कांग्रेस पार्टी की स्थापना दिसंबर 1885 में एओ ह्यूम ने की थी. आयरन लेडी के नाम से मशहूर देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपना विरोध होता देख पार्टी तोड़ डाली थी और अपनी एक अलग कांग्रेस पार्टी खड़ी कर दी थी. 1969 में इंदिरा गांधी ने 1885 वाले कांग्रेस (ओ) को तोड़ कांग्रेस (आर) का गठन कर लिया था. 1977 में कांग्रेस (ओ) जनता पार्टी के साथ मर्ज हो गई थी. 1978 में इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस (आई) अस्तित्व में आई, जिसे चुनाव आयोग ने 1984 में असली कांग्रेस के तौर पर मान्यता दी. 1996 में पार्टी के नाम से आई हटाया गया और यह इंडियन नेशनल कांग्रेस के रूप में जानी जाने लगी.
1969 में कांग्रेस टूट गई
1967 के पांचवें आमचुनावों में कांग्रेस को पहली बार कड़ी चुनौती मिली. कांग्रेस 520 में 283 सीटें जीत पाई. ये उसका अब तक सबसे खराब प्रदर्शन था. इंदिरा प्रधानमंत्री तो बनी रहीं लेकिन कांग्रेस में अंर्तकलह शुरू हो गई. आखिरकार 1969 में कांग्रेस टूट गई. मूल कांग्रेस की अगुवाई कामराज और मोरारजी देसाई कर रहे थे और इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी बनाई. हालांकि ज्यादातर सांसदों का समर्थन इंदिरा के साथ था. पार्टी टूटने के साथ पार्टी के लोगो पर कब्जे को लेकर लड़ाई शुरू हुई. कांग्रेस (ओ) यानि कांग्रेस ओरिजनल और कांग्रेस (आर) दोनों बैलों की जोड़ी के चुनाव चिह्न पर अपना दावा जता रहे थे. जब ये मामला भारतीय चुनाव आयोग के पास पहुंचा तो उसने बैलों की जोड़ी का कांग्रेस का सिंबल कांग्रेस (ओ) को दिया. ऐसे में इंदिरा ने अपनी कांग्रेस के लिए गाय-बछड़ा का चुनाव चिह्न लिया.
1971 के चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस (आर) को 352 सीटें हासिल हुई
1971 के चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस (आर) गाय-बछड़ा चुनाव चिह्न के साथ लोकसभा चुनाव में उतरी. उसे 44 फीसदी वोटों के साथ 352 सीटें हासिल हुईं जबकि कांग्रेस के दूसरे गुट को महज 10 फीसदी वोट और 16 सीटें मिलीं. इस तरह इंदिरा की कांग्रेस ने असली कांग्रेस का रूतबा हासिल कर लिया. 1971 से लेकर 1977 के चुनावों तक कांग्रेस ने इसी चुनाव चिह्न से चुनाव लड़ा लेकिन हालात कुछ ऐसे पैदा हुए कि फिर कांग्रेस के टूटने की स्थिति आ गई. 1977 के चुनावों में इंदिरा गांधी की बुरी शिकस्त के बाद कांग्रेस के उनके बहुत से सहयोगियों को लगा कि इंदिरा अब खत्म हो चुकी है. लिहाजा कांग्रेस में फिर इंदिरा गांधी को लेकर असंतोष की स्थिति थी. ब्रह्मानंद रेड्डी और देवराज अर्स समेत बहुत से कांग्रेस चाहते थे कि इंदिरा को किनारे कर दिया जाए.
नई पार्टी का नाम कांग्रेस (आई) दिया
2 जनवरी 1978 में इंदिरा ने कांग्रेस को फिर तोड़ते हुए नई पार्टी बनाई. इसे उन्होंने कांग्रेस (आई) का नाम दिया. उन्होंने इसे असली कांग्रेस बताया. इसका असल राष्ट्रीय राजनीति से लेकर राज्यों की राजनीति तक पड़ा. हर जगह कांग्रेस दो हिस्सों में टूट गई. अबकी बार इंदिरा गांधी ने चुनाव आयोग से नए चुनाव चिह्न की मांग की. गाय-बछड़े का चुनाव चिह्न देशभर में कांग्रेस के लिए नकारात्मक चुनाव चिह्न के रूप में पहचान बन गया था. लोग गाय को इंदिरा और बछड़े को संजय गांधी से जोड़कर देख रहे थे. विपक्ष इस चुनाव चिह्न के जरिए मां-बेटे पर लगातार हमला कर रहा था. माना जा रहा था कि इंदिरा खुद अब चुनाव चिह्न से छुटकारा चाहती थीं. जब उन्होंने कांग्रेस को 1978 में तोड़ा तो चुनाव आयोग ने इस सिंबल को फ्रीज कर दिया.
हाथ के पंजे को अपनाया
कांग्रेस के हाथ के पंजे को अपना नया चुनाव चिह्न बनाने की कहानी भी रोचक है. इंदिरा तब पीवी नरसिंहराव के साथ आंध्र प्रदेश के दौरे पर गईं थीं. बूटा सिंह दिल्ली में नए चुनाव चिह्न के बारे में बातचीत करने चुनाव आयोग के कार्यालय गए थे. चुनाव आयोग ने उन्हें हाथी, साइकल और हाथ का पंजा में से एक चिह्न लेने को कहा. बूटा सिंह असमंजस में थे कि क्या करें. उन्होंने इस पर फैसला लेने के लिए इंदिरा गांधी को फोन किया. अगले दिन जाकर आयोग को ये बताना जरूरी था कि कांग्रेस आई कौन सा सिंबल चुन रही है. अगर वो ऐसा नहीं कर सकी तो उसे बगैर किसी तय सिंबल के चुनाव लड़ना होगा. पार्टी में इस पर मंथन होने लगा. आखिरकर इंदिरा गांधी की सहमति से हाथ का पंजा पर मुहर लग गई. इस तरह कांग्रेस को 1952 के आमचुनावों के बाद तीसरी बार नया चुनाव चिह्न मिला. हाथ का सिंबल 1980 में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के लिए हिट साबित हुआ. इंदिरा भारी बहुमत से चुनाव जीतकर फिर सत्ता में लौटीं.