देशभर में जगहों की नाम बदलने की कवायद कई साल से चल रही है. अब इसी कड़ी में केरल का नाम बदलने की भी बात हो रही है. केरल विधानसभा ने एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पेश किया है, जिसमें केंद्र सरकार से राज्य का नाम आधिकारिक तौर पर 'केरलम' करने का आग्रह किया है. मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के नेतृत्व में यह प्रस्ताव पेश किया गया है.
दरअसल, भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में राज्य का नाम बदलने की वकालत की गई है. केरल का नाम केरलम करने वाले इस प्रस्ताव को बिना किसी सुझाए गए संशोधन के कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ विपक्ष से मंजूरी भी मिल गई है.
क्या है इस कदम के पीछे का तर्क?
मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने राज्य के नाम में भाषाई विसंगति की ओर इशारा किया है. उन्होंने कहा, 'केरलम' शब्द मलयालम में प्रयोग किया जाता है, यह दूसरी भाषाओं में 'केरल' के रूप में ही प्रचलित है. उन्होंने आगे कहा कि मलयालम भाषी समुदायों को भी अपने साथ लाकर यूनाइटेड केरल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से ही इस बात पर जोर दिया जा रहा है.
ओडिशा और पश्चिम बंगाल का क्या है मामला?
गौरतलब है कि साल 2011 में एक संवैधानिक संशोधन के माध्यम से 'Orissa' का नाम 'Odisha' में बदला गया था. जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2011 से राज्य का नाम बदलने का प्रयास कर रही हैं. उन्होंने 'पश्चिम बंग', 'बंगाल' और 'बांग्ला' सहित प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे हैं, लेकिन फिर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया है. प्रस्ताव को कम से कम चार बार खारिज किया गया है.
नाम बदलने में है संवैधानिक चुनौती
हालांकि, किसी भी राज्य का नाम बदलने की एक काफी मुश्किल प्रक्रिया होती है, जो संवैधानिक संशोधन पर निर्भर करती है. इस तरह के संशोधन को शुरू करने के लिए केंद्र सरकार को संसद में एक विधेयक पेश करना होता है. लेकिन अक्सर नाम बदलने की प्रक्रिया राजनीति की वजह से उलझी रह जाती है.
इसके विपरीत, शहरों के नामों में बदलाव कार्यकारी आदेशों के माध्यम से किया जा सकता है. इसलिए शहरों का नाम बदलना काफी आसान होता है, जबकि राज्यों का नाम बदलना काफी मुश्किल प्रक्रिया होती है.