विश्व हिन्दू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में विवादित भाषण देकर इलाहबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव (Justice Shekhar Yadav) तीखी प्रतिक्रियाओं और सवालों से घिर गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यादव के बयान को संज्ञान में लेते हुए इलाहबाद हाई कोर्ट से उनके भाषण की जानकारी मांगी है.
इसी बीच, श्रीनगर से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद रूहुल्लाह मेहदी ने संसद में जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव (Impeachment Motion) पेश करने की बात कही है. दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी कहा है कि वह अन्य सांसदों के साथ मिलकर जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करेंगे. तो क्या जस्टिस यादव हाई कोर्ट से निकाले जा सकते हैं? आइए जानते हैं क्या कहते हैं नियम.
क्या था जस्टिस यादव का बयान?
द हिन्दू की एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस यादव ने कहा था कि हिन्दुस्तान बहुसंख्यकों की मर्जी के मुताबिक चलेगा. उन्होंने कहा था कि जहां एक समुदाय के बच्चों को करुणा और सहिष्णुता सिखाई जाती है, वहीं दूसरे समुदाय के बच्चों से इसकी उम्मीद करना मुश्किल है. खासकर जब वे जीव हत्या जैसी चीजें देखते हैं.
उन्होंने समान नागरिक कानून (Uniform Civil Code) पर कहा था कि हिन्दू जहां महिलाओं को देवी की तरह पूजते हैं, वहीं दूसरा समुदाय बहुविवाह और तीन तलाक जैसी प्रथाओं पर चलता है. जब ये खबरें अखबारों में छपीं तो सुप्रीम कोर्ट ने एक नोट में कहा कि उसने खबरों को संज्ञान में लिया है.
क्या न्यायाधीशों के लिए होती है आचार संहिता?
'न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन' (The Restatement of Values of Judicial Life). यही वह दस्तावेज है जो न्यायाधीशों की आचार संहिता तय करता है. सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई 1997 को इसे अपनाया था. इस दस्तावेज का सबसे पहला नियम यह है कि एक न्यायाधीश का बर्ताव ऐसा होना चाहिए जिससे अदालतों में लोगों का विश्वास बढ़े. यह डॉक्यूमेंट इस बात पर जोर देता है कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के न्यायाधीश को निजी स्तर पर भी ऐसा काम करने से बचना चाहिए जिससे अदालतों की विश्वसनीयता को नुकसान हो.
न्यायाधीशों को किसी खास तरह की बात बोलने या न बोलने को लेकर कोई विशेष नियम नहीं है, लेकिन उनके लिए कुछ सीमाएं जरूर तय की गई हैं. बैंगलोर प्रिंसिपल ऑफ ज्यूडीशियल कंडक्ट 2002 के अनुसार, एक न्यायाधीश को हमेशा इस तरह बर्ताव करना चाहिए जिससे न्यायिक ऑफिस की गरिमा बनी रहे. और न्यायालयों की निष्पक्षता और स्वतंत्रता भी बरकरार रहे.
क्या काम से निकाले जा सकते हैं जस्टिस यादव?
संविधान में यह प्रावधान है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को “सिद्ध कदाचार या अक्षमता” (Proved Misbehaviour or incapacity) के आधार पर महाभियोग की प्रक्रिया के बाद राष्ट्रपति के आदेश से हटाया जा सकता है. संसद में महाभियोग प्रस्ताव दो रास्तों से लाया जा सकता है. पहला, लोकसभा और दूसरा राज्यसभा.
लोकसभा से महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए उसपर कम से कम 100 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए. जबकि राज्यसभा में ऐसा करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है. प्रस्ताव पारित होने पर एक जांच समिति का गठन किया जाता है. अगर यह समिति न्यायाधीश को दोषी पाती है तो संसद में एक बार फिर न्यायमूर्ति को हटाने के लिए वोटिंग होती है.
संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के अनुसार, न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्यता के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है. एक बार संसद में यह प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति के सामने इसे रखा जाता है. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने पर ही किसी न्यायाधीश को नौकरी से निकाला जा सकता है.
हटाने के प्रस्ताव के अलावा संसद में कभी भी किसी न्यायाधीश के बर्ताव की चर्चा नहीं हो सकती. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी इन-हाउस प्रक्रिया भी तैयार की है जिसके तहत गंभीर आरोपों का सामना कर रहे न्यायाधीश अपनी मर्जी से रिटायरमेंट ले सकते हैं. इससे वह खुद को और अदालत को महाभियोग जैसी शर्मिंदा करने वाली प्रक्रिया से बचा सकते हैं.
क्या होती है इन-हाउस प्रक्रिया?
सुप्रीम कोर्ट ने महाभियोग से जुड़ी प्रक्रिया 1999 में अपनाई थी और 2014 में इसे सार्वजनिक किया था. इस प्रक्रिया के तहत जस्टिस यादव की शिकायत राष्ट्रपति, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना या चीफ जस्टिस ऑफ इलाहबाद हाई कोर्ट से की जा सकती है. अगर यह शिकायत इलाहबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास जाती है तो वह जस्टिस यादव से उनका जवाब मांगकर भारत के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंचा सकते हैं.
अगर यह शिकायत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास आती है तो वह भी सीजेआई खन्ना तक इसे पहुंचा सकती हैं. और अगर शिकायत सीधा सीजेआई खन्ना तक पहुंचती है तो वह इलाहबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से संपर्क कर सकते हैं. फिर वह जस्टिस यादव से जवाब तलब करके सीजेआई खन्ना को सूचित करेंगे.
अगर सीजेआई खन्ना इन आरोपों को गंभीर पाते हैं तो वह इनकी जांच के लिए भारत की किन्हीं दो हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और एक न्यायमूर्ति की कमिटी गठित कर सकते हैं. अगर इस कमिटी को जस्टिस यादव के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिलते हैं तो उन्हें रिटायर होने के लिए कहा जा सकता है. अगर वह रिटायरमेंट से इनकार करते हैं तो सीजेआई खन्ना महाभियोग के लिए राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को हरी झंडी दिखा सकते हैं.