Lal Qila History: उस Red Fort की कहानी जानिए, जिसपर मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ने शासन किया

प्रधानमंत्री हर साल 15 अगस्त को लाल किला की प्राचीर से तिरंगा झंडा फहराते हैं. लाल किला मुगलों से लेकर अंग्रजों तक के शासन का गवाह रहा है. 2.5 किलोमीटर लंबी लाल किला की दीवारों ने कई आक्रमण झेले हैं. 1857 में इस किले पर कब्जा करके आजादी के दीवानों ने शंखनाद किया था. 4 महीने की आजादी की सुगंध ने साल 1947 आते-आते देश को एक सूत्र में बांध दिया. आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है.

Red Fort
शशिकांत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 2:36 PM IST
  • 1638 में लाल किला की नींव रखी गई थी
  • 10 साल में बनकर तैयार हुआ लाल किला

लाल किला देश की आन बान और शान है. इस जगह पर हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री राष्ट्रध्वज फहराते हैं. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जब पहली बार इस किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया था तो पूरा देश हर्ष और उल्लास से भर गया था. तक से लेकर अब तक लाल किला देश की प्रगति का गवाह रहा है. इस किले का इतिहास सदियों पुराना है. लाल किला मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक के शासन की गवाही देता है. चलिए आपको लाल किला की बूढ़ी होती दीवारों के जरिए इतिहास की गहराइयों में ले चलते हैं.

शाहजहां ने लाल किला का निर्माण कराया-
बदलते वक्त के साथ इतिहास भी बदलता है. इतिहास के उस वक्त में चलते हैं, जब लाल किला की नींव रखी जा रही थी. साल 1638 में मुगल शासक शाहजहां ने इसकी नींव रखी थी. इसके लिए शाहजहां ने राजधानी आगरा से दिल्ली ट्रांसफर कर दी थी. लाल किला को बनाने में 10 साल लगे. साल 1648 में किला बनकर तैयार हुआ. लाल किला का निर्माण उस्ताद अहमद और उस्ताद हामिद ने किया था. लाल किला में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मोती मस्जिद, हीरा महल, रंग महल, खास महल और हयात बख्श बाग प्रमुख स्थल हैं. 15 जून 1648 को शाहजहां ने लाल किला को आशियाना बनाया.
लाल किला के महल को सजाने के लिए दुनियाभर से सामान मंगवाया गया था. महल के मुख्य कक्ष को भारी पर्दों से सजाया गया था. चीन के रेशम और टर्की के मखमल से इसकी सजावट की गई थी. शाही बाजार में दिन में 5 बार शाही बैंड बजाया जाता था. यह बैंड हाउस मुख्य महल में प्रवेश का संकेत भी देता था और शाही परिवार के अलावा अन्य अतिथियों को यहां झुककर जाना होता था. इस किले में 200 साल तक मुगल परिवार के वंशज रहे. उसके बाद इसपर अंग्रेजों का कब्जा हो गया.

लाल किला पर सिखों का हमला-
साल 1783 में सिखों ने लाल किला पर हमला बोल दिया और इसपर कब्जा कर लिया. 60 हजार सैनिकों के साथ बघेल सिंह और 10 हजार सैनिकों के साथ जस्सा सिंह आहलूवालिया ने दिल्ली में हमला बोला था. सिख योद्धाओं ने 11 मार्च को लाल किला पर कब्जा कर लिया. मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने सिखों के साथ समझौता कर लिया और तीन लाख रुपए नजराना पेश किया.

किले पर अंग्रजों का कब्जा-
1771 से 1788 के बीच मराठों ने लगातार दिल्ली पर हमला किया. दिल्ली पर मराठों का कब्जा हो गया और महादजी शिंदे लाल किले के तख्त पर बैठे. 15 साल तक उन्होंने दिल्ली पर शासन किया. दिल्ली पर जिसका कब्जा होता, उसे भारत का राजा माना जाता था. धीरे-धीरे वक्त बीतता गया. अंग्रेजों का देश में राज हो गया. साल 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने मराठों की बुरी तरह से हराया और दिल्ली पर कब्जा कर लिया.

1857 का सैनिक विद्रोह-
साल 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ देशभर में विद्रोह हुआ. 10 मई को मेरठ से विद्रोह हुआ. विद्रोहियों ने लाल किला पर कब्जा कर लिया. लेकिन विद्रोही ज्यादा समय तक लाल किला को कब्जे में नहीं रख पाए. 4 महीने के भीतर सितंबर में अंग्रेजों ने दोबारा किले पर कब्जा कर लिया. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने लाल किला को आर्मी हेड क्वार्टर बना लिया था. पहले लाल किला में कोहिनूर हीरा रखा था. बादशाह के तख्त में हीरा जड़ा था. लेकिन बाद में अंग्रेजों ने कोहिनूर हीरा को ब्रिटेन भेज दिया.

लाल किला नाम कैसे पड़ा-
इस इमारत के कई हिस्से चूने के पत्थर से बनाए गए थे. जिसकी वजह से इसका रंग सफेद था. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, पत्थर खराब होने लगे. अंग्रेजों ने इस किले को लाल रंग से पेंट करा दिया. इसके बाद से इसे लाल किला कहा जाने लगा. 
लाल किला साल 2003 तक भारतीय सेना के हवाले था. लेकिन उस साल सेना ने इस खाली कर दिया और इसे पर्यटन विभाग को सौंप दिया गया.

15 अगस्त 1947 को फहराया गया तिरंगा-
15 अगस्त 1947 को लाल किला से तिरंगा झंडा फहराया गया. उसके बाद से हर साल लाल किले से तिरंगा झंडा फहराया जाता है. 14 अगस्त के मध्यरात्रि को जवाहर लाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' दिया था. वायसराय लॉज से दिए गए नेहरू के भाषण को पूरी दुनिया से सुना था. 15 अगस्त को आजादी का जश्न मनाया गया तो उसमें महात्मा गांधी शामिल नहीं हुए. उस वक्त महात्मा गांधी पश्चिम बंगाल के नोआखली में थे. 

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