International Nurses Day 2022: कोरोना वार्ड से लेकर वैक्सीनेशन तक, हर अभियान में देश की ताकत बनीं इन सिस्टर दीदी को सलाम

हर साल 12 मई को International Nurses Day ब्रिटिश नर्स और समाज सुधारक, फ्लोरेंस नाइटिंगेल के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र के सुधार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था.

International Nurses Day 2022 (Representational Photo: Pixabay)
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 12 मई 2022,
  • अपडेटेड 12:02 PM IST
  • 12 मई को मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस
  • 1974 से हुई थी इस दिन को मनाने की शुरुआत

हर साल दुनियाभर में 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस  मनाया जाता है. मशहूर नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म दिवस यानी 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को मनाने की शुरुआत 1974 से हुई थी. यह दिन दुनियभर की नर्सेस के लिए समर्पित है जो दिन-रात अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों की देखभाल करती हैं.

खासकर कि कोरोना काल में जिस तरह से नर्सेज ने फ्रंट पर रहकर मोर्चा संभाला है, उसके बाद उन्हें मेडिकल क्षेत्र के योद्धा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं है. अपनी जान की परवाह किए बिना हमारी नर्सेज दिन-रात कोविड-19 वार्ड्स में ड्यूटी करती रहीं. कई-कई हफ्तों तक अपने घर भी नहीं जा सकीं और अपनों से दूर रहकर लोगों की सेवा की ताकि वे अपने परिवार के पास सुरक्षित लौटें. 

आज ऐसी ही कुछ 'सिस्टर दीदी' की कहानी हम आपको बता रहे हैं, जिन्होंने अपनी ड्यूटी से बढ़कर लोगों की सेवा की: 

1. प्रेग्नेंसी में भी की ड्यूटी 

कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले की रूपा प्रवीन राव ने अपनी प्रेग्नेंसी के 9वें महीने में भी ड्यूटी की थी. एएनआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूपा जयचामाराजेंद्र सरकारी अस्पताल में नर्स हैं और हर दिन अपने गजनुरु गांव से तीर्थहल्ली तालुक तक आती हैं. जिसमें उन्हें लगभग एक घंटा लगता है. कोविड-19 की पहली लहर के दौरान वह प्रेग्नेंट थीं पर फिर भी उन्होंने अपनी ड्यूटी पूरी की क्योंकि उस समय देश को अपने मेडिकल स्टाफ की जरूरत थी. 

2. मरीजों को बचाते हुए गंवा दी अपनी जान 

हैदराबाद, तेलंगाना में गवर्नमेंट जनरल एंड चेस्ट हॉस्पिटल (GGCH) में 58 वर्षीय हेड नर्स विक्टोरिया जयमणि अपने 30 साल के नर्सिंग करियर के बाद जुलाई, 2020 में सेवानिवृत्त होने वाली थीं. लेकिन अपना कार्यकाल पूरा करने से कुछ महीने पहले ही उन पर कोविड-19 से जूझ रह मरीजों की देखभाल करने की जिम्मेदारी आ गई. 

विक्टोरिया ने दिन-रात कोविड-19 वार्ड में ड्यूटी दी. पर COVID-19 के मरीजों की देखभाल करते हुए वह खुद संक्रमित हो गईं और 26 जून, 2020 को इस दुनिया से अलविदा कह दिया. एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, वह तेलंगाना में COVID-19 से अपनी जान गंवाने वाली पहली स्वास्थ्य कार्यकर्ता थीं. 

3. अपनों से दूर रहकर बचाई लोगों की जान 

कोविड-19 की पहली लहर के दौरान गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (GMCH) में कार्यरत स्टाफ नर्स मिंटू कलिता को अपने परिवार से दूर रहना पड़ा. यहां तक कि वह अपनी 10 साल की बेटी के साथ भी सही से समय नहीं बिता पाती थीं. एनडीटीवी को कलिता ने बताया कि हर महीने सात दिनों के लिए, वह COVID वार्ड में ड्यूटी करती थीं और उसके बाद सात दिनों तक उन्हें क्वारंटाइन में रहना पड़ता था. 

इसके बाद उन्हें एक दिन का अंतराल मिलता और वह अगले 14 दिनों के लिए सामान्य आईसीयू (गहन चिकित्सा इकाई) वार्ड में काम करतीं. इस दौरान वह अपने परिवार से ज्यादातर दूर ही रहीं. घर जाती तो भी एक अलग कमरे में रहती थीं ताकि उनका परिवार सुरक्षित रहे. पर एक दिन के लिए भी वह अपनी ड्यूटी से पीछे नहीं हटीं. 


 

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