Noida Twin Towers: जमींदोज हुए ट्विन टावर्स, जानिए भ्रष्टाचार की इन इमारतों की बनने से लेकर ध्वस्त होने तक की कहानी

Noida Twin Towers: नोएडा के ट्विन टावर को रविवार को जमींदोज कर दिया गया है. दोपहर 2:30 बजे इन्हें ध्वस्त कर दिया गया. बता दें, ट्विन टावर के इस ध्वस्तीकरण को देखने के लिए जेपी फ्लाईओवर पर भारी भीड़ पहुंची थी. चलिए जानते हैं आखिर इन दोनों टावर की क्या कहानी है…

Twin Towers
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 28 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 2:43 PM IST
  • इसकी शुरुआत साल 2004 में हुई थी
  • 2006 में कंपनी को समान शर्तों के साथ निर्माण के लिए अतिरिक्त भूमि दी गई

कुतुब मीनार से भी ऊंचे टावर को आज 9 साल बाद गिरा दिया गया है. सुपरटेक के ट्विन टावर 9 सेकंड के भीतर 2:30 बजे झरने की तरह गिर गए. दरअसल, दोनों टावर एपेक्स (32 मंजिला) और सेयेन (29 मंजिला), जो एमराल्ड कोर्ट का हिस्सा हैं, ने कई नियमों का उल्लंघन किया था. जिसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई. आखिर में इसे गिराने के फैसले पर मुहर लगा दी गई.

चलिए ट्विन टावर्स की टाइमलाइन के बारे में जानते हैं-

2004: दरअसल, इसकी शुरुआत साल 2004 में हुई थी, जब न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) द्वारा एक हाउसिंग सोसाइटी बनाने के लिए सुपरटेक लिमिटेड को एक प्लॉट आवंटित किए गए थे. इसे एमराल्ड कोर्ट के नाम से जाना जाने लगा. 

2005: इसके बाद 2005 में, नोएडा बिल्डिंग रेग्युलेशन और डायरेक्शन 1986 ने एक हाउसिंग सोसाइटी के लिए 14 टावर और हर टावर में 10 फ्लोर के निर्माण के लिए मंजूरी दी. सुपरटेक को 10 मंजिलों के साथ 14 टावरों के निर्माण की अनुमति दी गई. हालांकि, इसकी अधिकतम ऊंचाई 37 मीटर तक की कही गई.  मूल योजना के अनुसार, प्रत्येक 10 मंजिला 14 टावरों और एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के साथ एक गार्डन बनाया गया.

2006: इसके बाद जून, 2006 में कंपनी को समान शर्तों के साथ निर्माण के लिए अतिरिक्त भूमि दी गई.  योजना में संशोधन किया गया. नई योजना के अनुसार, दो और टावर बनाने थे.

2009: इसके बाद साल 2009 में, फाइनल प्लान दो टावरों एपेक्स और सेयेन के निर्माण का था. जिनमें प्रत्येक में 40 फ्लोर थीं, जबकि इसे लेकर योजना को अभी तक मंजूरी नहीं दी गई थी.

2011: साल 2011 में रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि टावरों के निर्माण के दौरान यूपी अपार्टमेंट मालिक अधिनियम, 2010 का उल्लंघन किया गया है. मकान मालिकों ने दावा किया कि दोनों टावरों के बीच 16 मीटर से कम की दूरी थी जो कानून का उल्लंघन था. मूल योजना में जिस जगह पर गार्डन बनाने के लिए कहा गया था वहां इन ट्विन टावरों को खड़ा कर दिया गया था. 

2012: जिसके बाद साल इलाहाबाद हाई कोर्ट की सुनवाई शुरू होने से पहले, 2012 में प्राधिकरण ने 2009 में प्रस्तावित नई योजना को मंजूरी दी थी.

2014: अप्रैल 2014 में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरडब्ल्यूए के पक्ष में फैसला सुनाया, जबकि ट्विन टावरों को ध्वस्त करने का आदेश भी पारित किया. इसने सुपरटेक को अपने खर्च पर टावरों को ध्वस्त करने और घर खरीदारों के पैसे 14 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करने के लिए कहा गया था.

हालांकि, सुपरटेक ने यहां भी हार नहीं मानी. मई 2014 में, नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया कि ट्विन टावरों का निर्माण नियमों के अनुसार किया गया है. 

2021: लेकिन अगस्त 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश की पुष्टि की और टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया. इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि निर्माण में नियमों का उल्लंघन किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि तकनीकी कारणों या मौसम की स्थिति के कारण किसी भी मामूली देरी को ध्यान में रखते हुए, 29 अगस्त से 4 सितंबर के बीच "सात दिनों की बैंडविड्थ" के साथ एक तारीख निर्धारित की गई.

आज, 2022: डिमोलिशन की तारीख 28 अगस्त निर्धारित की गई. और आखिरकार आज भ्रष्टाचार के इन दोनों टावरों को ध्वस्त कर ही दिया गया. 


 
 
 

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