शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह के इस्तेमाल पर चुनाव आयोग ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है. अब शिवसेना के नाम और सिंबल का कोई भी गुट इस्तेमाल नहीं कर सकता है. एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट को दूसरा चुनाव चिन्ह आवंटित किया जाएगा. इसके लिए आयोग ने दोनों गुटों को अपनी-अपनी प्राथमिकता बताने को कहा है. ये पहला मौका नहीं है जब चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम को लेकर कानून लड़ाई चल रही है. चुनाव चिन्ह आवंटित करने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है .निर्वाचन आयोग ने फ्री चिह्नों की सूची बना रखी है. इसमें समय समय पर बदलाव, संशोधन और नई नई चीजें जुड़ती रहती हैं. तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर ये चुनाव चिन्ह कैसे मिलता है, और इसको पाने के नियम क्या हैं?
ऐसे अलॉट होते हैं सिंबल
निर्वाचन आयोग The Election Symbols (Reservation and Allotment) Order, 1968 के मुताबिक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को चुनाव चिन्ह अलॉट करने की पावर देता है. इसके तहत इलेक्शन कमीशन के पास 100 सवा सौ Free Symbol रहते हैं. ये किसी भी पार्टी को अलॉट नहीं किए गए होते. इन Symbols में किसी भी नए दल या फिर आजाद उम्मीदवार को चुनाव चिन्ह आवंटित किया जाता है. हालांकि कोई दल अगर अपना चुनाव चिन्ह खुद EC को देता है और अगर वो किसी भी पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं है, तो वो सिंबल भी उस पार्टी को अलॉट किया जा सकता है.
पहले से आवंटित चुनाव चिन्ह को नहीं ले सकती कोई पार्टी
निर्वाचन आयोग ने जिन राष्ट्रीय दलों जैसे कांग्रेस, बीजेपी, टीएमसी, एनसीपी सीपीआई सीपीएम आदि को जो चुनाव चिह्न आवंटित किए हैं वो रिजर्व श्रेणी में आते हैं. देश भर में उन चुनाव चिह्नों पर संबंधित पार्टी का ही एकाधिकार रहता है. क्षेत्रीय दलों को अपने राज्य या इलाके में उनके सभी उम्मीदवार पार्टी के लिए निर्वाचित चुनाव चिह्न का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन सिर्फ अपने राज्य में. दूसरे राज्य में अगर वही चुनाव चिह्न किसी दूसरी पार्टी को आवंटित है तो गृह राज्य वाली पार्टी का चुनाव चिह्न बरकरार रहेगा. दूसरे राज्य में निबंधित पार्टी के उम्मीदवारों को फौरी तौर पर कोई अन्य चिह्न मिलेगा. यानी किसी एक स्टेट या रीजनल पार्टी का सिंबल दूसरे राज्य में किसी दूसरी पार्टी को दिया जा सकता है. वैसे ही जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना और झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा दोनों ही धनुष बाण चुनाव चिह्न पर ही चुनाव लड़ते हैं.
नहीं मिल सकता पशु पक्षियों की फोटो वाला चुनाव चिह्न
ये भी जान लीजिए कि चुनाव आयोग (ECI) ने एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट्स के विरोध के बाद पशु पक्षियों की फोटो वाला चुनाव चिह्न देना बंद कर दिया है. क्योंकि पहले पार्टियों को जिस जानवर का सिंबल दिया जाता था वो रैलियों में उन जानवरों की परेड करवाने लग जाती थीं. ये उन बेजुबान जानवरों के प्रति क्रूरता थी. ये गलत था. लिहाजा अब निर्जीव चीज़ ही चुनाव चिह्न के तौर पर आवंटित की जाती है.