80 साल की उम्र में की थी बगावत, काट लिया था अपना हाथ, जानिए वीर कुंवर सिंह की कहानी

बाबू वीर कुंवर सिंह ने 27 अप्रैल, 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ मिलकर आरा नगर पर कब्जा कर लिया. इस तरह कुंवर सिंह का अभियान आरा में जेल तोड़ कर कैदियों की मुक्ति तथा खजाने पर कब्जे से प्रारंभ हुआ. कुंवर सिंह ने दूसरा मोर्चा बीबीगंज में खोला जहां 2 अगस्त, 1857 को अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए

बाबू वीर कुंवर सिंह
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 20 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 10:19 PM IST
  • 23 अप्रैल को मनेगा विजयोत्सव समारोह
  • 80 साल की उम्र में अदम्य साहस के लिए किया जाता है उन्हें याद

प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक 80 साल का रणबांकुरा जिसकी वीरगाथा आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है. उनकी बांह में अंग्रेजों की गोली आकर लगी तब भी वह रुके नहीं. उन्होंने अपनी तलवार से बांह को काटकर नदी में प्रवाहित कर दिया और अंग्रेज़ी सेना को पराजित करके 23 अप्रैल, 1858 को अपने गांव जगदीशपुर पहुंचे. हम बात कर रहे हैं बाबू वीर कुंवर सिंह की. इस बार केंन्द्र सरकार देश के 75वें आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1857 के गदर के महानायक और जगदीशपुर रियासत के राजा बाबू वीर कुंवर सिंह का राष्ट्रीय सम्मान के साथ अगामी 23 अप्रैल को विजयोत्सव समारोह मनाने जा रही है. राज्य सरकार के श्रम मंत्री जीवेश मिश्रा ने बताया कि यह कार्यक्रम अपने आप में ऐतिहासिक होगा जो एक नया व‌र्ल्ड रिकार्ड बनाएगा. इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं बाबू वीर कुंवर सिंह के त्याग, बलिदान और अदम्य साहस की कहानी.

बिहार के शाहाबाद (भोजपुर) जिले के जगदीशपुर गांव में जन्में बाबू वीर कुंवर सिंह का जन्म 1777 में प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में हुआ. उनके पिता बाबू साहेबजादा सिंह और माता पंचरत्न कुंवर थी. कुंवर सिंह के छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह थे. बाबू कुंवर सिंह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह जिला शाहाबाद की कीमती और अतिविशाल जागीरों के मालिक थे. सहृदय और लोकप्रिय कुंवर सिंह को उनके बटाईदार बहुत चाहते थे. वह अपने गांववासियों में लोकप्रिय तो थे ही साथ ही अंग्रेजी हुकूमत में भी उनकी अच्छी पैठ थी. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बाबू कुंवर सिंह की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी. अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया. मंगल पाण्डे की बहादुरी ने सारे देश को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा किया. ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया. 

उन्होंने 27 अप्रैल, 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ मिलकर आरा नगर पर कब्जा कर लिया. इस तरह कुंवर सिंह का अभियान आरा में जेल तोड़ कर कैदियों की मुक्ति तथा खजाने पर कब्जे से प्रारंभ हुआ. कुंवर सिंह ने दूसरा मोर्चा बीबीगंज में खोला जहां 2 अगस्त, 1857 को अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए. जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई. बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए. अंग्रजों ने जगदीशपुर पर भयंकर गोलाबारी की. घायलों को भी फांसी पर लटका दिया. महल और दुर्ग खंडहर कर दिए. कुंवर सिंह पराजित भले हुए हों लेकिन अंग्रेजों का खत्म करने का उनका जज्बा ज्यों का त्यों था. 

सितंबर 1857 में वे रीवा की ओर निकल गए वहां उनकी मुलाकत नाना साहब से हुई और वे एक और जंग करने के लिए बांदा से कालपी पहुंचे लेकिन लेकिन सर कॉलिन के हाथों तात्या की हार के बाद कुंवर सिंह कालपी नहीं गए और लखनऊ आए.इस बीच बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे. लेकिन कुंवर सिंह की यह विजयी गाथा ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकी और अंग्रेजों ने लखनऊ पर पुन: कब्जा करने के बाद आजमगढ़ पर भी कब्जा कर लिया. 

इस बीच कुंवर सिंह बिहार की ओर लौटने लगे. जब वे जगदीशपुर जाने के लिए गंगा पार कर रहे थे तभी उनकी बांह में एक अंग्रेजों की गोली आकर लगी. उन्होंने अपनी तलवार से बांह काटकर नदी में प्रवाहित कर दिया इस तरह से अपनी सेना के साथ जंगलों की ओर चले गए और अंग्रेज़ी सेना को पराजित करके 23 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर पहुंचे. वह बुरी तरह से घायल थे. 1857 की क्रान्ति के इस महान नायक का आखिरकार अदम्य वीरता का प्रदर्शन करते हुए 26 अप्रैल, 1858 को निधन हो गया. जिसके बाद से हर 23 अप्रैल को बाबू वीर कुंवर सिंह के अंग्रजों के खिलाफ बगावत और देश के प्रति बलिदान को लेकर उनकी याद में विजयोत्सव समारोह के रुप में मनाया जाता है. लेकिन इस बार का विजयोत्सव कई मायनों में बेहद खास बताया जा रहा है. राज्य सरकार के श्रम मंत्री जीवेश मिश्रा ने कहा कि विजयोत्सव समारोह को गिनीज बुक में दर्ज करने की तैयारी चल रही है और महज चार दिन बाद गिनीज बुक में बिहार का नाम दर्ज किया जाएगा. 

(आरा से सोनू सिंह की रिपोर्ट)

 

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