पिछड़े समुदाय की बेटियों की आवाज हैं रीता कौशिक, रुकवाए बाल विवाह और फिर लड़कियों को जोड़ा शिक्षा से

बाल विवाह जैसी कुरीतियां आज भी समाज को दीमक की तरह खा रही हैं. लेकिन जहां बुराई है वहां अच्छाई भी है. इसलिए आज रीता कौशिक जैसी समाज सेविका हमारे बीच हैं जो इस तरह की कुरीतियों से लड़कर बेटियों की आवाज बन रही हैं.

रीता कौशिक
शिल्पी सेन
  • कुशीनगर,
  • 20 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 12:04 PM IST
  • रीता ने बचपन में किया भेदभाव का सामना 
  • बाल विवाह को रोकने की ठानी

कई बार आपके जीवन का में कोई ऐसा मोड़ आता है जो सिर्फ़ आपके लिए नहीं, बल्कि और भी लोगों के लिए भी एक सौग़ात बन जाता है. उत्तर प्रदेश में ‘मुसहर’ जाति के लिए काम करने वाली रीता कौशिक के साथ भी कुछ  ऐसा ही हुआ. रीता को बचपन में पिता ने ग़रीबी और रूढ़िवादी सोच की वजह से पढ़ाने से इनकार कर दिया. 

तब उनको एक शिक्षक ने मुफ़्त पढ़ा कर मौक़ा दिया. और आज वही रीता कौशिक मुसहर समुदाय की महिलाओं और लड़कियों के लिए उम्मीद की किरण हैं. उनकी कोशिशों की वजह से उन बस्तियों में भी लड़कियां स्कूल जा रही हैं जो अब तक पढ़ाई से दूर ही रहती थीं.

बेटियों की उम्मीद बनीं रीता 
यूपी के कुशीनगर में नेपाल की सीमा के क़रीब सुदूर इलाक़े की ‘मुसहर बस्ती’ डमोर टोला में जब रीता कौशिक पहुंचती हैं तो यहां की लड़कियों में एक उम्मीद सी जाग जाती है. छोटी-बड़ी लड़कियां उनको घेर लेती हैं. रीता एक-एक लड़की से नाम लेकर उसके खान पान की जानकारी लेती हैं और जो लड़कियां नहीं आती उनके बारे में पूछती हैं. 

मुसहर जाति के लोगों के बीच पिछले डेढ़ दशक से सक्रिय रीता कौशिक अब इन लड़कियों की आवाज़ हैं. दरअसल रीता कौशिक का अपना जीवन भी उस निराशा और ग़रीबी से गुज़र कर निकला है जिससे लड़ना सब लड़कियों की क़िस्मत में नहीं होता. 

बचपन में किया भेदभाव का सामना 
दलित परिवार के जन्मीं रीता को शुरू से ही लड़की और लड़के के बीच होने वाले भेदभाव का सामना करना पड़ा. लड़की होने की वजह से बचपन में उनकी मां को मिले तानों को रीता नहीं भूलीं हैं, भाइयों का नाम स्कूल में लिखाया गया पर रीता और उनकी बहन का नहीं. 

पर रीता के जीवन में मोड़ तब आया जब स्कूल में भाइयों के साथ गयी रीता को एक शिक्षक ने मुफ़्त में पढ़ाने का ज़िम्मा ले लिया. उसके बाद शिक्षा से लेकर नौकरी तक रीता को कदम-कदम पर संघर्ष करना पड़ा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. 

बाल विवाह को रोकने की ठानी
रीता कौशिक ने काम के दौरान ‘मुसहर ‘ लड़कियों का दर्द देखा और महसूस किया कि किस तरह यहां बाल विवाह के कारण बच्चियों की जिंदगी बर्बाद हो रही है. किस तरह यहां के लोगों में ग़रीबी की वजह से निराशा है. उन्होंने कुछ करने की ठानी. 

पहले जहां रीता के आने पर यहां की महिलाएं घर से नहीं निकलती थीं, अब रीता के आने पर लड़कियां खुलकर अपनी बात बताती हैं. कुछ लड़कियां पढ़ाई को जारी रखने के लिए अपने परिवार से संघर्ष भी कर रही हैं. उसी में से ऐसी भी लड़कियां हैं जो रीता का साथ दे रही हैं. कई लड़कियों ने रीता के साथ मिलकर मुसहर समुदाय में बाल विवाह तक रुकवाना शुरू किया है. 

लोगों को मिला सरकारी योजनाओं को लाभ 
‘मुसहर’ का शाब्दिक अर्थ चूहा खाने वाला है. मुसहर उत्तरी भारत के निचले गंगा मैदान और फ़ारसी इलाक़ों में रहने वाले दलित समुदाय के लोग हैं. सबसे ज़्यादा पिछड़े माने जाने वाले मुसहर समुदाय में महिलाओं के साथ यौन हिंसा, और अशिक्षा उनको और पीछे ले जाता है. 

रीता कौशिक ने इनको सरकारी योजनाएं पहुंचाने के लिए काम तो किया ही है. साथ ही, यहां की लड़कियों-महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए भी काम कर रही हैं. रीता को अपने काम की वजह से कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं. 

हालांकि, रीता का कहना है कि असली सम्मान इन लड़कियों और महिलाओं के चेहरों पर आने वाली मुस्कान है. वह कहती हैं कि अगर आपको किसी ने कुछ दिया है तो उसको समाज को लौटाना होता है. और रीता वही कर रही हैं.

 

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