Independence Day Special: 17 साल की उम्र में नेता जी सुभाष चंद्र बोस के लिए जोड़ा था करोड़ों का चंदा, कहानी आजादी के बाद गुमनामी में जी रहे आर माधवन पिल्लई की

भारत आजाद 1947 में हुआ लेकिन इस आजादी का संघर्ष और इसकी कहानी काफी लंबी है. यूं तो आजादी के लिए ना जानते कितनो ने अपने जान तक की परवाह नहीं की, आजादी की लड़ाई लड़ते लड़ते कितने शहिद हो गए...एक तरफ उस वक्त महात्मा गांधी ने अहिंसा की लौ जलाई तो दूसरी आजाद हिंद फौज की चिंगारी देश भर में फैल चुकी थी.

माधवन पिल्लई
नीतू झा
  • नई दिल्ली,
  • 11 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 1:05 PM IST

कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा. इस धुन को गाते हुए आर माधवन पिल्लई नेता जी की यादों में खो गए आंखों से आंसू बहने लगे लेकिन अगले ही पल एक सैनिक जैसे भाव चेहरे पर आए और जोर से जय हिंद कह कर वो बताते है कि इतने साल बीत गए लेकिन अगर कोई उनसे आज भी ये पूछे की वो नेता जी को कैसे याद करते हैं तो उनका जवाब होगा जैसे एक बच्चा अपने पिता को याद करता है.क्योंकि नेता जी कि वजह से ही देश आजाद हुआ वो डरते नहीं थे किसी से उनका बस एक सपना था और वो सपना था आजाद भारत का.

भारत आजाद 1947 में हुआ लेकिन इस आजादी का संघर्ष और इसकी कहानी काफी लंबी है.यूं तो आजादी के लिए ना जानते कितनो ने अपने जान तक की परवाह नहीं की, आजादी की लड़ाई लड़ते लड़ते कितने शहिद हो गए...एक तरफ उस वक्त महात्मा गांधी ने अहिंसा की लौ जलाई तो दूसरी आजाद हिंद फौज की चिंगारी देश भर में फैल चुकी थी. आजाद हिंद फौज बन कर तो तैयार हो गया, रास बिहारी बोस ने सेना तो इकट्ठा की लेकिन इसको चलाने के लिए, वर्दी और युद्ध के लिए हथियार जुटाना किसी चुनौती जैसा था...उस दौर में नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मुलाकात बर्मा के आर माधवन पिल्लई से हुई. पिल्लई का जन्म तो बर्मा में हुआ लेकिन नेता जी के साथ काम करने और आजाद भारत का सपना देखने की वजह से वो भारत आ गए. आज हम आपको किस्सा सुनाने जा रहे हैं उसी शख्स की जिसने उस दौर में नेता जी के लिए लगभग 15 करोड़ का फंड इकठ्ठा किया था..

आजाद हिंद फौज से जुड़े थे हजारों लोग
आजाद हिंद फौज सिर्फ भारत तक सीमित नहीं था बल्कि विदेशों में भी लोग इससे जुड़े थे. उस दौर को याद करते हैं, वो बताते है की भारत को आजादी अहिंसा से नहीं मिली, 26 हजार लोगों ने आजाद हिंद फौज में अपनी कुर्बानी दी जिनके बिना शायद भारत आजाद नहीं होता.

उसे दौर को याद करते हुए पिल्लई बताते हैं, ये बात तब की है जब नेता जी ने सिंगापुर में एक भाषण दिया था.

"आजादी तुम्हारी खून की कुर्बानी मांगती है इसके दरवाजे पर तुम्हें सब कुछ न्योछावर करना होगा आजादी के लिए तुम्हें अपनी दौलत अपनी जान और अपनी औलाद, तुमने अब तक सब कुछ दिया दौलत शोहरत, फड़कते बाजू धड़कते दिल मगर आजादी की प्यास इतने में नहीं बुझती है, आज मातृभूमि पर सिर चढ़ाने वाले पुजारियों की जरूरत है मैं वादा करता हूं तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा जय हिंद".बस यही वो लफ्ज थे जिसको सुन कर बर्मा में बैठे पिल्लई भारत आ गए. इस दौर में नेता जी को लोग इतना पसंद करते थे की हर वर्ग उनसे जुड़ गया.

पहले  इंडियन इंडिपेंडेंट लीग का हिस्सा थे माधवन
पहले बताते हैं कि आजाद हिंद फौज से पहले वह इंडियन इंडिपेंडेंट लीग का हिस्सा थे और तब वह वहां रिक्रूटिंग ऑफिसर के पद पर तैनात थे आजाद हिंद फौज में नेताजी के जुड़ने के बाद भी उनका पद वही बना रहा और वह आजाद हिंद फौज के लिए चंदा इकट्ठा करने का काम करते थे उसे दौर में उन लोगों ने लगभग 15 करोड रुपए आजाद हिंद फौज के लिए इकट्ठा किए थे. उस वक्त वह शहर शहर घूम कर आजाद हिंद फौज का प्रचार किया करते थे वह लोगों को प्रेरित किया करते थे कि वह भी आजाद हिंद फौज में भर्ती हो.

पिल्लई बताते हैं नेताजी उनकी कला को देखकर उनसे काफी खुश भी हो गए थे उन्हें यकीन नहीं होता था कि मात्र एक 17 साल का बच्चा इतना सारा फंड इकट्ठा कर सकता है. उसे वक्त चलने फिरने के लिए ना घोड़ा गाड़ी होती थी और ना ही मोटरसाइकिल होता था लोग या तो पैदल या फिर कभी-कभी साइकिल पर घूम कर प्रचार किया करते थे. इतने फंड कलेक्शन को देखकर नेताजी भी काफी खुश हुए थे क्योंकि यह उनके लिए गर्व का पल था उन्हीं बाकी देशों के सामने हाथ नहीं फैलाने पड़े बल्कि हिंदुस्तान के पैसों से ही आजाद हिंद फौज की जरूरत का हर सामान आ गया.

पिल्लई बताते है उन्होंने नेता जी को बहुत करीब से देखा उनके साथ काम नहीं किया इस दौर में नेताजी सुभाष चंद्र जैसे किसी नेता का होना संभव नहीं है जो दिन रात सिर्फ देश के बारे में सोचें नेताजी रात को 2:00 बजे तक मीटिंग किया करते और सुबह 6:00 बजे उठ जाते 4 घंटे की नींद भी उन्हें कई बार खराब लगती हो 24 घंटे देश के लिए काम करना चाहते थे. उन्होंने 14 देशों तक अपने आजाद हिंद फौज को बनाया, इसकी भूमिका तैयार की यही वजह है कि उनकी भूमिका कोई और नहीं निभा सकता है.

INA के 26 हजार सैनिकों ने दी कुर्बानी
अंग्रेजो के बीच नेता जी की आजाद हिंद फौज से खौफ बन गया था. क्योंकि वो जानते थे अगर नेता जी की आर्मी बढ़ती रही तो उनका राज करना बहुत मुश्किल हो जाएगा, अंग्रेजों को आजाद हिंद फौज से डर लगता था. 1945 में नेता जी के जाने के बाद आजाद हिंद फौज पर हमले होने लगे लेकिन फौज के इरादे तब भी तत्पर थे. इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजो के 2 लाख लोग युद्ध में मारे गए और आजाद हिंद फौज के 26 हजार सैनानियों ने अपने प्राणों की आहुति देश के लिए दी लेकिन इतने बड़े पैमाने पर अंग्रेजो को पहली बार खदेड़ा गया.

जब तक नेता जी थे तब तक आजाद हिंद फौज की स्थिति बेहतरीन थी लेकिन भारत की आजादी के बाद आजाद हिंद फौज पर किसी का ध्यान नहीं गया, उस पल को याद करते पिल्लई भावुक हो गए उन्होंने कहा हमने कभी देश का बुरा नहीं चाहा लेकिन देश आजाद होने के बाद हमे गद्दार कहा गया. लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू जी से कहा था कि हमे सुभाष चंद्र बोस दे दीजिए हम भारत को आजाद कर देंगे और नेहरू जी ने उस कागज पर हस्ताक्षर भी कर दिए.

आजादी के बाद जब आजाद हिंद फौज के पहचान खोने लगी तब पिल्लई के लिए अपना घर चलाना मुश्किल हो गया, न हाथ में नौकरी थी और ना ही कोई आर्थिक मदद. इसके बाद वो चेन्नई में ट्रक चलाने लगे लेकिन एक बार उनके पुराने साथी से 1971 में उनकी मुलाकात हुई और उनके साथ वो दिल्ली आ गए यहां एंबेसी में गाड़ी चला कर उन्होंने अपने परिवार का भरण पोषण किया. लेकिन कभी किसी सरकार ने उनकी सुध बुध नहीं ली, आजाद हिंद फौज का हर कार्यकर्ता धीरे धीरे खोने लगा लेकिन उनके दिलों से कभी नेता जी के लिए पिता जैसा सम्मान कम नहीं हुआ न ही आजाद हिंद फौज का जज्बा कभी टूटा क्योंकि नेता जी अमर है और अमर है उनका आजाद हिंद फौज.

 

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