Jaswant Singh Rawat: 300 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया था अकेले, 72 घंटे भूखे-प्यासे डटे रहे थे मोर्चे पर, 1962 के युद्ध में ऐसे 'ड्रैगन' के छुड़ा दिए थे छक्के

Happy Birthday Jaswant Singh Rawat: भारतीय थल सेना के जांबाज सैनिक जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को हुआ था. उन्होंने 1962 के युद्ध में अदम्य साहस का परिचय दिया था. अकेले 300 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया था. जसवंत सिंह एकलौते ऐसे शहीद हैं, जिनका शहादत के बाद भी नियमित प्रमोशन जारी है. 

Happy Birthday Jaswant Singh Rawat
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 10:47 AM IST
  • जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को हुआ था
  • बहादुरी के लिए महावीर चक्र से किया गया सम्मानित 

चीन के साथ 1962 के युद्ध में जिस तरह भारतीय जवानों ने अपनी शौर्यता का परिचय दिया था, वह देशवासियों को हमेशा गर्व की अनुभूति कराता रहेगा. आज हम एक ऐसे जांबाज भारतीय सैनिक जसवंत सिंह रावत की कहानी बताने जा रहे हैं, जो 72 घंटे तक अकेले बॉर्डर पर चीन की विशाल सेना से लोहा लेते रहे. 300 चीनी सैनिकों को युद्ध के मैदान में ढेर कर दिया. 

17 साल की उम्र में ही सेना में भर्ती होने चले गए थे 
19 अगस्त, 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल जिले के ग्राम बाडयू पट्टी खाटली में जसवंत सिंह रावत का जन्म हुआ था. उनके अंदर देशप्रेम इस कदर था कि 17 साल की उम्र में ही सेना में भर्ती होने चले गए थे लेकिन कम उम्र के चलते उन्हें नहीं लिया गया. हालांकि, 16 अगस्त 1960 को जसवंत सिंह को सेना में बतौर राइफल मैन शामिल कर लिया गया. वह चौथी गढ़वाल रायफल लैन्सडाउन में भर्ती हुए. 

अरुणाचल के मोर्चे पर भेजे गए तब ट्रेनिंग खत्म ही हुई थी
जसवंत सिंह रावत की ट्रेनिंग के समय ही चीन ने भारत के उत्तरी सीमा पर घुसपैठ कर दी. धीरे-धीरे उत्तरी-पूर्वी सीमा पर युद्ध शुरू कर दिया. भारतीय सेना को कूच करने के आदेश दिए गए. 17 नवम्बर 1962 को चौथी गढ़वाल रायफल नेफा क्षेत्र यानी अरुणाचल प्रदेश में चीनी आक्रमण का जवाब देने के लिए भेजी गई. तब जसवंत सिंह रावत की ट्रेनिंग खत्म ही हुई थी. उनकी पलटन को त्वांग वू नदी पर नूरनांग पुल की सुरक्षा के लिए लगाया गया. 

सुरक्षा पड़ गई थी खतरे में 
इसी दौरान चीनी सेना ने हमला बोल दिया. यह स्थान 14,000 फीट की ऊंचाई पर था. चीनी सैनिकों की संख्या ज्यादा थी. उनके पास साजोसामान भी बेहतर थे. इस वजह से हमारे सैनिक हताहत हो रहे थे. दुश्मन के पास एक मीडियम मशीनगन थी, जिसे कि वे पुल के निकट लाने में सफल हो गए. इस एलएमजी से पुल व प्लाटून दोनों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई.

मीडियम मशीनगन लूटकर गोली बरसाने लगे
ये देखकर जसवंत सिंह रावत ने पहल की. वह मशीनगन को लूटने के उद्देश्य से आगे बढ़े. उनके साथ लान्सनायक त्रिलोक सिंह व रायफलमैन गोपाल सिंह भी थे. ये तीनों जमीन पर रेंगकर मशीनगन से 10-15 गज की दूरी पर ठहर गए. उन्होंने हथगोलों से चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया. उनकी एलएमजी अपने कब्जे में ले ली. उससे गोली बरसाने लगे.

अकेले ही गोलियों की बौछार करते रहे
जसवंत सिंह रावत ने बहादुरी दिखाते हुए बैरक नं. 1, 2, 3, 4 एवं 5 से लगातार गोलियों की बौछार करके दुश्मन को 72 घंटे रोके रखा. उस समय जसवंत में आई ताकत देखते बनती थी. चीनी सेना इस गफलत में थी कि पूरी भारतीय सेना गोलियों की बौछार करके उन्हें रोक रही है. इस दौरान जसवंत सिंह ने 300 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था.

चीनी कमांडर भी हो गया मुरीद
1962 के इस भयंकर युद्ध में 162 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए. 1264 को दुश्मन ने कैद कर लिया. वहां पर मठ के गद्दार लामा ने चीनी सेना को बताया कि एक आदमी ने आपकी ब्रिगेड को 72 घंटे से रोके रखा है. इस समाचार के बाद चीनी सेना ने चौकी को चारों ओर से घेर लिया. जसवंत सिंह रावत का सिर कलम करके अपने सेनानायक के पास ले गए. चीनी सेना का कमांडर खुद इस सैनिक की वीरता का मुरीद हो गया. 20 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी. 

बनाई गई है शहीद की प्रतिमा
जसवंत सिंह चीन से भारत माता की रक्षा करते हुए 17 नवंबर, 1962 को शहीद हो गए. देश के लिए शहीद होने के बाद भी वे भारतीय सेना के अमर शहीद हैं. जिस जगह पर वे शहीद हुए थे, उसी जगह पर उनकी एक प्रतिमा है. इतना ही नहीं, उनकी सेवा में वहां 24 घंटे पांच जवान तैनात रहते हैं.

सीमा की रक्षा करती है जसवंत की 'आत्मा'
नेफा की जनता जसवंत सिंह रावत को देवता के रूप में पूजती है. स्थानीय लोगों व जवानों का मानना है कि जसवंत सिंह रावत की आत्मा आज भी भारत की पूर्वी सीमा की रक्षा कर रही है. कहा जाता है कि उनकी आत्मा आज भी देश के लिए सक्रिय है. सीमा चौकी के पहरेदारों में से यदि कोई ड्यूटी पर सोता है तो वह उसे चाटा मारकर चौकन्ना कर देती है. उनके नाम से नूरानांग में जसवंतगढ़ नाम का बड़ा स्मारक बनाया गया है. यहां शहीद के हर सामान को संभालकर रखा गया है.

रोज कपड़े होते हैं प्रेस और जूतों में की जाती है पॉलिश
यहां शहीद जसवंत के हर सामान को संभालकर रखा गया है. रोज उनके जूतों पर यहां पॉलिश की जाती है. पहनने-बिछाने के कपड़े प्रेस किए जाते हैं. इस काम के लिए सिख रेजीमेंट के पांच जवान तैनात किए गए हैं. यही नहीं, रोज सुबह और रात की पहली थाली उनकी प्रतिमा के सामने परोसी जाती है. बताया जाता है कि सुबह-सुबह जब चादर और अन्य कपड़ों को देखा जाए तो उनमें सिलवटें नजर आती हैं. वहीं, पॉलिश के बावजूद जूते बदरंग हो जाते हैं.

मौत के बाद भी प्रमोशन
जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं, जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिलना शुरू हुआ था. पहले नायक फिर कैप्टन और मेजर जनरल बने. इस दौरान उनके घरवालों को पूरी सैलरी भी पहुंचाई गई. हीरो ऑफ नेफा जसवंत सिंह रावत को मरणोपरान्त महावीर चक्र प्रदान किया गया. सेना उनकी याद में हर वर्ष 17 नवंबर को 'नूरानांग दिवस' मनाकर अमर शहीद को याद करती है. शहीद जसवंत सिंह रावत पर 72 आवर्स: मार्टियर हू नेवर डाइड नाम की एक फिल्म भी बनाई गई. निर्देशक के तौर पर अविनाश ध्यानी ने फिल्म में जसवंत सिंह की वीरता को बखूबी बयां किया है. 

 

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