Dhan Singh Thapa: चीन युद्ध में शहादत की खबर आई, घर में हुआ अंतिम संस्कार, फिर लौटे वापस... जानिए युद्ध के दौरान चीनियों के कब्जे में रहने वाले Param Vir Chakra विजेता धनसिंह थापा की कहानी

परमवीर चक्र विजेता Major Dhan Singh Thapa का जन्म 10 अप्रैल 1928 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था. 8 अगस्त 1949 को धनसिंह गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में शामिल हुए थे. पहले शहादत की खबर आने के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था. लेकिन जब वो लौटे तो देश ने उनका भव्य स्वागत किया.

मेजर धनसिंह थापा ने चीन युद्ध में निभाई थी अहम भूमिका (Photo/wikipedia)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 12:13 PM IST

भारतीय सैनिकों ने दुनियाभर में अपनी बहादुरी दिखाई है. जवानों की इस अद्भुत कौशल को देखकर देश का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. देश के कई बहादुर सिपाहियों ने जंग के मैदान में ऐसा कारनामा किया है, जिसे आज भी दुश्मन देश याद करते हैं. ऐसे ही एक बहादुर मेजर धनसिंह थापा की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनको उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है. तोप, मोर्टारों से लैस 600 जवानों की चीनी टुकड़ी का सामना मेजर धनसिंह थापा ने किया था. थापा ने कई चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. इस लड़ाई में थापा को चीनी सैनिकों ने बंदी बना लिया था. देश में उनकी शहादत की कहानी सुनाई जाने लगी. उनको परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. लेकिन बाद में पता चला कि वो युद्धबंदी हैं. फिर बाद में वो देश लौटे तो उनका भव्य स्वागत किया गया.

19-20 अक्टूबर को चीनी सैनिकों ने बोला था हमला-
साल 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया था. 19-28 अक्टूबर की रात चीनी सैनिकों ने गलवान की सिरिजाप चौकी पर हमला किया था. इस चौकी की जिम्मेदारी मेजर धनसिंह थापा की अगुवाई में गोरखा रेजिमेंट संभाल रहा था. इस टुकड़ी में 27 जवान शामिल थे. चीन की टुकड़ी में 600 से ज्यादा सैनिक थे. चीनी सैनिकों ने मोर्टार और आर्टिलरी से हमला किया था. इस बीच भारतीय सैनिकों ने बंकर को और भी गहरा किया और मोर्चा संभाल लिया. भारतीय जवानों ने लाइट मशीन गन से जवाबी हमला किया.

थापा की टुकड़ी का संपर्क टूटा-
इस भीषण गोलीबारी में कई रेडियो सेट्स खराब हो गए थे. धनसिंह थापा की टुकड़ी का संपर्क टूट गया था. लेकिन थापा और उनके सेकंड इन कमांड सूबेदार मिन बाहुदर गुरुंग का हौसला बरकरार रहा. दोनों एक पोस्ट से दूसरे पोस्ट की तरफ भागते हुए मशीन गन से फायरिंग करते रहे. चीनी फौज जब पोस्ट के एकदम से करीब आ गई तो उन लोगों ने बम फेंकना शुरू किया. भारतीय सैनिक भी जवाब दे रहे थे.

कई चीनी सैनिकों को उतारा मौत के घाट-
गोरखा रेजिमेंट और चीनी सैनिकों के बीच भीषण लड़ाई चल रही थी. दोनों तरफ से फायरिंग हो रही थी. धनसिंह थापा 27 जवानों के साथ इस पोस्ट पर डटे थे. लेकिन अब उनके साथ सिर्फ 7 जवान बचे थे. इस समय चीनी फौजियों ने एक बार फिर हैवी मशीन गन और रॉकेट लॉन्चर से हमला किया. इस बार चीनी सैनिक झील की तरफ से भी एंफिबियस बोट्स से आए. भारत के दो स्टॉर्म बोट्स ने चीनी नावों पर हमला बोल दिया. चीनी हमले में भारत की दोनों नाव बर्बाद हो गई. अब तक सिर्फ 3 सैनिक धनसिंह थापा के साथ बचे थे. इसके बावजूद भी उन्होंने लड़ाई जारी रखी. थापा ने खुखरी से कई चीनी सैनिकों को मार डाला. लेकिन कुछ ही देर में धनसिंह थापा समेत 4 भारतीय सैनिकों को चीनियों ने बंदी बना लिया. 

पहले बंदी बनाए गए, फिर वापस लौटे-
जब चौकी पर चीनी कब्जे का समाचार सेना मुख्यालय पहुंचा तो सबने मान लिया कि मेजर धनसिंह थापा भी शहीद हो गए हैं. 28 अक्टूबर को उनके परिवार को चिट्ठी लिखकर उनके शहीद होने की सूचना भी दे दी गई थी. परिवार ने अंतिम संस्कार की औपचारिकताएं भी पूरी कर ली थी. लेकिन जब युद्ध समाप्त हुआ और चीनी सरकार ने युद्ध बंदियों की लिस्ट सौंपी तो उसमें मेजर धनसिंह थापा का नाम भी था. इसके बाद उनको रिहा कर दिया गया. 10 मई 1963 को धनसिंह थापा का भारत लौटने पर भव्य स्वागत किया गया.
जब धनसिंह थापा अपने घर पहुंचे तो उनकी पत्नी विधवा का जीवन जी रही थीं. इसके बाद धार्मिक मान्यता के मुताबिक उनका मुंडन किया गया और फिर से नामकरण किया गया. इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी के साथ फिर से सात फेरे लिए. इसके बाद उनका वैवाहिक जीवन फिर से शुरू हुआ.

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