खेतिहर किसान के बेटे आने वाली पीढ़ी के लिए बने मिसाल, विपरीत परिस्थितियों के बाद भी सुपर स्पेशियलिटी की परीक्षा में पूरे देश में आए अव्वल

डॉ चिदानंद ने राणा बेलागली के ही प्राथमिक सरकारी विद्यालय और बीवीवीएस हाई स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने साइंस लेकर बीएलडीई कॉलेज में दाखिला लिया,जिसके खत्म होने के बाद उन्होंने गुवाहाटी में मेडिकल की पढ़ाई शुरू की. उनका मानना है कि उनकी सफलता में उनके गांव वालों  का पूरा योगदान है.

डॉ चिदानंद ने 10 जनवरी को हुई राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (सुपर स्पेशियलिटी) में दो विषयों में टॉप किया है.
gnttv.com
  • कर्नाटक ,
  • 03 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 10:01 AM IST
  • 20,000 डॉक्टरों ने लिखी थी परीक्षा
  • बड़े भाई ने नहीं पूरी की स्कूली पढ़ाई 

गरीबी हो या बाधाएं, अगर आपने अपना मन बना लिया है, तो कुछ भी आपके सपने को पूरा होने से नहीं रोक सकता. इस बात की जीती जागती मिसाल है डॉ चिदानंद कुंबर. छोटी सी उम्र में अपनी मां को खो देने के बाद भी वो टूटे या भटके नहीं, बल्कि खुद को इस काबिल बनाया कि आज उनकी चर्चा पूरे देश में हो रही है. हैदराबाद के एक निजी अस्पताल में विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत एक खेतिहर मजदूर के बेटे, डॉ चिदानंद ने 10 जनवरी को हुई राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (सुपर स्पेशियलिटी) में दो विषयों में टॉप किया है. इस परीक्षा का परिणाम मंगलवार को घोषित किया गया. डॉ चिदानंद के पिता जिले के मुधोल तालुक के राणा बेलागली गांव में भूमिहीन खेतिहर मजदूर हैं.

20,000 डॉक्टरों ने  लिखी थी परीक्षा

देश भर के कम से कम 20,000 डॉक्टरों ने यह परीक्षा लिखी थी जिसमें डॉ चिदानंद गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और लीवर हेपेटोलॉजी में पूरे भारत में पहले स्थान पर रहे. कुंबर परिवार बागलकोट जिले के राणा बेलागली से आता है. डॉ चिदानंद ने राणा बेलागली के ही प्राथमिक सरकारी विद्यालय और बीवीवीएस हाई स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने साइंस लेकर बीएलडीई कॉलेज में दाखिला लिया,जिसके खत्म होने के बाद उन्होंने गुवाहाटी में मेडिकल की पढ़ाई शुरू की. उनका मानना है कि उनकी सफलता में उनके गांव वालों  का पूरा योगदान है. इसके साथ ही एमबीबीएस के दौरान मंत्री गोविंद करजोल ने चिदानंद की बहुत मदद की.

बड़े भाई ने नहीं पूरी की स्कूली पढ़ाई 

डॉ चिदानंद इसके बाद एंडोस्कोपी में युरोपियन फेलोशिप पाना चाहते हैं. फेलोशिप पूरी करने के बाद वो कर्नाटक वापस लौटकर गरीबों की मदद करना चाहते हैं. डॉ चिदानंद अभी 29 साल के हैं. उनका एक भाई और एक बहन हैं. बड़े भाई परमानंद अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे, वहीं छोटी बहन की शादी हो चुकी है और उसके दो बच्चे हैं. उनके पिता का कहना है कि उन्हें अपने बेटे की एक के बाद एक सफलता पर गर्व है. हालांकि मैं नहीं जानता उसने इस बार क्या किया है लेकिन इतना पता है कि वो देश और समाज के लिए अच्छा है. डॉ चिदानंद अपने गांव की आने वाली पीढ़ी के लिए आदर्श बन गए हैं.

 

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