Independence Day: सबसे कम उम्र के उस शहीद क्रांतिकारी की कहानी, जिसकी चिता की राख से देशभक्तों ने बनाए थे ताबीज

खुदीराम बोस(Khudiram Bose) भारत के सबसे उम्र के शहीद क्रांतिकारी हैं. खुदीराम बोस के कारनामों से अंग्रेज काफी परेशान थे. 15 साल की उम्र में ही खुदीराम क्रांतिवीर बन गए थे. खुदीराम बोस को जब फांसी दी गई तब उनके हाथ में गीता थी.

Khudiram Bose(Photo Credit: X/India History Pic)
ऋषभ देव
  • नई दिल्ली,
  • 14 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 5:38 PM IST

साल 1905 में बंगाल विभाजन के बाद कलकत्ता के मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड ने एक 15 साल के लड़के को 15 बेंत लगाने की सजा इसलिए दी क्योंकि उस लड़के ने वंदे मातरम का नारा लगाया था.

लगभग दो साल के बाद इसी लड़के ने किंग्सफोर्ड की बग्गी को बम से उड़ा दिया. जब उस लड़के को फांसी की सजा दी जा रही थी तब वो सीना तानकर खड़ा था और मुस्कुरा रहा था. इस क्रांतिवीर का नाम है, खुदीराम बोस

कहा जाता है कि शहीद क्रांतिवीर खुदीराम बोस के अंतिम संस्कार के बाद लोगों ने उनकी चिता की राख से ताबीज बनाए ताकि उनके बच्चे भी ऐसे ही देशभक्त बने. खुदीराम बोस सबसे कम उम्र के भारतीय क्रांतिकारी हैं जिनको अंग्रेजों ने फांसी दी थी. 

खुदीराम बोस ने अपनी छोटी-सी जिंदगी में कई साहसी और बड़े काम किए थे. खुदीराम बोस अपने काम से अंग्रेजों को परेशान कर रखे थे. आइए जानते हैं सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी खुदीराम बोस की कहानी.

खुदीराम बोस का बचपन
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मोहोबनी में हुआ था. खुदीराम के पिता त्रैलोक्यनाथ बोस तहसीलदार थे. बचपन में ही खुदीराम बोस के माता-पिता की मौत हो गई. 

इसके बाद खुदीराम बोस को उनकी बड़ी बहन ने पाला. साल 1902-03 में खुदीराम बोस क्रांतिकारी समूहों में शामिल होने लगे. यहां होने वाली चर्चाओं में खुदीराम काफी एक्टिव रहते थे. 15 साल की उम्र में खुदीराम बोस क्रांतिकारी बन गए.

पर्चे बांटते पकड़े गए
क्रांतिकारी खुदीराम बोस को पर्चे बांटने के काम दिया गया. खुदीराम अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई के लिए वंदे मातरम के पर्चे बांटा करते थे.

साल 1906 में सत्येंद्रनाथ बोस ने ब्रिटिश शासन के विरोध करते हुए वंदे मातरम का पर्चा छपवाया था. मिदनापुर में एक मेले में इस पर्चे को बांटने की जिम्मेदारी खुदीराम बोस को दी गई. खुदीराम जब मेले में पर्चे बांट रहे थे तो एक व्यक्ति ने इसकी जानकारी सिपाही को दे दी.

सिपाही को जड़ा मुक्का
पुलिस के सिपाही ने मेले में खुदीराम बोस को पकड़ने की कोशिश की. वहां से भागने के लिए खुदीराम बोस ने सिपाही के मुंह में एक मुक्का जड़ दिया. इस दौरान दूसरे पुलिस वाले वहां पहुंच गए और खुदीराम को पकड़ लिया.

इसी मेले में सत्येन्द्रनाथ भी घूम रहे थे. उन्होंने जब ये देखा तो सिपाहियों से कहा, डिप्टी मजिस्ट्रेट के लड़के को क्या पकड़ा है? डरकर सिपाहियों ने खुदीराम को छोड़ दिया और खुदीराम बोस वहां से रफूचक्कर हो गए.

विदेशी गोदाम में लगाई आग
खुदीराम बोस ने अपनी छोटी-सी क्रांतिकारी जिंदगी में कई कारनामे किए. मिदनीपुर में खुदीराम बोस विदेशी सामान का विरोध कर रहे थे. इसके बावजूद कई दुकानदार विदेशी सामान को लगातार बेच रहे थे. इन दुकानदारों पर जब चेतावनी का असर नहीं हुआ तो खुदीराम बोस ने विदेशी सामान से भरे गोदाम में आग लगा दी.

जज को मारने का प्लान
साल 1908 तक मेदिनीपुर में खुदीराम बड़े क्रांतिकारी बन गए थे. साल 1908 में खुदीराम बोस कलकत्ता चले गए. कलकत्ता में खुदीराम बोस अपने जैसे क्रांतिकारियों से मिले. कलकत्ता में डगलस किंग्सफोर्ड लोगों पर बहुत जुल्म करता था. 

क्रांतिकारियों ने डगलस डगलस किंग्सफोर्ड को मारने का प्लान बनाया. डगलस क्रांतिकारियों के इस प्लान के बारे में कहीं से पता चल गया. किंग्सफोर्ड ने डरकर अपना ट्रांसफर बिहार के मुजफ्फरपुर में करा लिया. क्रांतिकारी हर हाल में डगलस को मारना चाहते थे.

मुजफ्फरपुर में बम धमाका
डगलस किंग्सफोर्ड को मारने का काम खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को दिया गया. दोनों को पिस्तौल के साथ मुजफ्फरपुर भेजा गया. डगलस किंग्सफोर्ड को मारने के लिए बरिन्द्र कुमार घोष और हेमचन्द्र कानूनगो ने एक बम बनाया था.

दोनों ने कई दिनों तक डगलस किंग्सफोर्ड के बारे में अच्छे से पता किया. इससे ये अंदाजा हो गया है कि किंग्सफोर्ड हर रात को अपनी पत्नी के साथ बग्घी में स्टेशन क्लब जाते हैं. इसके बाद डगलस किंग्सफोर्ड को मारने की तारीख 30 अप्रैल 1908 पक्की की गई.

30 अप्रैल 1908 को रात के समय डगलस किंग्सफोर्ड अपनी पत्नी के साथ वापस लौट रहे थे. साथ में एक दूसरी बग्घी भी थी जिसमें दो महिलाएं बैठी हुई थीं. खुदीराम ने बग्घी को आता देख उस पर बम फेंक दिया. खुदीराम बोस ने डगलस की बग्घी समझकर महिलाओं वाली बग्गी पर बम फेंका था.

कैसे पकड़े गए खुदीराम?
इस हमले में बग्घी में सवार दोनों महिलाओं की मौत हो गई. डगलस किंग्सफोर्ड और उनकी पत्नी हमले से बच गए. हमले के बाद खुदीराम बोस और प्रफुल्ल वहां से भाग गए. जल्दबाजी में भागते गुए खुदीराम बोस के जूते वहीं छूट गए.

खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाक अलग-अलग भागने लगे. जब प्रफुल्ल चाक को सिपाहियों ने घेर लिया तो प्रफुल्ल ने खुद को गोली मार ली. वहीं 1 मई को खुदीराम भी पकड़े गए. खुदीराम के पास से 37 कारतूस मिले. खुदीराम बोस को हादसे वाली जगह पर मिले जूते पहनाए गए तो वो उनको एकदम फिट आए.

खुदीराम को फांसी
खुदीराम बोस को जब कोर्ट लाया गया तो सड़क पर लोग जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. एक महीने के भीतर की कोर्ट ने खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुना दी. 11 अगस्त 1908 को पहली बार भारत में एक किशोर को फांसी दी गई.

फांसी के समय खुदीराम बोस सीना तानकर खड़े थे और मुस्कुरा रहे थे. खुदीराम बोस के हाथ में गीता थी. जेल के बाहर लोग वंदे मातरम का नारा लगा रहे थे. आज भी भारत की आजादी की लड़ाई में बलिदान देने वाले खुदीराम बोस को याद किया जाता है.  

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