भारत में ताजमहल का नाम जब भी लिया जाता है तब-तब कोहिनूर हीरे का जिक्र होता है. आमजन के बीच कहा जाता है कि एक समय था जब ये पूर्णि की रात को ताजमहल की खूबसूरती में चार चांद लगा देता था. मौजूदा समय में कोहिनूर ब्रिटेन के टावर ऑफ लंदन के ज्वेल हाउस में कई साल से रखा हुआ है. ये उनके शाही ताज में लगा हुआ है. अब क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय की मृत्यु के बाद, सोशल मीडिया पर ब्रिटिश सरकार से ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा प्राप्त कलाकृतियों को आत्मसमर्पण करने की मांग की जा रही है, जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल है.
हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब इसकी मांग की जा रही है. भारत ने ब्रिटेन से आजादी के तुरंत बाद इसकी सबसे पहले मांग की थी. इतना ही नहीं पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान भी इसे लेने की बात कहते हैं. अब रानी की मौत के कवरेज के बीच अब एक बार फिर से सोशल मीडिया पर ये ट्रेंड कर रहा है.
सबसे प्रसिद्द है कोहिनूर हीरे की कहानी
दरअसल, दुनिया के सभी हीरों में कोहिनूर हीरे की कहानी अब तक सबसे प्रसिद्ध है. आज ये ब्रिटिश ताज पर सुशोभित है, जिसे लंदन के टॉवर में रखा गया है. अपने लंबे इतिहास में यह बेशकीमती हीरा पूरी दुनिया में घूम चुका है और कई शासकों के पास रह चुका है. कई दशकों से एक शासक से दूसरे शासक के हाथ में ये हीरा जाता रहा, जिसमें कुछ प्रसिद्ध राजा भी शामिल हैं.
किन-किन राजाओं के पास रहा है कोहिनूर?
दरअसल, कोहिनूर की पूरी यात्रा में, ये हीरा कभी खरीदा या बेचा नहीं गया था, केवल विरासत के रूप में या उपहार के रूप में या जबरन वसूली, लूटपाट, छल और विश्वासघात के कारण एक हाथ से दूसरे हाथ जाता रहा.ये वो राजा हैं जिनके पास कोहिनूर हीरा रहा है.
1. काकतीय
2. अलाउद्दीन खिलजी
3. ग्वालियर के राजा विक्रमादित्य
4. प्रारंभिक मुगल, बाबर और हुमायूं
5. ईरान के शाह, शाह तहमास्पी
6. अहमदनगर और गोलकुंडा के निजाम शाह और कुतुब शाह राजवंश
7. बाद में मुगल शाहजहां से मुहम्मद शाह रंगीला तक,
8. फारस के नादिर शाह. जिन्होंने इसे फारसी नाम कोहिनूर दिया था जिसका मतलब है “प्रकाश का पर्वत" (Mountain of Light)
9. अफगान जनरल अहमद शाह अब्दाली (दुर्रानी) और उसके बाद से उसके उत्तराधिकारियों से लेकर शाह शुजा तक
10. शेर-ए-पंजाब, महाराजा रणजीत सिंह और उसके बाद उनके उत्तराधिकारियों से लेकर महाराजा दलीप सिंह तक
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, कहा जाता है कि तुर्कों ने दक्षिण भारत के किसी मंदिर में रखी मूर्ति की आंख से निकाला था. कोहिनूर किताब के लेखक विलियम डेलरेम्पल कहते हैं कि इस हीरे का सबसे पहला जिक्र 1750 में मिलता है.
महाराजा दलीप सिंह थे इस हीरे को रखने वाले आखिरी भारतीय राजा
कोहिनूर की इस यात्रा में, महाराजा दलीप सिंह इस हीरे को रखने वाले अंतिम भारतीय राजा थे. महाराजा दलीप सिंह, अंग्रेजों के खिलाफ भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे. पंजाब के सिख साम्राज्य को ब्रिटिश भारत में विलय कर दिया गया था. उस वक्त उनका खजाना जिसमें कोहिनूर, दरिया-ए-नूर और तैमूर की रूबी अन्य कीमती सामान शामिल थे, वे सभी अंग्रेजों के हाथों में चले गए और अंत में इंग्लैंड में महारानी विक्टोरिया तक पहुंचे. इन सभी हीरे-जवाहरातों को 1851 में लंदन में आयोजित एक प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था.
ब्रिटिश ताज में लगा है कोहिनूर
कोहिनूर हीरा, जिसका मूल रूप से वजन 186 कैरेट था, रानी के लिए 108 कैरेट तक काटा गया और ब्रिटिश मुकुट में स्थापित किया गया. तब से, कोहिनूर लंदन के टॉवर में बंद ब्रिटिश रॉयल्टी के कब्जे में है. इसे पहली बार क्वीन एलेक्जेंड्रा के ताज में और फिर 1937 में क्वीन मदर के राज्याभिषेक के लिए ताज में स्थापित किया गया था. रॉयल ट्रस्ट कलेक्शन के अनुसार, क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय ने भी इसे 1953 में अपने राज्याभिषेक के दौरान पहना था.
आज भले ही कोहिनूर ब्रिटिश ताज में लगा हो फिर भी उसे 'भारत का सितारा' कहा जाता है. कोहिनूर आज भी भारत में हीरे के व्यापार के गौरवशाली इतिहास को उजागर करता है. ये राह भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन कोहिनूर हीरे की कहानी अभी भी बाकी है.