साल 2024 में देश की तरक्की की दिशा में लगातार काम हुआ है. देश में रेलवे से लेकर स्पेस सेक्टर तक के लिए कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स इस साल किए गए हैं. आज हम आपको बता रहे हैं इस खास प्रोजेक्ट्स के बारे में.
ISRO ने लिखी कामयाबी की नई इबारत
साल 2024 के शुरुआती महीने में ही ISRO ने कामयाबी की नई इबारत लिखी. अंतरिक्ष की दुनिया में भारत के वैज्ञानिकों ने नया इतिहास रचा. इसरो के वैज्ञानिकों की रात-दिन की कड़ी मेहनत के दम पर भारत के आदित्य एल-1 मिशन ने एल-1 बिन्दु की हेलो कक्षा की अपनी पहली परिक्रमा पूरी की. आदित्य एल-1 को 2 सितंबर 2023 को लॉन्च किया गया था. लेकिन 4 जनवरी 2024 को इसे अपने लक्षित हेलो कक्षा में स्थापित किया गया.
इसरो के अनुसार हेलो कक्षा में आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को एल1 बिंदु के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में 178 दिन लगे. धरती के ऑर्बिट की मैनुअरिंग करने के बाद ये सैटेलाइट क्रूज फेज में पहुंचा और लॉन्चिंग के करीब 4 महीने बाद 4 जनवरी 2024 को इसे एल 1 के पास हैलो आर्बिट में प्लेस किया गया. 4 जनवरी 2024 का ये ऐतिहासिक दिन इसरो के वैज्ञानिकों के जज्बे की सबसे बड़ी गवाही था.
सेना का पहला स्वदेशी लाइट टैंक 'ज़ोरावर'
रक्षा के क्षेत्र में भी देश ने आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम और बढ़ाया. साल 2024 में ही सेना के पहले स्वदेशी लाइट टैंक 'ज़ोरावर' का लद्दाख में अंतिम सफल परीक्षण किया गया. ये परीक्षण 21 नवंबर से 15 दिसंबर के बीच किया गया. इससे पहले मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों में भी ज़ोरावर अपना ज़ोर बखूबी दिखा चुका है और अब जल्दी ही 25 टन वजनी इस स्वदेशी टैंक को 2025 में भारतीय सेना के बेड़े में शामिल किया जाना है.
ज़ोरावर टैंक की जरूरत गलवान हिंसा के बाद महसूस की गई थी, जब चीन ने लद्दाख बॉर्डर पर अपने हल्के लड़ाकू टैंक 'ZTQ-15 ब्लैक पैंथर' तैनात किए थे. सेना ने हल्के टैंक की मांग की थी. जिसके बाद जोरावर टैंक को 4 साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया गया.
सबसे हल्की बुलेटप्रूफ जैकेट
इस साल भारतीय सैनिकों की सुरक्षा के लिए एक ऐसा बुलेटफ्रूफ जैकेट भी तैयार हुआ, जिसे पहनकर देश के जांबाजों को दुश्मन की गोली छू भी नहीं सकेगी. खास बात ये है कि ये जैकेट पूरी तरह से स्वदेशी है और भारतीय सैनिकों की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई है. इसका नाम 'अभेद' (ABHED) मतलब एडवांस्ड बैलिस्टिक फ़ॉर हाई एनर्जी डिफीट है. इस बुलेटप्रूफ जैकेट को DRDO और IIT दिल्ली ने मिलकर बनाया है. खास बात ये है कि वजन में ये इतनी हल्की है कि उसे आसानी से सैनिक पहन सकते हैं और किसी भी ऑपरेशन को अंजाम दे सकते हैं.
इसका वजन 8.2 किलो से साढ़े 9 किलो के बीच है. अलग-अलग बैलिस्टिक के लिए अलग-अलग जैकेट है. इस जैकेट से स्टील बुलेट को भी रोका जा सकता है. ये सामने और पीछे के आर्मर के साथ 360 डिग्री सुरक्षा प्रदान करते हैं. ये जैकेट पॉलिमर और स्वदेशी बोरॉन कार्बाइड सिरेमिक सामग्री से बनाया गया है.
जेवर एयरपोर्ट पर पहला ट्रायल
9 दिसंबर 2024 को नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रनवे पर इंडिगो एयरलाइंस का विमान लैंड हुआ और वहां मौजूद लोग उत्साह से भर उठे. क्योंकि ये पहली बार था जब नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रनवे पर विमान की ट्रायल लैंडिंग और टेकऑफ कराया गया. यह ट्रायल पूरी तरह सफल रहा. इसी सफलता की खुशी में विमान को वाटर कैनन सैल्यूट दिया गया. साल 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी के जेवर में नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट की आधारशिला रखी थी.
इसका करीब 85 फीसदी काम पूरा हो चुका है. इस हवाई अड्डे का निर्माण दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर भीड़ को कम करने और NCR में बढ़ती हवाई यातायात की मांग को पूरा करने के लिए किया जा रहा है. इस एयरपोर्ट से अप्रैल 2025 में कमर्शियल फ्लाइट सेवा शुरू करने की तैयारी है. एयरपोर्ट के पूरी तरह ऑपरेशनल होने के बाद नोएडा का ये हवाईअड्डा एशिया का सबसे बड़ा एयरपोर्ट होगा और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा हवाई अड्डा होगा. यह देश के एविएशन सेक्टर की तरक्की में काफी अहम भूमिका निभाएगा.
कश्मीर से कन्याकुमारी तक रेल लिंक
अब बात उस सपने की जो रेल के जरिए कश्मीर को पूरे देश से जोड़ने का है. यह सपना पूरा होने वाला है. दरअसल, जम्मू के कटरा और रियासी के बीच T-33 टनल का काम पूरा हो गया. ऐसे में अब इस नए रेल मार्ग पर ट्रायल रन किया गया. पहली बार कटरा से रियासी रेल मार्ग पर इलेक्ट्रिक ट्रेन का इंजन और फिर गुड्स ट्रेन यानी मालगाड़ी गुजरी. श्री माता वैष्णो देवी मंदिर की तलहटी में मौजूद कटरा को रियासी से जोड़ने वाली 3.2 किलोमीटर लंबी सुरंग का काम 20 साल से चल रहा था. आजादी के बाद से अभी तक कश्मीर जाने के लिए ट्रेन की सुविधा नहीं थी. जम्मू-तवी तक ही ट्रेन जाती थी और आगे का 350 किलोमीटर लंबा सफर सड़क मार्ग से तय करना होता था. जिसमें 10 घंटे भी लग जाते थे हालांकि बहुत जल्दी ये मुश्किल हल होती दिख रही है.
इससे पहले दुनिया के सबसे ऊंचे चिनाब रेलवे पुल का काम पूरा होने के बाद वहां जून में ट्रायल हुआ था. तब उस ट्रायल के दौरान जम्मू के रामबन में संगलदान और रियासी के बीच ट्रेन चली थी. इस रूट पर ये ट्रेन चिनाब ब्रिज से होकर गुजरी थी, जो कि दुनिया का सबसे ऊंचा स्टील आर्च ब्रिज है. चिनाब ब्रिज पेरिस के एफिल टावर से भी ऊंचा है. पहले रियासी से संगलदान, फिर कटरा से रियासी के बीच की कड़ी पूरी होने से कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों से रेल के माध्यम से जोड़ने का सपना साकार होगा.