Women’s Day Special: जीरो वेस्ट लाइफ जी रही हैं इंदौर की जनक पलटा मगिलिगन, आदिवासी महिलाओं को सोलर कूकर और लाखों लोगों को ट्रेनिंग देकर किया सशक्त

Women’s Day Special: इंदौर की जनक पलटा मगिलिगन जीरो वेस्ट लाइफ जी रही हैं. वे पिछले कई सालों से आदिवासी महिलाओं से लिए काम कर रही हैं. इतनी ही नहीं बल्कि उन्होंने सोलर कूकर देकर उन महिलाओं को सशक्त करने का भी काम किया. वे आज तक लाखों लोगों को ट्रेनिंग दे चुकी हैं.

इंदौर की जनक पलटा मगिलिगन
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 08 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 2:00 PM IST
  • बचपन से ही कर रही हूं महिलाओं के लिए काम 
  • जीवनसाथी का रहा बड़ा साथ  

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के सनावदिया गांव में जहां हर घर “जोशी जी”, “चौधरी जी” या “चोपड़ा जी” के नाम से जाना जाता है, वहां एक घर है जिसे लोग “जनक पलटा का घर” कहते हैं. इंदौर की 75 साल की जनक पलटा मगिलिगन (Janak Palta McGilligan) को भारत में एनर्जी कंजर्वेशन और सस्टेनेबिलिटी के क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए जाना जाता है. पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित जनक पलटा पिछले 13 सालों से जीरो वेस्ट लाइफ जी रही हैं. उनके मार्गदर्शन में, अब तक 1,000 से अधिक गांवों के 1,65,000 से ज्यादा युवाओं और 6,000 से अधिक ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को सोलर कुकिंग (Solar Cooker) और जैविक खेती में ट्रेनिंग मिल चुकी है. 

आपको बता दें, जनक जिस घर में रहती हैं उसका बिजली का बिल भी जीरो रुपये आता है. इन्हें 'सस्टेनेबिलिटी की रानी' कहा जा सकता है. पद्मश्री के साथ जनक पलटा जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की डायरेक्टर हैं. GNT डिजिटल से बात करते हुए जनक पलटा कहती हैं, “मैं देश के सबसे साफ शहर इंदौर की ब्रांड एम्बेसडर (स्वच्छता) हूं. मेरे घर में आज तक भी कोई कचरा दान नहीं है. मेरी देश की पहली ओपन हार्ट सर्जरी हुई है, मुझे 4 बार कैंसर चुका है लेकिन मैंने उसे भी मात दे दी. यह सब मेरे रहन-सहन और खान-पान का नतीजा है. मैं आज भी कुछ बाजार से खरीदकर नहीं खाती हूं.”

कैसे आया सोलर कुकर का आईडिया?

बताते चलें डॉ. जनक पलटा मगिलिगन जैविक सेतु की सह-संस्थापक भी हैं, जो सोलर फूड प्रोसेसिंग नेटवर्क इंडिया की नेशनल कोऑर्डिनेटर हैं. उनकी ऑर्गनाइजेशन जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट ने सस्टेनेबल डेवलपमेंट में 40,000 से ज्यादा छात्रों को ट्रेनिंग दी है. इन्होंने भारत के 500 गांवों की 6000 से अधिक आदिवासी लड़कियों और युवा महिलाओं को सोलर कुकर से खाना पकाने और उसे लेकर ट्रेनिंग दी है. इतना ही नहीं बल्कि भारतीय गांवों में 500 SK 14 सोलर कुकर स्थापित किए. 

सोलर कुकर का आइडिया कैसे आया इसे लेकर जनक पलटा बताती हैं, “ये साल 1985 की बात है, मैं चंडीगढ़ छोड़कर एक रिसर्च सेंटर में फैलो थी. मैं वहां आदिवासी लड़कियों के लिए इंस्टिट्यूट खोलने के लिए आई थी. तो मैं उनके साथ जब रही तो उन्हें धुएं में खाना बनाते देखा. 302 रातें मैंने 302 गांव में बिताई. बस वहीं से आइडिया आया. मैंने और मेरे पति ने सोलर कुकर का पता किया. हमारे एक दोस्त जर्मनी में थे, फिर बनाने वाले से सीखा. कुछ लोगों ने महिलाओं को सोलर कुकर पर खाना बनाना सिखाना शुरू किया. अब वही उन्हें बेच भी रही हैं और उनसे पैसे कमा रही हैं. 500 गांव में सोलर कुकर गए, महिलाएं धुएं से मुक्त हुई, उनका जीवन बचा, शान बनी और सम्मान मिला. अभी तक मैं 1 लाख 65 हजार लोगों को सिखा चुकी हूं. अब इसमें तीसरी पीढ़ी भी काम कर रही है.”

बचपन से ही कर रही हूं महिलाओं के लिए काम 

दरअसल, जनक पलटा बचपन से ही महिलाओं के लिए काम कर रही हैं. वे बताती हैं कि जब वे कुल 10 साल की थीं तभी से विधवा महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को देखने और समझने लगी थीं. वे कहती हैं, “मैं देखती थी कि हमारी कोई विधवा रिश्तेदार हैं, उनको किस तरह से एक कोने में बिठा दिया जाता था. उन्हें अपने त्योहारों और खुशियों में शामिल नहीं किया जाता था. मुझे ये देखकर काफी खराब लगता था. मैं छोटी-जाति, बड़ी जाति की महिलाओं के साथ भेदभाव..ये सभी चीजें में देख रही थी. तो मैंने ये बदलाव सबसे पहले अपने परिवार से शुरू किया. मैंने छोटी छोटी चीजों को नॉर्मल करना शुरू किया.जैसे जो हमारे घर के पास भंगन रहती थीं उनकी थाली से परांठा उठाकर खा लिया, या कन्या खाने में धोबी की बच्ची या मोची की बच्ची को ले आई. ये काम छोटे-छोटे थे लेकिन इन्हें करके मैंने बदलाव की एक लीग शुरू की. ये बात 1959 की है.”

आगे जनक पलटा कहती हैं, “इसके बाद मैंने विधवाओं को देखा. मेरी बहुत कम उम्र की विधवा बुआ थीं, उनको सास उनको साबुन भी नहीं देती थी. उनके ऊपर कोई ध्यान नहीं देता था. मैंने इतने साल में यह देखा है कि जितने रिवाज महिलाओं से जुड़े हमारे घरों में चल रहे हैं वे सब कहीं न कहीं महिलाओं ने ही बनाए हैं. उनको पोषित करने का काम महिलाएं ही कर रही हैं. अगर वो औरत के लिए खड़ी हो जाएं तो कहीं भी भेदभाव नहीं होगा. लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है कि महिलाओं के अंदर ये भावना होनी चाहिए कि हम बराबर हैं.”

बहाई धर्म को अपनाया और सीखा बराबरी का पाठ 

जनक पलटा के मुताबिक, उन्होंने बहाई धर्म से मानवता का पाठ सीखा. बता दें, बहाई धर्म एक स्वतंत्र धर्म है जो इराक के बगदाद शहर में युगावतार बहाउल्लाह ने स्थापित किया था. यह एकेश्वरवाद और विश्व भर के विभिन्न धर्मों और पंथों की एकमात्र आधारशिला पर जोर देता है. बहाई धर्म में स्त्री-पुरुष की बराबरी की बात की जाती है. इसे लेकर जनक पलटा कहती हैं, “बहाई धर्म में कहा जाता है कि स्त्री-पुरुष बराबर हैं. जगत एक दो पंखों वाला पक्षी है, दोनों पंख जब साझी शक्ति से उड़ेंगे तो ही दुनिया का पक्षी उड़ सकता है. मेरी शादी भी इसी धर्म से हुई. इसमें ये कहा गया है कि स्त्री पुरुष बराबर हैं लेकिन एक जैसे नहीं हैं. पुरुष और महिला एक दूसरे के पूरक हैं."

वे आगे कहती हैं, ”मेरी शादी में भी मैंने जो रिवाज ठीक नहीं थे वो नहीं मानें. मेरे माता पिता ने पूछा कि आप शादी में कौन से रिवाज करोगी? तो मैंने अपनी शर्त पर ये रिवाज किए. जैसे मैंने कहा कि मेरी विधवा बुआ मेरी हल्दी रखेंगी. उसके बाद चूड़ा चढ़ाने के लिए मैंने कहा कि सबसे छोटी वाली मामी जो विधवा थीं, चूड़ा चढाएंगी. लेकिन इसमें सबसे अच्छा रहा कि मेरे माता-पिता का हमेशा सपोर्ट रहा. वो लोग मेरी बात को हमेशा सीरियस लेते थे. मैंने जो बात कही वो मानी गई.” 

कैसा है जनक पलटा का जीवन?

दरअसल, जीरो-वेस्ट के लिए कोई बिजली बिल नहीं बनता है. उनके घर में एक पवन चक्की से बिजली आती है और इतना ही नहीं बल्कि आसपास के 50 दूसरे घरों को भी बिजली देती है. जनक पलटा बताती हैं कि वे कभी खरीदारी करने नहीं जाती, कचरा नहीं फेंकती, पानी की बर्बादी नहीं करती और बिजली का बिल भी नहीं आता. दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने अपने घर को बदलकर रख दिया है ताकि उन्हें सबकुछ यहीं मिल सके उसके लिए उन्हें बाहर न जाना पड़े. फिर चाहे वह बगीचे में लगी सब्जियां हों, दाल हों, चावल हों और यहां तक ​​कि मसालों की जैविक उपज हो, सब कुछ उन्हें घर में उगता है. वह अभी भी खुद अपना खाना पकाती हैं और सोलर कुकर में पानी गर्म करती है. साथ ही पुराने अखबारों से ईंधन पैदा करती हैं और रोशनी और खाना पकाने के लिए उसी ऊर्जा का उपयोग करती हैं. इतना ही नहीं जनक पलटा साल में 365 दिन अपने बगीचे में अपना फेस पैक, शैम्पू, साबुन, डिटर्जेंट और टूथपेस्ट बनाती हैं.

जीवनसाथी का रहा बड़ा साथ  

बताते चलें कि 2011 में, जनक पलटा के पति जिमी मैकगिलिगन की मृत्यु हो गई. जिसके बाद जनक पलटा इंदौर के पास सनावदिया गांव में अपने घर चली गईं. और फिर वहीं से औरतों के लिए और पर्यावरण के लिए काम करने लगीं. इसका श्रेय अपने पति को देते हुए जनक पलटा कहती हैं, “ये बहुत जरूरी है कि आपका पार्टनर या आपका जीवनसाथी ऐसा हो. मैं इतने बड़े बड़े निर्णय ले पाई क्योंकि मेरे साथ मेरे पति ने भी महिलाओं के हकों के लिए काम किया, वे उनके हकों के लिए मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े. जिंदगी भर काम किया. और आखिरी सांस तक करते रहे.”   

 

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