How to Stop Using Plastic: प्लास्टिक का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है कम... नए स्टार्टअप आने से बढ़ी उम्मीदें... पर्यावरण को नुकसान होगा कम 

प्लास्टिक सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़े खतरे जैसा है. इसके बावजूद दुनिया में अभी तक इस समस्या का कोई हल नहीं निकला है, जो प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा सके. हालांकि नए स्टार्टअप आने से इसके कम से कम उपयोग की उम्मीदें बढ़ी हैं.

India-Denmark Meeting
मनीष चौरसिया
  • नई दिल्ली,
  • 18 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:00 PM IST
  • हर साल देश में 3.5 मिट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट होता है पैदा 
  • प्लास्टिक के विकल्पों पर कर रहे काम

प्लास्टिक (Plastic) के इस्तेमाल से पर्यावरण को कई नुकसान होते हैं. हालांकि मौजूदा समय में प्लास्टिक के प्रयोग पर पूरी तरह से रोक संभव नहीं है लेकिन बहुत हद तक इसे कम किया जा सकता है. इसी को लेकर दिल्ली में भारत (India) और डेनमार्क (Denmark) ने एक बैठक की.

इसमें प्लास्टिक के इस्तेमाल को इंडस्ट्री में कैसे कम किया जा सकता है, साथ ही जो प्लास्टिक प्रयोग हो रहा है, उसके रीसाइकल और रीयूज को लेकर कई उपायों पर चर्चा की गई. इसमें MCD, नीति निर्माताओं (MCG), (TDB,UNEP, BASF, ICC, ASSOCHAM, GAIL, IOCL, M3M, CSIR, IIT Delhi, TERI.), कई बिजनेस लीडर, रिसर्चर और पर्यावरण विशेषज्ञ शामिल हुए.

नदियों को बचाना है तो रैग पिकर्स को साथ लाना होगा
TERI के Pollution Control and Waste Management के डायरेक्टर सुनील पांडे ने बताया कि पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक से होता है. नदियों के रास्ते होते हुए ये प्लास्टिक अब समुद्र तक पहुंच रही है. समुद्र में पहुंचने वाली प्लास्टिक की मात्रा अब इतनी ज्यादा हो गई है कि आने वाले वक्त में समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगी.

सुनील पांडे बताते हैं कि दरअसल इस प्लास्टिक की वैल्यू जीरो होती है इसलिए कूड़ा बिनने वाले भी इसे नहीं उठाते. हालांकि इस प्लास्टिक को रीसाइकल करके आजकल फर्नीचर बनने लगे हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए को इन रैग पिकर्स को अपने साथ जोड़े और उन्हें ये प्लास्टिक देने के एवज में कुछ आर्थिक लाभ दे ताकि ये प्लास्टिक उन सेंटर्स तक पहुंच सके, जहां इनसे दूसरी चीजें तैयार की जा रही हैं.

अब इस समस्या से निपटने के हैं कई साधन
DRIIV की MD और CEO शिप्रा मिश्रा ने कहा कि हर साल देश में 3.5 मिट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट पैदा होता है. यह प्लास्टिक वेस्ट अलग-अलग सेक्टर से निकलता है. हालांकि पहले प्लास्टिक वेस्ट से निपटने के लिए हमारे पास संसाधन और उपाय कम थे लेकिन अब धीरे-धीरे संसाधन और उपाय दोनों पर तेजी से काम किया जा रहा है.

बहुत सारे नए तरीके इन प्लास्टिक वेस्ट को कम करने में अपनाए जा रहे हैं. खांसकर इंडस्ट्री में जनरेट होने वाले प्लास्टिक के लिए अब कई तरह के विकल्प मौजूद हैं. ये सच है कि इंडस्ट्री से प्लास्टिक को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन उसे कम करने और जो प्लास्टिक पैदा हो रहा है उसे से रीयूज करने के तरीकों पर इंडस्ट्री के साथ मिलकर सरकार काम कर रही है. इसके लिए डेनमार्क से भी हम सोल्यूशन शेयरिंग पर काम कर रहे हैं.

नए स्टार्टअप से बड़ी उम्मीदें
एक केमिकल कंपनी के डायरेक्टर ने बताया कि मौजूदा वक्त में अच्छी बात ये है कि प्लास्टिक वेस्ट से निपटने के लिए कई नए स्टार्टअप सामने आए हैं. इनमें से कुछ प्लास्टिक के विकल्पों पर काम कर रहे हैं. कुछ डेली यूज की प्लास्टिक को कैसे कम हानिकारक बना सकते हैं, इसके उपायों पर काम कर रहे हैं. नदियों को कैसे प्लास्टिक मुक्त कर सकते हैं, इस पर भी कई स्टार्टअप काम कर रहे हैं. अच्छी बात ये कि भारत सरकार भी इन स्टार्टअप को बढ़ावा दे रही है.

 

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