साल 2028 में क्लाइमेट चेंज को लेकर होने वाली सालाना कॉन्फ्रेस ऑफ पार्टीज की मेजबानी भारत को मिल सकती है. COP33 का आयोजन साल 2028 में होना है. कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज यानी COP एक कॉन्फ्रेंस होती है, जिसमें दुनियाभर के सरकारी प्रतिनिधि हर साल जुटते हैं और क्लाइमेट चेंज पर मंथन करते हैं. चलिए आपको बताते हैं कि COP की मेजबानी कैसे मिलती है और इसका क्या प्रोसेस है.
कैसे मिलती है COP की मेजबानी-
COP की अध्यक्षता 5 यूएन रीजनल ग्रुप के बीच रोटेट होती है.इसमें अफ्रीकन स्टेट्स, एशिया-पैसिफिक स्टेट्स, ईस्टर्न यूरोपियन स्टेट्स, लैटिन अमेरिकन और कैबेबियाई स्टेट्स के अलावा वेस्टर्न अमेरिकन और दूसरे स्टेट्स शामिल हैं. इसकी मेजबानी के लिए सबसे पहले किसी देश को होस्ट कंट्री एग्रीमेंट करना होता है.
कौन रखता है प्रस्ताव-
जो भी देश सीओपी की मेजबानी करना चाहते हैं, उनको प्रस्ताव रखना होता है. इसके बाद सचिवालय टीम प्रस्तावित कॉन्फ्रेंस वेन्यू का दौरा करती है. ये टीम प्रस्तावित वेन्यू स्थल का जायजा लेती है. वहां के लॉजिस्टिक, टेक्निकल और फाइनेंशियल एलिमेंट की जानकारी लेती है. टीम इस रिपोर्ट सीओपी ब्यूरो को सौंपती है. COP की नोटिफिकेशन से पहले मेजबान देश को सारी सुविधाओं की जानकारी देनी होती है. इसमें होटल, वीजा, वेन्यू, ट्रांसपोर्ट, मीटिंग की तारीख जैसी जानकारियां शामिल होती हैं.
अगर कोई मेजबानी नहीं करना चाहे तो क्या होगा-
अगर सीओपी की मेजाबनी के लिए कोई देश तैयार नहीं होता है तो क्या होगा? इसके लिए भी व्यवस्था की गई है. अगर कोई भी देश मेजबानी के लिए प्रस्ताव नहीं देता है तो इसका आयोजन जर्मनी के बॉन शहर में किया जाता है. इसकी व्यवस्था पहले से ही की गई है. फीजी के साथ ऐसा ही हुआ था. इस देश ने COP23 की प्रेसिडेंसी ली थी. लेकिन उसने इसका आयोजन नहीं किया. इसके बाद इसका आयोजन बॉन शहर में किया गया.
18 महीने का मिलता है समय-
COP सचिवालय मेजबान देश के दावों की जांच करता है. इसकी प्रक्रिया 18 महीने पहले शुरू होती है. करीब एक साल पहले वेन्यू तय हो जाता है. इस एक साल के दौरान वेन्यू को लेकर पूरी तैयारी करनी होती है. जब एक बार मेजबान देश का नाम तय हो जाता है तो वो देश COP के हेड डेलिगेशन के साथ प्री-COP मीटिंग करता है. इसके लिए अधिकतम 50 देशों को बुलाया जाता है.
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