अमेरिका में बर्तन धोए, मजदूरी की... जानिए Indira Gandhi को चुनौती देने वाले Jayaprakash Narayan की कहानी

संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण का बचपन संघर्ष में बीता. विदेश में पढ़ाई के दौरान जेपी ने बर्तन धोने से लेकर मजदूरी तक की. जेपी ने पहले अंग्रेजों से देश की आजादी की लड़ाई लड़ी और उसके बाद करप्शन के मुद्दे पर इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन किया.

संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण
शशिकांत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 11 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 2:20 PM IST
  • जेपी ने बर्कले यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की
  • पढ़ाई के दौरान खर्च चलाने के लिए खेतों में किया काम

11 अक्टूबर यानी आज संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण की 120वीं जयंती है. सत्ता की हनक मिटाने के लिए जेपी सड़क पर उतर गए थे. जेपी का बचपन एक छोटे से गांव में बीता, जो यूपी और बिहार के बॉर्डर पर बाढ़ प्रभावित इलाके में आता है. उन दिनों बरसात के दिनों में जेपी के गांव तक पहुंचना मुश्किल काम होता था. बचपन में प्राकृतिक चुनौतियों से जूझने वाले जयप्रकाश नारायण बड़े होने पर अंग्रेजों से लोहा लिया. जेपी जब बुजुर्ग हुए तो करप्शन के खिलाफ सत्ता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. जेपी इकलौते ऐसे नेता थे, जो अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी और आजादी के बाद सत्ता के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया.

जेपी का बचपन-
जयप्रकाश नारायण का जन्म साल 1902 में 11 अक्टूबर को हुआ था. जेपी के गांव का नाम सिताब दियारा है. जिसमें 27 छोटे-छोटे टोले हैं. ये टोले उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों राज्यों में पड़ते हैं. जेपी की शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई. लेकिन 9 साल की उम्र में उन्होंने गांव छोड़ दिया. पटना के कॉलेजिएट स्कूल में 7वीं दाखिला लिया. साल 1920 में जेपी जब सिर्फ 18 साल के थे तो उनकी शादी 14 साल की प्रभादेवी से कर साथ हो गई.

पढ़ाई के लिए विदेश गए जेपी-
जयप्रकाश नारायण पर एक परिवार की जिम्मेदारी थी. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाया. जेपी ने गांधी आंदोलन में हिस्सा लेते रहे. 20 साल की उम्र में जेपी पढ़ाई के लिए विदेश चले गए और अपनी पत्नी को महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में छोड़ दिया. साल 1922 में जेपी ने बर्कले यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया.

खर्च चलाने के लिए की मजदूरी-
जेपी कैलिफोर्निया में पढ़ाई करते थे. उन्होंने पढ़ाई का खर्च खुद निकालने का फैसला किया. इसके लिए जेपी ने कई काम किए. जयप्रकाश नारायण ने पहले खेतों में काम किया. लेकिन इससे खर्च के पैसे नहीं जुट पाए तो उन्होंने होटल में बर्तन धोने का काम किया. विदेश में पढ़ाई के दौरान जेपी ने ऑटोमोबाइल मैकेनिक के तौर पर भी सेवा दी. इस दौरान जेपी को मजदूरों की समस्याओं को नजदीक से जानने का मौका मिला. इसी दौरान रूस की क्रांति हुई. जेपी ने कार्ल मार्क्स का दास कैपिटल पढ़ा और उससे प्रभावित हुए. मां के बीमार होने की वजह से जेपी घर आ गए और पीएचडी की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके.

पहले कांग्रेस से जुड़े, फिर अलग संगठन बनाया-
जेपी वापस वतन लौटे और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े साल 1929 में जवाहर लाल नेहरू के कहने पर जेपी ने कांग्रेस ज्वॉइन की. जेपी कांग्रेस में समाजवादी विचारधारा के नेता थे. जेपी ने 1931 में कराची अधिवेशन में मौलिक अधिकारों से संबंधी प्रस्तावों की कमियों की आलोचना की. वे खर्च में कटौती और भूमिकर उद्योग के राष्ट्रीयकरण के सवाल पर अड़े रहे. जेपी ज्यादा दिन तक कांग्रेस में नहीं रह पाए. उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नाम से संगठन बनाया. जब देश को आजादी मिल गई तो जेपी ने 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनाई.

राजनीति छोड़ने का फैसला-
जयप्रकाश नारायण विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के प्रभावित थे. साल 1954 में बिहार के गया में जेपी ने सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित करने का ऐलान कर दिया. इसके बाद साल 1957 में जेपी ने राजनीति छोड़ने का फैसला किया. साल 1974 में उन्होंने बिहार सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और किसानों को मुद्दे पर राज्य सरकार से इस्तीफे की मांग की. 

संपूर्ण क्रांति का नारा-
साल 1974 में महंगाई के खिलाफ गुजरात में छात्र आंदोलन हुए. जो नवनिर्माण आंदोलन में बदल गया. इस आंदोलन के चलते साल 1974 में चीनाभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा. छात्रों के आंदोलन की आग बिहार भी पहुंच गई. बिहार छात्र संघर्ष समिति ने 12 मांगों को लेकर विधानसभा का घेराव किया. लालू प्रसाद यादव की आत्मकथा 'गोपालगंज टू रायसीना' में गांधी मैदान में एक बड़ी रैली का जिक्र है. किताब के मुताबिक लालू यादव ने बताया कि गांधाी मैदान में जेपी ने एक बड़ी जनसभा की. इससे पहले इस मैदान में इतने लोग कभी नहीं आए थे. 5 जून को आयोजित इस विशाल सभा में जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया. तब से हर साल इस दिन संपूर्ण क्रांति दिवस मनाया जाता है. 

जेपी ने इंदिरा की चुनौती स्वीकार की-
जेपी का आंदोलन पूरे देश में फैलने लगा. जेपी ने देशभर में करप्शन के मुद्दे पर इंदिरा गांधी को घेरने का फैसला किया. इस बीच इंदिरा गांधी ने जेपी को चुनौती दी कि अगर वो इतने लोकप्रिय हैं तो साल 1976 के चुनाव में जीत हासिल करें. जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा की चुनौती स्वीकार कर ली. जेपी के समर्थकों ने नेशनल कॉर्डिनेशन कमेटी बनाने की तैयारी शुरू कर दी. लेकिन 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में इमजरेंसी लगा दी और जेपी समेत तमाम नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया. 
8 अक्टूबर 1979 को पटना में उनके आवास पर जयप्रकाश नारायण का निधन हो गया. जेपी मधुमेह और ह्दय की बीमारी से पीड़ित थे. जेपी के सम्मान में चौधरी चरण सिंह की सरकार ने 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की थी.

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