केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुरुवार को दावा किया कि अमेरिका से भारत जो 21 प्रीडेटर ड्रोन (MQ-9B long endurance drones)खरीद रहा है उसकी कीमत अन्य देशों को दी गई कीमत से 27 फीसदी कम है. उन्होंने कहा कि भारतीय प्रतिनिधि बातचीत के दौरान इसे और कम करने के लिए काम करेंगे.
उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से रेखांकित किया कि अभी तक मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर बातचीत शुरू नहीं हुई है और विश्वास व्यक्त किया कि अंतिम कीमत जितनी अन्य देशों ने दी है उनकी तुलना में कम ही होगी. उन्होंने कहा कि कीमतें तभी बढ़ाई जा सकती हैं जब भारत अतिरिक्त सुविधाओं की मांग करेगा. UK ने ये ड्रोन 6.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर की कीमत में खरीदे हैं लेकिन उनमें सेंसर, हथियार और सर्टिफिकेशन नहीं है और वो केवल ग्रीन एयरक्राफ्ट हैं. उन्होंने कहा, सेंसर, हथियार और पेलोड जैसी सुविधाएं कुल लागत का 60-70 प्रतिशत हिस्सा होती हैं.
कितने का हुआ सौदा?
भारत ने अमेरिका के साथ 31 MQ-9B (16 स्काई गार्डियन और 15 सी गार्डियन ड्रोन) High Altitude Long Endurance (HALE) Remotely Piloted Aircraft Systems (RPAS), जिसे आमतौर पर MQ-9B Predator UAV ड्रोन के रूप में जाना जाता है, खरीदने का सौदा किया है. यह सौदा 3.072 बिलियन अमेरिकी डॉलर (मौजूदा करेंसी एक्सचेंज के हिसाब से 25,200 करोड़ रुपये) का है.इस हिसाब से एक ड्रोन 9.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर में मिलेगा. UAE को यही ड्रोन 16.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर में बेचा गया है. अधिकारी ने कहा कि भारत जिस एमक्यू-9बी को खरीदना चाहता है, वह UAE को बेचे गए ड्रोन के जैसा ही है.उन्होंने कहा कि भारत को दिए जाने वाले ड्रोन बेहतर कॉन्फिगरेशन के साथ हैं.इन्हें जनरल एटॉमिक्स ने बनाया है. ड्रोन जुलाई से मिलने लगेंगे.
MQ-9B ड्रोन के 5 बेहतरीन फीचर्स
कांग्रेस ने उठाए हैं सवाल
अधिकारी के अनुसार, ब्रिटेन की ओर से खरीदे गए ऐसे 16 ड्रोन में से प्रत्येक की कीमत 6.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर थी, लेकिन यह सेंसर, हथियार और प्रमाणन के बिना केवल एक हरित विमान था. सेंसर, हथियार और पेलोड जैसी सुविधाओं पर कुल लागत का 60-70 प्रतिशत हिस्सा खर्च होता है. कांग्रेस ने भारत-अमेरिका ड्रोन सौदे में पूरी पारदर्शिता की मांग की और आरोप लगाया कि 31 एमक्यू-9बी प्रीडेटर यूएवी ड्रोन ऊंची कीमत पर खरीदे जा रहे हैं. हालांकि रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कांग्रेस की ओर से किए गए दावों का खंडन किया. मंत्रालय ने कहा कि ये एक पारदर्शी वन-टू-वन वार्ता है जिसमें भारत सीधे अमेरिका के साथ डील कर रहा है. जनरल एटॉमिक्स अपने विदेशी सैन्य बिक्री कार्यक्रम के तहत केवल अमेरिकी सरकार के माध्यम से भारत को हाई-टेक्नोलॉजी ड्रोन बेच सकता है. रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि ऐसा कोई भी हाई-टेक्नोलॉजी सौदा संघीय अधिग्रहण नियमों के तहत आता है और इसके लिए अमेरिकी संसद की मंजूरी की आवश्यकता होती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 से 24 जून तक अमेरिका के दौरे पर थे. उनकी इस यात्रा से पहले रक्षा मंत्रालय ने 15 जून को अमेरिका से प्रीडेटर ड्रोन सौदे को मंजूरी दे दी. इसके लिए अंतिम फैसला सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) करेगी.