International Girl Child Day: अजनबी नहीं, अपनों से भी सावधानी है ज़रूरी, जानिए माता पिता कैसे अपने बच्चों को सिखा सकते हैं गुड टच और बैड टच

International Girl Child Day: आंकड़ों के अनुसार भारत की 42 प्रतिशत बेटियां 19 की उम्र तक पहुंचने से पहले ही यौन उत्पीड़न का शिकार हो जाती हैं. दुर्भाग्यवश, बच्चों के साथ होने वाली यौन उत्पीड़न की घटनाओं में 90 प्रतिशत अपराधी कोई जान-पहचान का इंसान ही होता है. इस अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर, आइए जानते हैं कि हम अपने बच्चों को इन अनचाही घटनाओं केे खिलाफ कैसे तैयार कर सकते हैं.

International Girl Child Day
शादाब खान
  • नई दिल्ली,
  • 11 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 7:40 PM IST

अयोध्या के सोहावल जिले के ढेमवा गांव में मौजूद कम्पोजिट स्कूल में लक्ष्मी पटेल बच्चों को 'गुड टच' और 'बैड टच' के बीच का फर्क बता रही हैं.  पांचवीं से आठवीं क्लास तक के बच्चों को इस संवेदनशील विषय के बारे में शिक्षित करते हुए लक्ष्मी को कई  चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. बहरहाल, वह दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों से दूर बच्चों को अनचाही परिस्थितियों के लिए तैयार कर रही हैं.

एक सच यह भी है कि लक्ष्मी जैसे शिक्षक बच्चों को संवेदनशील परिस्थितियों के लिए तैयार कर रहे हैं. एक सच यह भी है कि जहां एक तरफ भारत पूरी दुनिया के साथ अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहा है, वहीं आंकड़े बताते हैं कि भारत की कम से कम 42 प्रतिशत बेटियां 19 की उम्र तक पहुंचने से पहले यौन शोषण का शिकार हो जाती हैं.

अफसोस की बात यह भी है कि बच्चों को विश्वास दिलाकर उनके साथ दुर्व्यवहार करने वालों में  90 प्रतिशत लोग उनके परिचित ही  होते हैं. अच्छे और बुरे स्पर्श की शिक्षा भारत में चाहे जब तक फैले, यह जरूरी है कि सबसे पहले माता-पिता खुद अपने बच्चों को अनचाहे संकटों के लिए तैयार करें. 

क्या होता है गुड टच और बैड टच?
'गुड टच' यानी अच्छा स्पर्श और 'बैड टच' यानी बुरा स्पर्श. आसान शब्दों में कहें तो गुड टच वह होता है जब कोई अनजान या जाना पहचाना व्यक्ति किसी बच्चे को स्पर्श करे और उसे अच्छा और सुरक्षित महसूस हो. मिसाल के तौर पर बच्चों से हाथ मिलाना, उनकी  पीठ थपथपाना या उन्हें 'हाई फाइव' देना.

इसके बरक्स, बैड टच वे होते हैं जो बच्चों को असहज और असुरक्षित महसूस करवा सकते हैं. मिसाल के तौर पर बच्चों के गुप्तांगों को छूना या उनके शरीर को सहलाना. लैंगिक हिंसा के खिलाफ काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन ब्रेकथ्रु (Breakthrough NGO) की सीनियर मैनेजर (कंटेंट और डिजाइन) नितिका बताती हैं कि बैड टच की स्थिति में बच्चों को तीन एक्शन लेने की सलाह दी जाती है- बुरे स्पर्श को पहचानना, उसका विरोध करना और फिर किसी भरोसेमंद वयस्क को उसके बारे में सूचित करना.

सातवीं क्लास के बच्चों को पढ़ाती हुईं लक्ष्मी पटेल

बच्चों को तीन साल की उम्र से गुड टच और बैड टच की शिक्षा दी जा सकती है. लक्ष्मी कहती हैं कि एक बार आप बच्चों को अच्छे और बुरे शारीरिक संपर्क के बारे में सिखा दें तो न सिर्फ वे दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के बीच फर्क करना सीख जाएंगे, बल्कि सेल्फ डिफेंस के प्रति पहला कदम भी बढ़ा लेंगे. 

बच्चों को कैसे गुड टच-बैड टच सिखाएं मां-बाप?
कई माता-पिता बच्चों को गुड टच और बैड टच सिखाने की जरूरत समझते हैं. लेकिन कई स्कूलों में इसकी शिक्षा के अभाव के कारण उनके सामने यह चुनौती होती है कि वे ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर अपने बच्चों से कैसे बात करें? लक्ष्मी इस सवाल का जवाब देते हुए  कहती हैं कि माता-पिता अपने बच्चों को खेल-कूद के जरिए, छोटी कहानियों के जरिए और कार्टून दिखाकर इस बारे में समझा सकते हैं. अपने बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में बताते हुए माता-पिता को कई अन्य बातों का ध्यान भी रखना चाहिए. 

बच्चों को बताएं, वे अपनी बॉडी के मालिक हैं: माता-पिता इस शिक्षा की शुरुआत अपने बच्चों को यह सिखाकर कर सकते हैं कि वे अपनी बॉडी के मालिक हैं. इसलिए अगर उन्हें कोई स्पर्श असहज कर रहा है तो 'ना' कहने में कोई  बुराई नहीं. नितिका कहती हैं, "बच्चों को सिखाना चाहिए कि यह शरीर उनका है, इसलिए वह फैसला कर सकते हैं कि कौनसा स्पर्श उन्हें सहज महसूस करवा रहा है और कौनसा नहीं." 

वह कहती हैं, "किसी स्पर्श के पीछे मंशा चाहे जो भी हो, बच्चों को यह फैसला करने का अधिकार होना चाहिए कि एक स्पर्श उन्हें असहज महसूस करवा रहा है. ऐसे मामलों में बच्चों के पास स्वायत्तता होनी चाहिए." 

अमेरिका के मिशिगन में काम करने वाली बच्चों की डॉक्टर (Pediatrician) एलिसन डिकसन इसके संबंध में एक उदाहरण भी देती हैं.  वह कहती हैं, "आप अपनी दिनचर्या की चीजों के जरिए भी बच्चों को उनके शरीर की स्वायत्तता सिखा सकते हैं. मिसाल के तौर पर, अगर आप कार में बैठ रहे हैं तो बच्चों से कहें, 'हमें आपके शरीर को सुरक्षित रखना है. इसलिए सीट बेल्ट लगाएं." 

सुरक्षित लोगों और बातों के बारे में समझाएं: बच्चों को यह बताएं कि वे किन बड़े लोगों पर भरोसा कर सकते हैं. साथ ही यह भी बताएं कि कौनसी बातें माता-पिता के साथ साझा करने में कोई बुराई नहीं. बच्चों  को निशाना बनाने वाले लोग अक्सर इसी बात पर निर्भर रहते हैं कि उनका 'सीक्रेट' बच्चे अपने सीनों में दफ्न रखेंगे और बड़ों के साथ साझा नहीं करेंगे. ऐसे में अगर आप अपने बच्चों को खुलकर बात करने और सवाल करने के लिए तैयार कर रहे हैं तो आप उन्हें कई खतरों से बचा रहे हैं. 

नितिका मिसाल देती हैं, "कई बार हमारे घरों में ही ऐसे लोग आते हैं जिनसे बच्चे सुरक्षित नहीं होते. अगर ऐसे लोग बच्चों को 'बुरा स्पर्श' अनुभव करवाते हैं तो हमें बच्चों को सिखाना होगा कि वह ना कह सकें. अपना विरोध प्रकट कर सकें. साथ ही वह इसके बाद किसी भरोसेमंद वयस्क को इसके बारे में बता सकें. स्कूल में हैं तो टीचर को और घर पर हैं तो माता-पिता को." 

साफ भाषा का इस्तेमाल करें: बच्चों को ट्रेनिंग देते हुए यह भी जरूरी है कि उन्हें साफ-साफ शब्दों में सब कुछ समझाया जाए. बच्चों को उनके शरीर के सभी अंगों के बारे में बताया जाए. उनके गुप्तांगों के बारे में भी. नितिका कहती हैं कि भले ही माता-पिता अपने शब्द बच्चों की उम्र के अनुसार रखें लेकिन इन बातों से दूर न भागें. वह कहती हैं कि बच्चों के विकास के लिए खुलकर बात करना जरूरी है.

नितिका  कहती हैं, "हम हमेशा उनके साथ नहीं रह सकते. हम हमेशा उनकी रक्षा नहीं कर सकते. इसलिए हमें उनसे इन विषयों पर खुलकर बात करें ताकि वह भी खुलकर खुद को व्यक्त करना सीखें." 

जरूरी है कि माता-पिता इन शब्दों का इस्तेमाल करें ताकि बच्चों के सामने आने वाले खतरों को टाला जा सके. इसके बाद माता-पिता अपने बच्चों के साथ 'रोल-प्लेइंग' भी कर सकते हैं जहां वे एक किरदार निभाएंगे और बच्चों को गुड टच-बैड टच के बीच में फर्क करने के लिए कहेंगे. 

सुरक्षित माहौल है बेहद जरूरी
तमाम ट्रेनिंग और अभ्यास के बाद जरूरी है कि बच्चों के लिए माता-पिता एक सुरक्षित माहौल तैयार करें. बच्चों को यह महसूस होना चाहिए कि वे अपने माता-पिता के साथ हर हाल में सुरक्षित हैं. और किसी भी व्यक्ति या घटना के बारे में निसंकोच बात कर सकते हैं. नितिका कहती  हैं, "माता-पिता अपने बच्चों को सुरक्षित रखना चाहते हैं. ऐसे में वे कई बार उनकी स्वायत्तता को नजरंदाज करते हैं. वे सोचते हैं कि बच्चे ऐसे संवेदनशील विषय को नहीं समझ सकेंगे."

वह कहती हैं, "हमारे समाज का पितृसत्तातमक ढांचा ऐसा है कि अगर बच्चे को संजीदा बात भी करें तो उन्हें बच्चा ही समझा जाता है. यह हमारे समाज की एक समस्या है. दरअसल हमें बच्चों के साथ लगातार इस मुद्दे पर बात करनी चाहिए और एक सुरक्षित माहौल तैयार करना चाहिए. ताकि बच्चे कभी भी खुलकर हमसे चीजें साझा कर सकें."

लक्ष्मी कहती हैं, "सभी माता-पिता को अपने बच्चों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि वे हमेशा उनके साथ हैं. बच्चों को गुड टच-बैड टच सिखाने में माता-पिता अहम भूमिका निभाते हैं. माता-पिता को अपने बच्चों के साथ ईमानदार बातचीत का माहौल रखना चाहिए. इससे बच्चे शारीरिक संपर्क के बारे में उनसे खुलकर बात कर सकेंगे." 

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