Karpuri Thakur: जब कर्पूरी ठाकुर को घर छोड़ने की बात आई तो लालू यादव ने कहा- जीप में पेट्रोल नहीं है, जानिए जननायक के ऐसे ही किस्से

Karpuri Thakur Birth Anniversary: सादगी की मिसाल और सामाजिक न्याय के मसीहा जननायक कर्पूरी ठाकुर की आज 100वीं जयंती है. केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की है. उनके बारे में कई ऐसे किस्से फेमस हैं, जो ये बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जमीन से जुड़े और सादगी पसंद इंसान थे. कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. लेकिन जब उनका निधन हुआ तो उनके पास पुश्तैनी घर के अलावा कुछ नहीं था.

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 24 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 5:39 PM IST

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की आज यानी 24 जनवरी को 100वीं जयंती है. इस मौके पर केंद्र सरकार ने 2 बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया है. बिहार में कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़ा वर्ग के सबसे बड़ा नेताओं में से एक थे. वो सादगी की मिसाल और सामाजिक न्याय के मसीहा थे. उनको लेकर बिहार में कई किस्से मशहूर हैं. आइए जानते हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर के कुछ ऐसे ही किस्से.

लालू ने कार देने से किया था इनकार-
सीनियर जर्नलिस्ट संतोष सिंह की किताब 'कितना राज कितना काज' में कर्पूरी ठाकुर और लालू यादव के एक किस्से का जिक्र है. किताब के मुताबिक पत्रकार सुरेंद्र किशोर बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर उस वक्त नेता प्रतिपक्ष थे. उपसभापति शिवनन्दन पासवान ने विधायक लालू यादव से एक बार ठाकुर को  घर छोड़ने के लिए कहा. लालू यादव ने कहा कि उनकी जीप में पेट्रोल नहीं है. लालू ने एक बार यह सवाल भी दाग दिया था कि दो बार सीएम रह चुके कर्पूरी ठाकुर अपने लिए कार क्यों नहीं ले लेते.

लालू के घर की छाछ पसंद थी-
संतोष सिंह की किताब में एक और किस्से का जिक्र है. किताब के मुताबिक लालू यादव के छोटे साले सुभाष यादव ने ये किस्सा बताया है. वो बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर रात को अपनी एंबेसडर कार की पिछली सीट पर सोने के बाद अक्सर लालू के घर अलसुबह पहुंच जाते थे. उन्हें हमारे घर की छाछ बहुत भाती थी.

जब पुलिस के डर से भागना पड़ा था-
किताब के मुताबिक आपातकाल के दौरान पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के लिए कर्पूरी ठाकुर ने एक तरीका निकाला था. वो भारत-नेपाल बॉर्डर चले गए थे. वो बॉर्डर पर नदी पार करते और शाम को बैठक करते और उसके बाद फिर नेपाल लौट जाते. बैठक के दौरान पुलिस से बचने के लिए एक और तरीका निकाला गया था. बैठक के आसपास कार्यकर्ता रहते थे और जब उनको पुलिस के आने का शक होता था तो वो टॉर्च के इशारे से नेताओं को इसकी जानकारी देते थे.

एक बार कर्पूरी ठाकुर बैठक कर रहे थे तो एक कार्यकर्ता ने टॉर्च की रोशनी दिखाई. फिर क्या था. सभी लीडर बैठक छोड़कर दौड़ पडे. किताब में इस बात का जिक्र है कि कर्पूरी ठाकुर इतना थक गए थे कि उन्होंने कहा कि अब वह नहीं दौड़ सकते. फिर चाहे पुलिस ही क्यों ना गिरफ्तार कर ले. जब अगले दिन कर्पूरी ठाकुर की टॉर्च जलाने वाले कार्यकर्ता से मुलाकात हुई तो पता चला कि उसने टॉर्च इसलिए जलाई थी कि पुलिस नहीं आ रही है. इसके बाद कर्पूरी ठाकुर खूब नाराज हुए और कार्यकर्ता को खरी-खोटी सुनाई. इस दौरान कर्पूरी ठाकुर के साथ रामविलास पासवान भी थे.

राहत कोष में दिया चंदे का पैसा-
बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर सादगी की मिसाल थे. उनकी सादगी के एक किस्से का जिक्र पीएम मोदी ने उनकी 100वीं जयंती पर लिखे अपने विशेष लेख में किया है. ये किस्सा साल 1977 में उस समय का है, जब कर्पूरी ठाकुर बिहार के सीएम थे. उस समय जनता पार्टी के नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन के लिए कई नेता पटना में इकट्ठा हुए थे. उसमें शामिल मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का कुर्ता फटा हुआ था. ऐसे में चंद्रशेखर ने अपने अनूठे अंदाज में लोगों से कुछ पैसे दान करने की अपील की, ताकि कर्पूरी ठाकुर नया कुर्ता खरीद सकें. लेकिन कर्पूरी जी तो कर्पूरी जी थे. उन्होंने इसमें भी एक मिसाल कायम कर दी. उन्होंने पैसा तो स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे मुख्यमंत्री राहत कोष में दान कर दिया.

जननायक के बारे में फेमस हैं ये भी किस्से-
कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि जब उनका निधन हुआ था. तो उनके पास सिर्फ एक पुश्तैनी झोपड़ी थी. इसके अलावा उन्होंने कहीं भी अपना मकान नहीं बनाया था. उन्होंने सियासत में अपने परिवार के किसी भी शख्स को आगे नहीं बढ़ाया. 

कर्पूरी ठाकुर के बारे में ये भी कहा जाता है कि जब वो मुख्यमंत्री थे तो उनके परिवार को इसका कोई लाभ नहीं मिलता था. उनकी पत्नी गांव में झोपड़ीनुमा घर में रहती थीं. बताया जाता है कि साल 1952 में विधायक के तौर जब कर्पूरी ठाकुर को ऑस्ट्रिया जाना था तो उनके पास कोट तक नहीं था. उन्होंने एक दोस्त से एक कोट मांगा, जो फटा था. बाद में यूगोस्लाविया में मार्शल टीटो ने कर्पूरी ठाकुर को एक कोट भेंट किया था.

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