भारत के एक लोकतांत्रिक देश बनने के ठीक दो दिन बाद, 28 जनवरी, 1950 को सुप्रीम कोर्ट का औपचारिक उद्घाटन हुआ. यह समारोह पुराने संसद भवन के एक हिस्से, चैंबर ऑफ प्रिंसेस में आयोजित किया गया था. ये वो जगह है जहां से भारत का फेडरल कोर्ट 1937 से 1950 तक 12 साल तक काम करता रहा था. इस समारोह में भारत के पहले चीफ जस्टिस हरिलाल जे. कनिया और कई दूसरे प्रतिष्ठित जज और गणमान्य व्यक्ति आए थे, जिनमें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अलग-अलग राजदूत और विदेशों के प्रतिनिधि शामिल थे.

तिलक मार्ग में बाद में बना सुप्रीम कोर्ट 
हालांकि, आज जो सुप्रीम कोर्ट तिलक मार्ग बना है वह पहले इस जगह नहीं था. शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट पुराने संसद भवन से चलता था. यह 1958 तक वहीं काम करता रहा. शुरू में, सुप्रीम कोर्ट पुराने संसद भवन से ही चलता था. हालांकि, जैसे-जैसे देश की न्यायिक ज़रूरतें बढ़ीं, कोर्ट 1958 में तिलक मार्ग, नई दिल्ली में चला गया. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा उद्घाटन किए गए इस भवन को न्याय के तराजू का प्रतीक बनाने के लिए डिजाइन किया गया था, जिसमें 27.6 मीटर ऊंचा भव्य गुंबद और एक विशाल स्तंभ वाला बरामदा है. सेंट्रल विंग के केंद्र में चीफ जस्टिस का कोर्ट सबसे बड़ा कोर्ट रूम है.

फेडरल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर 
भारत के सुप्रीम कोर्ट की जड़ें 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट में मिलती हैं. कलकत्ता (कोलकाता) में सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई थी. यहीं से भारत में न्यायिक प्रणाली की शुरुआत हुई. कलकत्ता का ये कोर्ट आज के सुप्रीम कोर्ट का अग्रदूत था. इसने देश के कानून के लिए एक मंच तैयार किया जिसे बाद में भारतीय संविधान में शामिल किया गया.

भारत के प्रथम मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस हरिलाल जे. कानिया, दूसरे जजों के साथ (फोटो-सुप्रीम कोर्ट)

दरअसल, कलकत्ता के फोर्ट विलियम में सुप्रीम कोर्ट ऑफ ज्यूडिकेचर की स्थापना 1774 में की गई थी. इस कोर्ट ने कलकत्ता के मेयर कोर्ट की जगह ली और 1774 से 1862 तक ब्रिटिश भारत में सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण (highest judicial authority) के रूप में काम किया. 

असली कोर्ट हाउस एक दो मंजिला इमारत थी जिसमें लोहे का स्तंभ और कलश-टॉप वाली रेलिंग थी. यह कलकत्ता में राइटर्स बिल्डिंग के बगल में स्थित था और एक समय पर टाउन हॉल के रूप में भी काम करता था. इमारत को 1792 में ध्वस्त कर दिया गया था. जिसके बाद, आज की जो बिल्डिंग है वो 1832 में बनाई गई थी.

फोर्ट विलियम में सुप्रीम कोर्ट के पहले जज 

जज कार्यकाल

1. सर एलिजा इम्पे

1774 से 1783 तक चीफ जस्टिस के रूप में काम किया

2. स्टीफन सीज़र ले मैस्ट्रे

1774 से 1777 तक पुइसने जज (लोअर रैंक जज) के रूप में काम किया. 

3. जॉन हाइड

1774 से 1796 तक पुइसने जज के रूप में कार्यरत थे.

4. रॉबर्ट चेम्बर्स

1774 से 1783 तक पुइसने जज. 1783 से 1791 तक चीफ जस्टिस के रूप में काम किया.

5. सर विलियम जोन्स

1783 से 1794 तक पुइसने जज के रूप में कार्यरत थे.

6. सर विलियम डंकिन

14 अगस्त 1791 को पुइसने जज बने. 

 

8 से बढ़कर हो गए 34 जज 
जब 1950 में पहली बार सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई थी, तो संविधान में एक चीफ जस्टिस और सात अन्य जजों के लिए प्रावधान था, जिससे कुल आठ जज हो गए. यह संख्या शुरुआती साल के लिए पर्याप्त मानी गई थी, जहां सभी जज एक साथ बैठकर मामलों की सुनवाई करते थे. हालांकि, जैसे-जैसे मामलों की संख्या बढ़ी, जजों पर काम का बोझ भी बढ़ता गया, जिससे संख्या बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई. 

पिछले कुछ साल में, संसद ने बढ़ते केसलोड को मैनेज करने के लिए कई बार जजों की संख्या बढ़ाई गई है. पहला विस्तार 1956 में हुआ, जिसमें जजों की संख्या 8 से बढ़कर 11 हो गई. इसके बाद 1960 (14 जज), 1978 (18 जज), 1986 (26 जज), 2009 (31 जज) में और विस्तार हुआ और आखिरकार, 2019 में जजों की संख्या बढ़ाकर 34 कर दी गई, जो वर्तमान संख्या है.

जजों की संख्या बढ़ने के साथ, छोटी बेंचों में बैठने की प्रथा आम हो गई. आज, सुप्रीम कोर्ट आम तौर पर दो या तीन जजों की बेंचों में काम करता है, जिन्हें डिवीजन बेंच के रूप में जाना जाता है. हालांकि, कानून या जरूरी केसों के लिए, पांच या ज्यादा जजों की बड़ी बेंचें बनाई जाती हैं, जिन्हें संविधान बेंच कहा जाता है. ये सिस्टम सुनिश्चित करता है कि सभी के विचार इसमें शामिल किए जाएं.

भारत के पहले चीफ जस्टिस हरिलाल जे. कनिया (फोटो-सुप्रीम कोर्ट)

 
सबसे बड़ी बेंच का गठन 
भारत के सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मामलों में से एक 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य का मामला है. इस मामले के कारण सुप्रीम कोर्ट में अब तक की सबसे बड़ी बेंच का गठन हुआ था, जिसमें 13 जज शामिल थे. बेंच को यह तय करने का काम सौंपा गया था कि संसद को संविधान में संशोधन करने का अप्रतिबंधित अधिकार है या नहीं. इस निर्णय ने इस सिद्धांत को जन्म दिया कि संविधान की कुछ मौलिक विशेषताओं को संसद नहीं बदल सकती. ये अब तक भारतीय संवैधानिक कानून की आधारशिला बना हुआ है.

इमारत में भी हुए हैं कई बदलाव 
सुप्रीम कोर्ट की इमारत अपने आप में न्याय और अधिकार का प्रतीक है. न्यायपालिका की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए मूल इमारत में कई बदलाव किए गए हैं. पहला बदलाव 1979 में हुआ था, जिसमें पूर्वी और पश्चिमी विंग को जोड़ा गया था. 1994 में, एक और विस्तार ने इन विंग को जोड़ा, और 2015 में, मुख्य भवन से कुछ सेक्शन को ट्रांसफर करते हुए नए एक्सटेंशन ब्लॉक का उद्घाटन किया गया.

महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अंबेडकर की मूर्ति 
सुप्रीम कोर्ट परिसर में महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अंबेडकर की मूर्ति भी लगी है. सत्य और अहिंसा के दूत महात्मा गांधी की मूर्ति चीफ जस्टिस के कोर्ट के सामने प्रांगण में स्थित है. 1996 में जस्टिस ए.एम. अहमदी ने इसका अनावरण किया था. हाल ही में, 26 नवंबर, 2023 को भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने चीफ जस्टिस डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ की उपस्थिति में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की 7 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था. संविधान की एक कॉपी पकड़े हुए वकील की पोशाक में डॉ. अंबेडकर को दर्शाती यह प्रतिमा भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार और राष्ट्र के लिए उनके अपार योगदान को श्रद्धांजलि देती है. 

 

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