जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ पहले CJI बनेंगे, जिनके पिता भी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहे हैं. जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ को कई अहम फैसलों के लिए याद किया जाता है. इसमें संजय गांधी को जेल भेजने का मामला सबसे ज्यादा चर्चा में रहा. जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने 'किस्सा कुर्सी का' फिल्म के प्रिंट जलाने के मामले में संजय गांधी को सजा सुनाई थी.
क्या था मामला-
अमृत नाहटा ने साल 1974-75 में 'किस्सा कुर्सी का' फिल्म बनाई थी. ये फिल्म राजनीतिज्ञों के तौर-तरीकों पर एक व्यंग थी. आपातकाल के दौरान इस फिल्म के प्रिंट जलाने का आरोप संजय गांधी और विद्याचरण शुक्ल पर लगा. इस मामले में संजय गांधी को एक महीने जेल में भी रहना पड़ा.
क्या था वाईवी चंद्रचूड़ का फैसला-
'किस्सा कुर्सी का' फिल्म के मामले में अभियोजन पक्ष के 26 गवाहों की पेशी हुई. कई गवाह की गवाही आपस में मेल नहीं खा रही थी. गवाहों के विरोधी बयानों के चलते अभियोजन पक्ष को नुकसान हुआ. अब वक्त था फैसले के दिन का. तात्कालिक चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने 25 पन्नों का फैसला दिया और संजय गांधी की जमानत रद्द कर दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि प्रतिवादी (संजय गांधी) ने अपनी आजादी का दुरुपयोग किया है और गवाहों को प्रभावित किया है. इसलिए उनके जमानत को रद्द किया जाता है.
चिट्ठी के जरिए नाहटा ने उठाया था मुद्दा-
आपातकाल हटने के बाद देश में चुनाव हुए तो कांग्रेस की बुरी हार हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी. इसके बाद अमृत नाहटा ने सूचना प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी को चिट्ठी लिखी और अपना पक्ष रखा. नाहटा ने फिल्म को प्रमाणित करने के लिए 1975 में ही सेंसर बोर्ड के पास भेज दिया था. लेकिन सरकार ने इस पर रोक लगा दी. इसके बाद नाहटा ने जुलाई 1975 में सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. साल 1978 में इस मामले में फैसला आया.
केस में कब, क्या हुआ-
अमृत नाहटा ने 19 अप्रैल 1975 को केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड के सामने फिल्म को रिलीज करने के लिए प्रमाणपत्र लेने का आवेदन किया. तीन सदस्यों ने फिल्म को 'यू' प्रमाणपत्र देने का फैसला किया. लेकिन कार्यवाहक अध्यक्ष एनएस थापा ने इसे सरकार के खिलाफ भड़काने के तौर पर लिया. बोर्ड के कार्यकारी चेयरमैन ने इस फिल्म पर आपत्ति उठाई और इसे रिवाजिंग कमेटी के पास भेज दिया. कमेटी में सदस्यों का बहुमत फिल्म को रिलीज करने देने के पक्ष में था. लेकिन अध्यक्ष ने इसे केंद्र सरकार के पास भेज दिया. सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इसमें 51 आपत्तियां जताईं. नाहटा ने 11 जुलाई 1975 को इसका जवाब दिया. लेकिन संयुक्त सचिव ने फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं देने और फिल्म को जब्त करने का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट की शरण में नाहटा-
सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जब फिल्म को जब्त करने का आदेश दिया तो अमृत नाहटा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 18 जुलाई 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने नाहट को फिल्म, निगेटिव और फिल्म से जुड़ी दूसरी सामग्रियां सरकार को सौंपने का आदेश दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को इन सामग्रियों को सुरक्षित रखने का आदेश दिया. सरकार ने फिल्म के प्रिंट जब्त कर लिए.
सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म दिखाने को कहा-
29 अक्टूबर 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को उसके सामने फिल्म प्रदर्शित करने का निर्देश दिया. फिल्म की स्क्रीनिंग के लिए 17 नवंबर को तारीख दी गई. लेकिन सरकार ने कोर्ट में बताया कि फिल्म का एकमात्र पॉजीटिव प्रिंट गायब है. 3 जनवरी 1976 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रिंट की तलाश की जाए. अगर नहीं मिलती है तो निगेटिव से प्रिंट बनवाकर कोर्ट के सामने स्क्रीनिंग की जाए. 22 मार्च 1976 को सरकार ने कोर्ट को बताया कि निगेटिव भी गायब है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और कोर्ट ने साल 1978 में फैसला सुनाया.
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