History of Imarti: अकबर के लाडले ने की कुछ अलग मीठा खाने की फरमाइश, तो खानसामे ने पेश की इमरती

इमरती को एक ही नहीं बल्कि कई नामों से पुकारा जाता है. कोई इसे अमीटी बुलाता है तो कोई इसे अमरीती, जांगरी और जांगिरी भी कहते हैं. आज की कहानी में जानेंगे इमरती और इसके दिलचस्प किस्से के बारे में जिसके नेता, राजनेता भी थे दीवाने.

इमरती का इतिहास
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 09 जून 2023,
  • अपडेटेड 12:49 PM IST

चासनी में डूबी, गोल-गोल घूमावदार नारंगी रंग की चीज के बारे में अगर हम बात करें तो आपके दिमाग शायद पहला ख्याल जलेबी ही आए. लेकिन आज हम बात करेंगे जलेबी की चचेरी बहन इमरती की, जो स्वाद और बनावट के मामले में उससे बिल्कुल अलग है. इसे तरह-तरह के नामों से भी जाना जाता है. कई जगह इसे अमरीती तो तई जगह इसे जांगरी और जंगिरी के नाम से भी जाना जाता है.

इमरती खाने की हम बात करें तो रबड़ी के साथ इसका कॉम्बिनेशन सबसे बेस्ट होता है. अब खाकर तो मजा आ गया लेकिन इसे पहली बार कैसे बनाया गया था क्या आपको मालूम है? कहते हैं कि जिस इमरती को लोग इतने चाव से खाते हैं उसे बोरियत मिटाने के लिए बनाया गया था. उसके बाद यह इतनी लोकप्रिय हुई कि देश भर में इसे पसंद किया जाने लगा.

क्या है इसका इतिहास?
इसका बहुत प्राचीन इतिहास है और इसका आविष्कार मुगल रसोइयों द्वारा किया गया था. एक राजकुमार जहांगीर को मिठाई का बड़ा शौक था. अपने नौकरों द्वारा बनाई जा रही नियमित मिठाई खाकर वो ऊब गया था इसलिए वह कुछ नया खाना चाहता था. उसने रसोइयों से कुछ नया बनाने के लिए कहा. तभी खानसामा को इमरती जैसा डेजर्ट याद आया जिसे जुलबिया फारसी में जुलबिया कहते हैं. उन्होंने इसे थोड़ा सा ट्विस्ट दिया और उड़द की दाल का बैटर बनाकर उसे पहले फ्राई किया और फिर चाशनी में डुबोकर राजकुमार को पेश किया. यह रेसिपी राजकुमार सलीम को बेहद पसंद आई और यही कारण है कि इसका नाम जांगरी पड़ा.

जलेबी से कितनी अलग है इमरती
देखे में भले जलेबी और इमरती एक सी लगती हैं लेकिन इन दोनों में एक बड़ा अंतर है. इनमें सबसे बड़ा अंतर ये है कि जलेबी को मैदे से बनाया जाता है और इमरती को उड़द की दाल से बनाया जाता है. यह जलेबी से थोड़ा ज्यादा ड्राई होती है. इमरती की सबसे पुरानी दुकान उत्तरप्रदेश के जौनपुर में है जो लगभग डेढ़ दशक पुरानी है. इस दुकान का नाम बेनी प्रसाद है. अंग्रेजों के समय से ही यहां पर इमरती मिल रही है, जिसे आज उनकी चौथी पीढ़ी चला रही है. देसी घी में बनी यहां की इमरती मोटी मलाईदार रबड़ी के साथ खूब शौक से खाई जाती है.

इमरती जितनी खास होती है, उतने ही खास इसके फैंस भी है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को यहां की इमरती खासा पसंद थी. अटल जी तो खाने पीने के बहुत शौकीन थे उनके लिए यहां से इमरती जाती थीं. इमरती के स्वाद ने यूपी के पूर्व सीएम की पत्नी और समाजवादी पार्टी की पूर्व सांसद डिंपल यादव को भी अपना दीवाना बनाया है. कहते हैं वह इन इमरतियों को खासा जौनपुर से मंगवाती भी हैं. 

कैसे बनाई जाती है इमरती
इमरती बनाने के लिए सबसे पहले उड़द दाल और चावल को धोकर भिगोया जाता है. इसके बाद इसे मिक्सी में अच्छे से पीस लें. बाद में इसमें कलर के लिए ऑरेंज फूड मिला दें. अब एक तार वाली चाश्नी बना लें. अब एक कढ़ाई गर्म करें और मसलन के कपड़े में इमरी के बैटर को भर लें और कपड़े में एकदम पतला सा छेद कर दें. अब गर्म तेल में इमरती को छान लें और फिर सुनहरा होने तक फ्राई करें. अब इसे 25 मिनट के लिए चाश्नी में डाल कर छोड़ दें. अच्छी तरह से सोख लेने के बाद आपकी इमरती बनकर तैयार हो जाएगी.

 

 

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