केरल हाई कोर्ट ने एक महिला को पैदाइश के 46 साल बाद उस क्षेत्र की पंचायत में जन्म दर्ज कराने की इजाजत दे दी है. जन्म दर्ज कराने वाले क्षेत्र में महिला की पैदाइश 21 मई, 1975 को हुई थी. महिला ने हाई कोर्ट का रूख तब किया जब पथनमथिट्टा में राजस्व विभागीय अधिकारी, अदूर ने जन्म प्रमा पत्र पर गलत डेट ऑफ बर्थ की वजह से जन्म पंजीकरण के लिए पहले दी गई मंजूरी को रद्द कर दिया था. जन्म प्रमाण पत्र पर महिला का डेट ऑफ बर्थ 9 मई , 1975 लिखा हुआ था. हालांकि, अधिकारी ने उसके स्कूल रिकॉर्ड, आधार, पैन, पासपोर्ट, विवाह प्रमाण पत्र और वोटर आईडी कार्ड पर भरोसा नहीं किया, जिसमें उसकी जन्मतिथि 21 मई, 1975 बताई गई थी.
हाई कोर्ट ने किया राजस्व विभागीय अधिकारी के फैसले को रद्द
उच्च न्यायालय ने राजस्व विभागीय अधिकारी के फैसले को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि “आधार कार्ड, चुनाव पहचान पत्र, पैन कार्ड , जैसे दस्तावेज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अदालत ने प्रमदोम ग्राम पंचायत में जन्म और मृत्यु पत्र प्रमाण के रजिस्ट्रार को 21 मई, 1975 को ही मान्य बताया. बता दें कि महिला ने भी अपनी जन्म तारीख 21 मई, 1975 होने का दावा किया था.
पंजीकरण नहीं होने देने के कारण खोजना कानून का मकसद नहीं
महिला ने इस साल जनवरी में जन्म पंजीकरण के लिए अप्लाई किया था और फरवरी में महिला के पैतृक गांव में ( प्रमदोम ग्राम पंचायत) जन्म और मृत्यु के रजिस्ट्रार ने उसके जन्म के पंजीकरण की मंजूरी दे दी थी. मार्च में अधिकारी ने ये कहते हुए जन्म प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया कि महिला ने गलत दस्तावेज दिखाए हैं, और इसे कबूल नहीं किया जा सकता. बाद में कोर्ट ने अधिकारी के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि अधिनियम और केरल जन्म और मृत्यु नियम, 1999 का मकसद जन्म के पंजीकरण में सुविधा देना है, न कि पंजीकरण नहीं होने देने के कारणों को खोजना है.