आज महिलाएं घर से अकेले बाहर निकलने, व्यक्तिगत और व्यावसायिक जोखिम लेने, जुनून के साथ-साथ पैसे के लिए, काम करने के लिए जागरूक और सशक्त हो गई हैं. फिर भी उन्हें सक्षम होने के लिए और उन्हें मजबूत और सुरक्षित बनाने के लिए कानूनों का होना जरूरी है. इसीलिए भारत में हर महिला के पास अपने अधिकार हैं. हालांकि, भारत में ज्यादातर महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं है.
लगभग हर भारतीय महिला ने ऐसे हालात देखे हैं जहां उन्हें अपने आस-पास के पुरुषों से डर लगता है. लेकिन उन्हें डरने की जरूरत नहीं है, उनके पास अपने कानून और अधिकार दोनों हैं. आज हम आपको कुछ ऐसे ही कानूनों और अधिकारों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो सभी महिलाओं को जानने जरूरी हैं.
कानून जो हर महिला को पता होने चाहिए
1. मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार
जब कोई महिला बिना किसी वकील के साथ पुलिस थाने जाती है, तो ज्यादातर बार या तो उसे गलत तरीके से ट्रीट किया जाता है या उसे नजरअंदाज किया जाता है. कई बार तो तथ्यों के बयान के लिए उसे अपमानित तक भी किया जाता है. हालांकि, उसे कानूनी सहायता लेने का पूरा अधिकार है. जरूरत हो तो वह उसकी मांग कर सकती है.
2. बयान निजी तौर पर देने का अधिकार
कोई भी महिला जो बलात्कार और यौन शोषण से बची है, उसे अपना बयान निजी तौर पर दर्ज करने का अधिकार है, यानी केवल मजिस्ट्रेट के सामने किसी अन्य व्यक्ति/अधिकारी द्वारा सुने बिना. इसके अलावा, उसे महिला कांस्टेबल या पुलिस अधिकारी के सामने व्यक्तिगत रूप से अपना बयान दर्ज कराने की भी आजादी है. सीआरपीसी की धारा-164 के तहत, पुलिस से अपेक्षा की जाती है कि वह लोगों के सामने उसे तनाव दिए बिना उसकी निजता का सम्मान करें.
3. वर्चुअल शिकायतों का अधिकार
महिलाओं को सशक्त बनाने और उनकी रक्षा करने के लिए दिल्ली पुलिस ने कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं ताकि उन्हें ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने के साथ-साथ जीरो एफआईआर दर्ज करने की अनुमति मिल सके. एक महिला को डिप्टी कमिश्नर या पुलिस कमिश्नर के लेवल के एक सीनियर पुलिस ऑफिसर को ईमेल के साथ-साथ एक पंजीकृत डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करने का विशेषाधिकार है.
4. गिरफ्तारी न करने का अधिकार
किसी भी महिला को सुबह 6 बजे से पहले और शाम 6 बजे के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. भले ही महिला के खिलाफ सिविल प्रोसिजर कोड ऑफ इंडिया, 1973 की धारा - 46 के तहत गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया हो.
5. थाने न बुलाए जाने का अधिकार
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-160 के तहत किसी महिला को पूछताछ के लिए थाने आने के लिए निर्देशित/मजबूर नहीं किया जा सकता है. यह कानून भारतीय महिलाओं को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन में शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं होने का अधिकार प्रदान करता है. इसके मुताबिक, पुलिस महिला कांस्टेबल और परिवार के सदस्यों या दोस्तों की मौजूदगी में महिला से उसके आवास पर पूछताछ कर सकती है.
6. समान वेतन का अधिकार
भारतीय महिलाओं को समान वेतन का अधिकार है. यह हर भारतीय महिला के लिए सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक है. संविधान के मुताबिक, जब वेतन या मजदूरी की बात आती है तो लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है.
7. घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
भारत में महिलाओं को पारिवारिक मुद्दों को गुप्त रखने के लिए कहा जाता है, तब भी जब उन्हें बंद दरवाजों के पीछे शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाया जाता है. ऐसी स्थितियों के लिए महिलाओं के पास घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार है. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 से महिलाओं का संरक्षण मुख्य रूप से एक पत्नी, एक महिला लिव-इन पार्टनर या एक घर में रहने वाली महिला जैसे मां या बहन को पति, पुरुष लिव-इन के हाथों घरेलू हिंसा से बचाने के लिए दिया जाता है. महिला या उसकी ओर से कोई भी घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करा सकता है.
8. कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
प्री-कंसेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स एक्ट, 1994 कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ एक महिला/मां के अधिकार को सुनिश्चित करता है.
9. विरासत में समान हिस्सेदारी का अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 महिलाओं और पुरुषों दोनों को जायदाद में समान हिस्सेदारी की अनुमति देता है. महिलाओं को परिवार की संपत्ति में समान हिस्सेदारी प्राप्त हो और सशक्त बनाने के लिए ये अधिकार दिया गया है.