Success Story: मां के साथ हुए घरेलू हिंसा के हादसे ने बदली जिंदगी, बचपन से शराब की लत रखने वाला पंकज आज दे रहा फुटबॉल की ट्रेनिंग

पंकज आज अपनी तरह की स्थिति झेल रहे बच्चों की जिंदगी सुधारने के लिए मेहनत कर रहा है. इन्होंने ग्लासगो टूर्नामेंट के लिए महिला टीम को कोचिंग भी दी है. इतना ही पंकज सांकेतिक भाषा भी सीख रहे है ताकि वह बधिर कोचों को प्रशिक्षित कर सके जो बधिर बच्चों को आगे पढ़ा सकते हैं.

पंकज महाजन
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 20 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 7:16 PM IST
  • कक्षा चार में लगी नशे की लत
  • स्लम सॉकर ने बदली जिंदगी
  • अंग्रेजी में देना चाहते हैं स्नातक का पेपर

अपनी मां के सिर से खून बहता देख 17 साल का पंकज महाजन लगातार रोते रहा, लेकिन शराब के नशे के कारण वो कुछ कर नहीं पा रहा था. नशे की हालत में वह एंबुलेंस बुलाने की बजाय वहीं बेबस होकर बैठ गया.
द बेटर इंडिया से बात करते हुए पंकज ने कहा, "अगर मेरे पड़ोसी न होते तो मेरी माँ मेरी आँखों के सामने दम तोड़ देती और मैं कुछ ना कर पाता, क्योंकि मैं सुबह से शराब पी रहा था. मेरे पिता ने एक झगड़े के दौरान मेरी मां के सिर पर रॉड से हमला किया था और मैं उन्हें बचाने के लिए कुछ ना कर सका. लेकिन उस घटना ने मेरी जिंदगी बदल दी."
दिल-दहला देने वाली ये दास्तां उस इंसान की है, जिसने कभी भी बचपन से परिवार का प्यार नहीं देखा, बाप का दुलार नहीं देखा, लेकिन आज वो अपनी तरह की स्थिति झेल रहे बच्चों की जिंदगी सुधारने के लिए मेहनत कर रहा है. इन्होंने ग्लासगो टूर्नामेंट के लिए महिला टीम को कोचिंग भी दी है. इनका नाम पंकज महाजन है, और फिलहाल ये स्लम सॉकर नाम के एक एनजीओ में एक प्रोजेक्ट मैनेजर की तरह कार्यरत हैं.  

कक्षा चार में लगी नशे की लत
महाराष्ट्र के गोधानी गांव के निवासी पंकज को कक्षा 4 में शराब और तंबाकू की लत लग गई थी, और माता-पिता का मार्गदर्शन ना मिलने की वजह उनकी स्थिति और बदतर बन गई थी. घर में एक शराबी पिता और एक विकलांग माँ के साथ, पंकज ने अपना जीवन चलाने के लिए स्कूल छोड़ दिया. 2011 में जब तक उनकी मां को गंभीर चोट नहीं आई, तब तक उन्होंने अपना भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचा. पंकज के पिता की एक छोटी सी दुकान थी, जहां पर रोजमर्रा की जरूरत का सामान मिलता था. उनकी इस दुकान पर तंबाकू भी मिलता था. अपने पिता और गांव के अन्य बुजुर्गों को गर्व से तम्बाकू चबाते हुए देखकर, पंकज ने सोचा कि उनके नक्शेकदम पर चलना अच्छा होगा. 

बचपन में नहीं मिला सही मार्गदर्शन
एक दिन दुकान चलाते समय जब कोई आसपास नहीं था, पंकज ने बीड़ी फूंकने की कोशिश की. उसके बाद उसने बीड़ी छिपा दी और अगले दिन फिर से उसने वैसा ही किसा. इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसने एक पूरा पैकेट खत्म कर दिया था. पंकज बताते हैं, "दुख की बात यह थी कि मेरे पिता ने मुझे एक बार धूम्रपान करते हुए पकड़ा और कुछ नहीं कहा. उन्होंने मुझे नहीं रोका और न ही मेरी मां ने. इससे मुझे यह आभास हुआ कि बीड़ी कोई बुरी चीज नहीं है. उसके बाद जल्द ही मुझे शराब की आदत लग गई."

धीरे-धीरे बिगड़ने लगा स्वास्थ्य
एक वक्त ऐसा आया जब गांव के माता-पिता ने अपने बच्चों को पंकज से दूर रहने की चेतावनी दी. लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं थी कि लोग उन्हें इस नजर से देख रहे हैं. धीरे-धीरे पंकज का सामाजिक जीवन इस चीजों से प्रभावित होने लगा. एक दिन उसने खुद को एक ऑटो रिक्शा चालक को पीट दिया. सामाजिक जीवन के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति दोनों खराब हो रहे थे. पंकज बताते हैं, "मेरे दांत पीले हो गए और मेरी भूख बहुत कम हो गई. मैं मुश्किल से दौड़ पाता था और हर समय थका हुआ महसूस करता था." पैसे कमाने के लिए पंकज को 10वीं कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई बंद करनी पड़ी. उसके पिता जो कुछ भी कमाते थे, उसे शराब और जुए में खर्च कर देते थे. यहां तक की आर्थिक तंगी से परेशान होकर वो अक्सर ही पंकज और उसकी मां को पीटते थे. पिटाई से बचने के लिए पंकज ने और शराब और तंबाकू के नशे में रहता था.

स्लम सॉकर ने बदली जिंदगी
पंकज के हालात तब तक ऐसे ही रहे जब तक स्लम सॉकर नाम का एक एनजीओ उनकी जिंदगी में आया. दरअसल स्लम सॉकर विजय बरसे द्वारा शुरू किया गया एनजीओ बेघर बच्चों के साथ फुटबॉल के माध्यम से उनके उत्थान करने के लिए काम करता है. एनजीओ ने ग्रामीणों से पंकज की स्थिति के बारे में जाना और उसे बदलने का फैसला किया. जिसके बाद एनजीओ की तरफ से उन्हें मुफ्त फुटबॉल प्रशिक्षण और एक छोटा सा वजीफा दिया गया, और उन्हें वापस से स्कूल में एडमिशन दिलवाया गया. 

फुटबॉल ने बदली जिंदगी
धीरे-धीरे फुटबॉल खेलने की वजह से पंकज ने अपनी अंदर बदलाव महसूस करना शुरू कर दिया. हर बार जब वह मैदान पर होते थे तो उन्हें बीड़ी या शराब पीने की इच्छा नहीं होती थी. यह शायद पहली बार था, उसने प्रोडक्टिव महसूस किया, और हो भी क्यों ना आखिर पहली ही बार किसी ने पंकज को सही रास्ता दिखाया था. लेकिन क्योंकि पंकज को लत काफी ज्यादा हो चुकी थी. पंकज यह सही रास्ता देख नहीं पाए और इसके बजाय यह मानने लगे कि एनजीओ उन्हें उन चीजों से अलग करने की कोशिश कर रहा है जिनमें उन्हें सुकून मिला. उन्होंने एनजीओ छोड़ दिया. 

जीवन का क्रैश कोर्स था एनजीओ: पंकज
लेकिन 2011 में जब उनकी मां के साथ वो हादसा हुआ तो उन्होंने दोबारा एनजीओ ज्वाइन करने की ठानी. पंकज कहते हैं, "खेल की शानदार रणनीति के साथ, मैं लैंगिक समानता, स्वास्थ्य, दया, सहानुभूति, शिक्षा और बहुत कुछ सीख रहा था. यह निश्चित रूप से जीवन पर एक क्रैश कोर्स था. मैंने अभ्यास का एक भी दिन नहीं छोड़ा क्योंकि मैं खुद में बदलाव देख रहा था." पंकज की मेहनत रंग लाई और जल्द ही पंकज राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेलने लगे. उसके बाद साल 2013 में अपना पहला होमलेस वर्ल्ड कप में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने के लिए वो पोलैंड भी गए, जिसमें वो टीम के कप्तान थे. 

दोबारा शुरू की पढ़ाई
उसके बाद पंकज के जीवन का सूरज चमकने लगा, उनकी कहानी को कई क्षेत्रीय न्यूजपेपरों कवर किया और पहली बार उनके पिता को उन पर गर्व हुआ. वही गांव वाले जो कभी उनका बहिष्कार करते थे अब उनका गुणगान करने लगे. पंकज कहते हैं, "मैंने पहली बार जिम्मेदार महसूस किया, अब मेरे किए गए कामों का कोई अर्थ था. लोग, खासकर बच्चे, मेरी तरफ देखते थे. मैं घर पर संकट से गुजर रहे अपने जैसे बच्चों की मदद करना चाहता था. मैंने नेतृत्व और कोचिंग के अवसरों के लिए एनजीओ के विभिन्न कार्यक्रमों में खुद को नामांकित किया. साथ ही, मैंने फिजिकल एजुकेशन में स्नातक की पढ़ाई भी पूरी की."

पिता के साथ सुधरने लगे रिश्ते
अब घर के हालात भी सुधरने लगे थे. यहां तक की उनके पिता भी अब उनके और उनकी मां के साथ रिश्तों को सुधारना चाहते थे. यहां तक ​​​​कि उनके पिता ने ये स्वीकार किया कि उनकी जीवनशैली की आदतें अस्वस्थ थीं. लेकिन वह शराब से दूर नहीं रह सके और 2014 में उन्होंने आत्महत्या कर ली. लेकिन पंकज रुके नहीं और उन्होंने साल 2017 में नॉर्वे में होमलेस वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम को कोचिंग दी और उसके बाद उन्होंने ग्लासगो टूर्नामेंट के लिए लड़की की टीम को कोचिंग दी. 

'शक्ति गर्ल्स' परियोजना के तहत लड़कियों को दी ट्रेनिंग
एक कोच के रूप में, पंकज ने 25 गांवों में 'शक्ति गर्ल्स' परियोजना के तहत लड़कियों के बीच सामाजिक संदेश भी फैलाए. वह लड़कियों को मासिक धर्म स्वच्छता, शिक्षा, लैंगिक समानता आदि के बारे में शिक्षित करने के लिए फुटबॉल अभ्यास और तकनीकों का उपयोग करते हैं. पंकज कहते हैं, "वार्म-अप अभ्यास के दौरान, हम विषय पढ़ाते हैं और ड्रिब्लिंग करते समय, लड़कियों को अपने द्वारा सीखे गए पाठों को साझा करना होता है. वे समस्या-समाधान, निर्णय लेने, ट्रांसपेरेंट कम्युनिकेशन और टीम वर्क जैसी चीजें भी सिखाई जाती हैं."

अंग्रेजी में देना चाहते हैं स्नातक का पेपर
इतना ही पंकज सांकेतिक भाषा भी सीख रहे है ताकि वह बधिर कोचों को प्रशिक्षित कर सके जो बधिर बच्चों को आगे पढ़ा सकते हैं. आज, पंकज स्लम सॉकर के प्रोजेक्ट मैनेजर हैं और उनके सोशल मीडिया पेजों को भी संभालते हैं. वो कहते हैं, "एक समय था जब मेरी अंग्रेजी बहुत खराब थी लेकिन इस नौकरी के लिए धन्यवाद, मैं बहुत कुछ सीख रहा हूं." पंकज ने एक लत से जूझने से लेकर अब दूसरे बच्चों के जीवन में बदलाव लाने तक का लंबा सफर तय किया है. वह वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से कला स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं और वे पहली बार अंग्रेजी में पेपर लिखने का प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा, "लेकिन इस बार मैं खाली नहीं जाऊंगा या असहाय महसूस नहीं करूंगा. मैंने तैयारी की है, कड़ी मेहनत की है और अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित किया है."

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