Kalpana Chawla birth anniversary: भारत की सुनहरी 'कल्पना', जिस पर आज भी गर्व करता है देश

Kalpana Chawla birth anniversary: वैसे तो कल्पना एक एस्ट्रोनॉट थीं, पर ऐसा नहीं था कि कल्पना बचने से बड़ी पढ़ाकू थीं. कल्पना को बचपन में कविताएं लिखने और किताबों पढ़ने का काफी शौक था. इसके अलावा वो खेल-कूद में भी काफी अच्छी थीं. वो काफी अच्छा डांस भी करती थीं. उनको वॉलीबॉल खेलना काफी पसंद था.

कल्पना चावला
शताक्षी सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 17 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 12:40 AM IST
  • बचपन से प्लेन उड़ाना था कल्पना का सपना
  • नासा के 23 एस्ट्रोनॉट में एक थीं कल्पना

"ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है." कुछ ऐसी ही बुलंदियों से पहचान है उसकी, जिस पर आज भी देश का बच्चा-बच्चा गर्व करता है. वो भारत देश की सुनहरी कल्पना थी, जिसको देख कर हर मां-बाप अपनी बेटी पर नाज करते थे. आज हम जिसकी बात कर रहे हैं वो किसी पहचान की मोहताज नहीं, भारत ही नहीं पूरी दुनिया उन पर गर्व करती है. 
बात 1 जुलाई 1961 की है, जब बंसारी लाल और संयोगिता को उनकी चौथी संतान हुई. बड़े प्यार से दोनों ने बच्चे का नाम मोन्टो रखा. मोन्टो को मां-बाप बड़े नाजों से रखते थे. मोन्टो का बचपन 16 लोगों की ज्वाइंट फैमिली में बीता. फिर जब मोन्टो बड़ी हुई, और स्कूल जाने का समय आया तो स्कूल के प्रिंसिपल को मोन्टो का नाम थोड़ा कम भाया. प्रिंसिपल ने मोन्टो से पूछा, कि क्या वो अपना नाम बदलना चाहती है. मोन्टो से रहा नहीं गया और उसने झट से हां कह दिया. उस दिन इतिहास लिख दिया गया. मोन्टो ने अपना नाम कल्पना रख लिया. कल्पना चावला, जो नाम आगे जाकर भारत देश की शान बना.

ऑलराउंडर थीं कल्पना
वैसे तो कल्पना एक एस्ट्रोनॉट थीं, पर ऐसा नहीं था कि कल्पना बचने से बड़ी पढ़ाकू थीं. कल्पना को बचपन में कविताएं लिखने और किताबों पढ़ने का काफी शौक था. इसके अलावा वो खेल-कूद में भी काफी अच्छी थीं. वो काफी अच्छा डांस भी करती थीं. उनको वॉलीबॉल खेलना काफी पसंद था. यहीं नहीं कल्पना लेटेस्ट फैशन ट्रेंड के साथ खुद को अपडेट भी रखती थीं. कल्पना काफी स्ट्रांग थी. कल्पना ने कराटे भी सीखा था, और उन्हें कराटे में ब्लैक बेल्ट भी मिला था. अपने खाली समय में कल्पना भरतनाट्यम सीखती थी. कल्पना को चांदनी रात में बाइक चलाना बहुत पसंद था. कुल मिलाकर कहें तो कल्पना में हर हुनर था.

एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने वाली इकलौती लड़की थी कल्पना
हर फील्ड में दिलचस्पी रखने वाली कल्पना ने अपने परिवार वालों को तब चौंका दिया जब उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने की ठानी. जिसके लिए कल्पना को करनाल छोड़ कर बाहर जाना था. वैसे तो घर वालों का खास मन नहीं था, पर कल्पना ने तो सोच लिया था, कि करना तो यही है. अपने कोर्स में कल्पना इकलौती लड़की थीं. लेकिन कहते हैं ना कि कामयाबी की राह अकेली होती है. कल्पना के इस जोश को देखकर उनकी मां ने उनका साथ दिया. बेटी के सपनों को पंख देने के लिए कल्पना की मां उनके साथ चंडीगढ़ आ गईं. क्योंकि कोर्स में वो अकेली लड़की थी जिसे देखकर उनके कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें दोबारा इस पर सोचने के लिए कहा, लेकिन तकदीर तब तक शायद कल्पना की कामयाबी के लिए उड़ान भर चुकी थी. कल्पना अपने फैसले पर अडिग रही, और कोर्स में एडमिशन ले लिया. 

बचपन से प्लेन उड़ाना था कल्पना का सपना
कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही नजर आ जाते हैं. कल्पना को बचपन से ही ऊंची उड़ाने भरने का शौक था. जब कल्पना करनाल में रहती थी, तो उस वक्त वो और उनका भाई अक्सर करनाल के फ्लाइंग क्लब से गुज़रते थे. कल्पना तब से ही प्लेन उड़ाना चाहती थीं. कल्पना अपने पिता से अक्सर प्लेन उड़ाने की जिद करती थी, और एक बार उनके पिता ने उनके लिए ग्लाइडर राइड का इंतजाम भी किया. इस अनुभव ने उनके उड़ने के प्रति प्रेम को बढ़ा दिया. लेकिन अपनी कम हाइट के कारण वह केवल छोटे विमानों को ही उड़ा पाती थी. हालांकि बाद में उनके जुनून के कारण उन्हें सिंगल-इंजन, डबल इंजन प्लेन के लिए कमर्शियल पायलट का लाइसेंस और इंस्ट्रक्टर का लाइसेंस मिल गया. 

नासा के 23 एस्ट्रोनॉट में एक थीं कल्पना
कल्पना चावला वैसे तो नासा कि एस्ट्रोनॉट थी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहली बार में कल्पना को नासा के लिए नहीं चुना गया था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और दोबारा कोशिश की. फिर क्या था, कामयाबी भी मानो कल्पना का इंतजार कर रही हो. नासा में 23 लोगों की ट्रेनिंग होनी थी. जिसके लिए कल्पना ने अप्लाई किया, और 2,900 आवेदकों में कल्पना को चुन लिया गया.

तो इस तरह थी कल्पना की पहली अंतरिक्ष उड़ान
17 नवंबर, 1997 को कल्पना ने एक मिशन विशेषज्ञ के रूप में अपने पहले अंतरिक्ष मिशन की यात्रा शुरू की, जिन्होंने शटल की विभिन्न गतिविधियों का समन्वय किया. वह छह-अंतरिक्ष यात्री-चालक दल का हिस्सा थीं, जिन्होंने STS-87 नामक स्पेस शटल कोलंबिया की उड़ान भरी थी. 5 दिसंबर को शटल सफलतापूर्वक लौटा आया. वापसी के बाद कल्पना ने टिप्पणी की अंतरिक्ष उनके लिए किसी सपने जैसा था. वाकई में अंतरिक्ष मानो उन्हें बुला रहा था.

कभी वापस लौट कर नहीं आईं कल्पना
कहते हैं अच्छे लोग भगवान को भी बहुत प्यारे होते हैं. शायद कल्पना के साथ भी कुछ ऐसा था. तभी तो अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला 1 फरवरी 2003 को जब एक अंतरिक्ष मिशन पूरा कर धरती पर लौट रही थीं. तभी अचानक पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही उनके स्पेसक्राफ्ट कोलंबिया की ऊष्मारोधी परतें फट गईं और यान का तापमान बढ़ने लगा. तापमान इतना बढ़ गया कि स्पेसक्राफ्ट में आग लग गई, और धरती पर पहुंचने से पहली ही कल्पना की मौत हो गई. कल्पना की ये सफलता अचानक से मातम में बदल गई. 

कल्पना जैसे हीरे की कमी भारत को हमेशा खलेगी. लेकिन कल्पना का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया जा चुका है.


 

 

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