मदर मैरी की याद में पुर्तगाल की महारानी को समर्पित इस चर्च को देखने पहुंचे देश-विदेश के लाखों पर्यटक, बहुत अनोखा है बेंडेल चर्च का 400 साल पुराना इतिहास

चर्च के प्रांगण से जुड़े मैदान में भी कोरोना के नियमों का पालन करते हुए पर्यटकों और दर्शनार्थियों को अनुमति प्रदान की गई है. क्रिसमस से पहले यहां आ रहे पर्यटकों और दर्शनार्थियों में भी बेंडेल चर्च की मनमोहक छटा को देखने के लिए काफी उत्साह है. लोग बेंडेल चर्च के इस मैदान में जमकर पिकनिक और छुट्टियां मना रहे हैं.

मदर मैरी की याद में पुर्तगाल की महारानी को समर्पित चर्च
gnttv.com
  • हुगली ,
  • 21 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 1:39 PM IST
  • यह चर्च सन् 1599 में पुर्तगालियों द्वारा बनाया गया था
  • सालों पुराना है इस चर्च का इतिहास
  • बेंडेल चर्च के द्वार पर बने जहाज का भी है अपना महत्व

क्रिसमस की बात हो और बंगाल के हुगली जिले के 422 वर्ष पुराने ऐतिहासिक बेंडेल चर्च की बात न हो ऐसा वास्तविकता से परे है. आज इस अनोखे इतिहास वाले चर्च को देखने के लिए हजारों और लाखों पर्यटक आते हैं. ईसाइयों के प्रमुख त्यौहार "बड़ा दिन " यानी  “क्रिसमस" को लेकर हुगली जिले के विश्वविख्यात बेंडेल चर्च में तैयारियां जोरों पर हैं. ‘बड़े दिन’ से पहले ही देश और विदेश के पर्यटकों  की भारी भीड़ यहां उमड़ रही है.  हालांकि, कोरोना महामारी के कारण चर्च प्रशासन ने कुछ आवश्यक कदम भी उठाए हैं. 

चर्च के मुख्य पादरी ने बताया कि पहले मास प्रेयर (Mass Prayer) चर्च के मुख्य प्रार्थना गृह में हुआ करती थी. लेकिन इस साल महामारी के चलते बेंडेल चर्च प्रांगण में एक जगह में मास प्रेयर के बदले कुल मिलाकर तीन जगह पर इसकी व्यवस्था गई है. इसके अलावा क्रिसमस की रात यानी 24 दिसंबर को चर्च के मुख्य ग्रह में सिर्फ क्रिश्चियन कम्युनिटी के लोगों को ही मास प्रेयर में शामिल होने की अनुमति दी गई है.

बेंडेल चर्च

सालों पुराना है चर्च का इतिहास 

अगर इसके इतिहास को खंगाले तो पता चलेगा कि  मुगलकाल में जब सम्राट अकबर ने पुर्तगालियों को भारत में व्यवसाय करने की अनुमति दी थी तो वे हुगली जिले के बेंडेल में बंदरगाह के निकट आकर बस गए थे. वहीं पर उन्होंने साल 1599 में यीशु क्राइस्ट की मां मदर मैरी की याद में एक भव्य गिरजा यानी चर्च का निर्माण किया था. जिसका नाम ‘चर्च फॉर हॉली रोसरी’ (Church of the Holy Rosary) रखा गया जिसे आज हम  आम बोलचाल की भाषा में बेंडेल चर्च के नाम से जानते हैं. 

पुर्तगालियों की महारानी नोसा सेनहोरा (Nossa Senhora) को समर्पित यह चर्च सन् 1599 में पुर्तगालियों द्वारा बनाया गया था. ये चर्च पवित्र माला के बेसिलिका के नाम से भी प्रसिद्ध है. आपको दें, ये चर्च बंगाली इतिहास में एक बेंचमार्क है. संयोग से, इस चर्च की स्थापना वर्ष की तारीख वही है जो महारानी एलिजाबेथ द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना को मंजूरी देने वाली तारीख है. साल 1988 में ईसाइयों के धर्मगुरु रोम के पोप द्वितीय ने इसका नाम बेसिलिका रख दिया. 

सालों पुराना है चर्च का इतिहास

बेंडेल चर्च के द्वार पर बने जहाज का भी है अपना महत्व 

दुनिया भर से पर्यटक इस चर्च में आते हैं, स्थापत्य की दृष्टि से इसका काफी महत्व है. गौरतलब है कि इसे बहुत अच्छी तरह से संरक्षित किया गया है तथा यहां तीन वेदियां, एक वादन यंत्र तथा और गेट पर एक हस्ताक्षरित जहाज का मस्तूल शामिल है. बेंडेल चर्च के द्वार पर बने जहाज के मस्तूल के बारे में भी कहा जाता है कि जब बेंडेल स्थित बंदरगाह में सूखा पड़ गया था और पुर्तगालियों का जहाज बंदरगाह तक नहीं पहुंच पा रहा था, तब एक नाविक ने मदर मैरी से प्रार्थना की कि यदि उनका जहाज बंदरगाह के किनारे तक पहुंच गया तो वह बेंडेल चर्च में बने चर्च में मदर मैरी को समर्पित करते हुए जहाज का मस्तूल भेज स्वरूप बनाएंगे.

क्रिसमस से पहले आ रहे हैं पर्यटक और दर्शनार्थी 

गौरतलब है कि चर्च के प्रांगण से जुड़े मैदान में भी कोरोना के नियमों का पालन करते हुए पर्यटकों और दर्शनार्थियों को अनुमति प्रदान की गई है. क्रिसमस से पहले यहां आ रहे पर्यटकों और दर्शनार्थियों में भी बेंडेल चर्च की मनमोहक छटा को देखने के लिए काफी उत्साह है. लोग बेंडेल चर्च के इस मैदान में जमकर पिकनिक और छुट्टियां मना रहे हैं. 

चर्च देखने आ रहे हैं पर्यटक

बंगाल के नदिया जिले के कल्याणी से आई एक महिला पर्यटक ने बताया कि काफी दिनों से कोरोना महामारी के कारण अपने घरों में बंद उन जैसे सैकड़ों हजारों पर्यटकों के लिए बेंडेल चर्च का मनमोहक नजारा देखना काफी सुखदपूर्ण अनुभूति है. उन्होंने ये भी बताया कि बेंडेल चर्च से जुड़े मैदान में पिकनिक मनाने के लिए भी लोगों की काफी भीड़ उमड़ रही है.

(भोला नाथ साहा की रिपोर्ट)

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