नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2016 में नोटबंदी की घोषणा करके रातोंरात देश को हिला कर रख दिया था. पीएम मोदी ने रातोंरात 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया और लोगों को वैध मुद्रा के लिए अपने पुराने नोटों को बदलने, पैसे जमा करने या एटीएम से एक निश्चित राशि निकालने का निश्चित समय दिया. हालांकि, सरकार के इस कदम पर आज भी चर्चा होती है और हर बार विपक्ष मोदी सरकार को इस पर घेरता नजर आता है.
हालांकि, यह पहली बार नहीं जब देश में नोटबंदी हुई थी. रातों-रात मुद्रा को अवैध बनाने का कदम पहले भी भारत में लिया गया है और वह भी दो बार. लेकिन दोनों बार काले धन को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया. आज हम आपको बता रहे हैं कि 2016 से पहले कब-कब नोटबंदी हुई.
जनवरी 1946: 500 रुपये, 1000 रुपये, और 10,000 रुपये के नोट चलन से बाहर हो गए
यह देश की पहली नोटबंदी थी और यह देश को आजादी मिलने से पहले हुई थी. 11 जनवरी, 1946 को, ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि 12 जनवरी, 1946 से 500 रुपये, 1000 रुपये और 10,000 रुपये के नोट वैध मुद्रा नहीं होंगे. यह कदम कालाबाजारी पर लगाम लगाने के लिए उठाया गया था. पहली नोटबंदी के नतीजे भी लगभग समान थे.
लोगों को सदमा लगा, बैंक में असाधारण रूप से लंबी लाइनें और मध्यम वर्ग की परेशानियां बढ़ रही थीं. पुराने नोटों को उनकी कीमत से 60 और 70 फीसदी पर बेचा जा रहा था. इस कदम को कालाबाजारी करने वालों के लिए 'मौत का झटका' कहा गया था.
जनवरी 1978: 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10,000 रुपये के नोट चलन से बाहर हो गए
जनता दल ने काले धन के लेन-देन पर अंकुश लगाने के लिए साल 1978 में एक बार फिर इस तरह के दूसरे ऐतिहासिक कदम में 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10,000 रुपये के उच्च मुद्रा नोटों को बंद कर दिया. जिन लोगों के पास ये नोट थे, उन्हें उसी साल 24 जनवरी तक - एक हफ्ते के समय में किसी भी उच्च मूल्य के बैंक नोटों को बदलने के लिए कहा गया. उस समय देसाई सरकार में वित्त मंत्री एच.एम. पटेल थे जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वित्त सचिव थे.