पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जहां बीजेपी को जीत मिली है, वहीं तेलंगाना में कांग्रेस ने बाजी मारी है. मिजोरम में जोराम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) को बहुमत मिला है. अब इन राज्यों में सरकार बनाने की बारी है. आइए जानते हैं चुनाव संपन्न होने के बाद मुख्यमंत्री और मंत्री का चयन कैसे होता है?
निर्वाचित विधायक चुनते हैं अपना एक नेता
हमारे संविधान के अनुसार किसी भी राज्य का प्रमुख राज्यपाल होता है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी शक्तियां मुख्यमंत्री के पास होती हैं. विधानसभा चुनावों में जिस पार्टी को बहुमत मिलता है, उसके निर्वाचित विधायक अपना एक नेता चुनते हैं. इसे विधायक दल का नेता कहा जाता है. जिसके बाद राज्य के राज्यपाल उन्हें सरकार गठित करने के लिए आमंत्रित करते हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(1) के अंतर्गत मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं.
इसके बाद सीएम ही राज्य में अपने मंत्रिमंडल के लिए मंत्रियों का चुनाव करते हैं. राज्यपाल से अनुमति लेकर ही मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल का गठन करते हैं. संविधान के आर्टिकल 164 के तहत राज्यपाल मुख्यमंत्री की तरह ही मंत्रियों को भी शपथ दिलाते हैं. आपको बता दें कि 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के अनुसार मुख्यमंत्री सहित संपूर्ण मंत्रिमंडल का आकार राज्य की विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. हालांकि सीएम सहित मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होनी चाहिए.
कितने तरह के होते हैं मंत्री
किसी राज्य की मंत्रिपरिषद में मुख्य रूप से तीन तरह के मंत्री होते हैं. पहला कैबिनेट मंत्री. ये सरकार के महत्वपूर्ण विभागों के प्रमुख और नीतियां बनाने में अपना योगदान देते हैं. दूसरा राज्यमंत्री होते हैं. इन्हें कैबिनेट मंत्रियों के साथ अटैच किया जाता है. कैबिनेट मंत्री अपने राज्यमंत्रियों को शक्तियों का बंटवारा करते हैं. इसके बात राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आते हैं. इनके ऊपर कोई कैबिनेट मंत्री नहीं होता है. ये अपने विभाग के सारे निर्णय लेने में सक्षम होते हैं. कुछ उपमंत्री भी बनाए जाने लगे हैं. इनके अधिकार सीएम तय करते हैं.
कौन तय करता है शपथ ग्रहण की जगह और मेहमान
शपथ ग्रहण की आधिकारिक जिम्मेदारी राज्यपाल की होती है. लेकिन प्रैक्टिकली मुख्यमंत्री की सलाह से काम होता है. मेहमानों की लिस्ट भी मुख्यमंत्री की सालह से तय होता है. मेहमानों की संख्या पर कोई सीमा तय नहीं है.
सबसे पहले कौन लेता है शपथ
सबसे पहले राज्यपाल मुख्यमंत्री फिर कैबिनेट मंत्री, उसके बाद स्वतंत्र प्रभाव वाले राज्यमंत्रियों और अंत में राज्यमंत्रियों को शपथ दिलाते हैं. शपथ के बाद सभी लोग एक संवैधानिक परिपत्र पर दस्तख करते हैं. राज्यपाल इस संवैधानिक दास्तवेज को संरक्षित रखते हैं. संविधान के आर्टिकल 60 के मुताबिक ईश्वर के नाम पर शपथ जरूरी नहीं है. कभी-कभी राज्यपाल सही उच्चारण नहीं होने पर दोबारा शपथ लेने को कह सकते हैं.
किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर क्या होता है
विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद यदि किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो उसे हंग असेंबली कहते हैं. इस स्थिति में राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर सबसे बड़े दल (जिसकी विधानसभा सीट ज्यादा हो) को सरकार बनाने के लिए न्योता देते हैं. उस दल अथवा नेता को एक निश्चित अवधि के अंदर विधानसभा में बहुमत (कुल सीटों की संख्या के आधे से ज्यादा) साबित करना होता है.
चाहे वह अन्य दलों से गठबंधन करके ही क्यों न हो लेकिन यदि वे बहुमत साबित नहीं कर पाते हैं तो उस स्थिति में कार्यकारी शक्तियां राज्यपाल के अधीन आ जाती हैं. फिर राज्य में दोबारा चुनाव करवाए जाते हैं. तब तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहता है और राज्यपाल ही प्रशासन चलाते हैं.
क्या बिना विधायक बने मुख्यमंत्री बन सकते हैं
कभी-कभी ऐसी स्थिति होती है कि जो पार्टी बहुमत में है, वह ऐसे नेता को अपने विधायक दल का नेता चुनती है जो विधायक ही नहीं होते. संविधान के मुताबिक मुख्यमंत्री को विधानमंडल (विधानसभा या विधान परिषद) का सदस्य होना जरूरी होता है.
तब ऐसी स्थिति में राज्यपाल उस संबंधित व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त कर देते हैं लेकिन, उस पद पर बैठे व्यक्ति को अगले 6 महीनों के अंदर विधानसभा या विधानपरिषद (कुछ राज्यों में है) की सदस्यता प्राप्त करनी जरूरी होती है अन्यथा उसे मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना होगा.
विधानसभा और विधानपरिषद में अंतर
विधानसभा के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष चुनावों के माध्यम से जनता द्वारा किया जाता है. यह एक अस्थायी निकाय है जिसका कार्यकाल पांच सालों का होता है. अतः हर पांच साल बाद इसे भंग कर चुनाव कराकर नई विधानसभा का गठन किया जाता है. यह व्यवस्था भारत के सभी राज्यों में मौजूद है. जबकि विधानपरिषद ऊपरी सदन होता है, जैसे कि राज्यसभा. विधानपरिषद के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं.
यह एक स्थायी सदन होता है, जो कभी भंग नहीं होता. इसमें प्रत्येक 2 वर्षों में एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं. यह व्यवस्था केवल उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना में मौजूद है. आपको बता दें कि विधानपरिषद के सदस्यों की अधिकतम संख्या विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती. वहीं सदस्यों की संख्या 40 से कम नहीं होनी चाहिए.