Om Birla vs K Suresh: पक्ष और विपक्ष में Lok Sabha Speaker पर रार! ओम बिरला के सामने के सुरेश मैदान में, जानें कैसे होता है स्पीकर का चुनाव 

Lok Sabha Speaker Election: लोकसभा स्पीकर के पद की अहमियत इसलिए है कि वह सदन का प्रमुख और पीठासीन अधिकारी होता है. लोकसभा कैसे चलेगी, इसकी पूरी जिम्मेदारी स्पीकर की होती है. लोकसभा स्पीकर वोटिंग की स्थिति में वोट नहीं देते हैं, लेकिन यदि बराबर वोट रहे तो कुछ स्थिति में वे निर्णायक वोट दे सकते हैं.

Lok Sabha Speaker Election (Photo: PTI)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2024,
  • अपडेटेड 5:57 PM IST
  • संविधान के अनुच्छेद 93 में स्पीकर के चुनाव की कही गई है बात 
  • 26 जून की सुबह 11 बजे होगा स्पीकर के लिए चुनाव

Lok Sabha Speaker Powers: 18वीं लोकसभा (Lok Sabha) के पहले सत्र के दूसरे दिन 25 जून 2024 को लोकसभा के अध्यक्ष यानी स्पीकर (Speaker) पद पर पक्ष और विपक्ष में सहमति नहीं बन पाई.

एनडीए (NDA) ने जहां एक बार फिर ओम बिरला (Om Birla) को  लोकसभा स्पीकर बनाने की तैयारी की है तो वहीं इंडिया गठबंधन (India Alliance) ने के सुरेश को अपना उम्मीदवार बनाया है. 26 जून की सुबह 11 बजे स्पीकर के लिए चुनाव होगा. इसके बाद तय हो जाएगा कि लोकसभा का स्पीकर किसका होगा. आइए जानते हैं पक्ष और विपक्ष के लिए स्पीकर पद इतना अहम क्यों है?

तीसरी बार होने जा रहा स्पीकर पद पर चुनाव
72 साल में तीसरी बार स्पीकर को लेकर चुनाव होने जा रहा है. इससे पहले आजादी के बाद पहली बार चुनाव 1952 में दूसरी बार स्पीकर पद के लिए चुनाव आपातकाल के दौरान 1976 में हुआ था. देश की आजादी के बाद पहले लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर बने थे. अब 2024 में तीसरी बार चुनाव होने जा रहा है. दो बार को छोड़कर अब तक पक्ष और विपक्ष के बीच सहमति से स्पीकर बनता आया है.

कुछ एक बार को छोड़कर पक्ष से स्पीकर और विपक्षी दल से जुड़ा नेता डिप्टी स्पीकर चुना जाता रहा है. इंडिया गठबंधन का आरोप है कि बीजेपी (BJP) की तरफ से डिप्टी स्पीकर पद विपक्ष को देने को लेकर सहमति न जताने के बाद हमने केरल के सांसद के. सुरेश को लोकसभा स्पीकर पद के उम्मीदवार के रूप में उतारा है. इतना ही नहीं विपक्ष ने डिप्टी स्पीकर पर भी उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है.स्पीकर पद के नॉमिनेशन के लिए मंगलवार को दोपहर 12 बजे तक अंतिम समय सीमा रखी गई थी.

कैसे होता है स्पीकर का चुनाव
हमारे देश की संसदीय कार्यवाही का नेतृत्व एक पीठासीन अधिकारी करता है, जिसे अध्यक्ष या स्पीकर कहा जाता है. अनुच्छेद 93 के अनुसार सदन के शुरू होने के बाद यथाशीघ्र स्पीकर और डिप्टी स्पीकर चुना जाना चाहिए. स्पीकर बनने के लिए कोई विशेष योग्यता की जरूरत नहीं होती है. लोकसभा का कोई भी सांसद स्पीकर बन सकता है. लोकसभा के स्पीकर के चुनाव के लिए राष्ट्रपति एक तारीख निर्धारित करते हैं और इसके बाद स्पीकर के चुनाव की तारीख तय की जाती है. 

साधारण बहुमत की होती है जरूरत
स्पीकर चुने जाने के लिए सदन में उपस्थित सदस्यों के साधारण बहुमत की जरूरत होती है. आमतौर पर सत्तारूढ़ दल का सदस्य ही स्पीकर बनता है क्योंकि बहुमत उसके पास होता है. संविधान में प्रावधान है कि अध्यक्ष का पद कभी खाली नहीं होना चाहिए, इसलिए मृत्यु या इस्तीफे की स्थिति को छोड़कर वह अगले सदन की शुरुआत तक उस पद पर बना रहेगा.

नवनिर्वाचित स्पीकर को प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता अध्यक्ष पद के आसन तक ले जाते हैं. इसके बाद सभा में उपस्थित सभी राजनीतिक दलों के नेता अध्यक्ष के आसन पर जाकर उन्हें बधाई देते हैं. इसके बाद स्पीकर का धन्यवाद भाषण होता है, फिर वे अपना कार्यभार ग्रहण करते हैं. लोकसभा स्पीकर का चयन सदन में मौजूद सदस्य ही करते हैं इसलिए स्पीकर के लिए कोई शपथ ग्रहण समारोह नहीं होता है.

इतने साल का होता है कार्यकाल
लोकसभा स्पीकर का कार्यकाल 5 साल तक का होता है. हालांकि जरूरत पड़ने पर स्पीकर को पद से हटाया जा सकता है. इसका अधिकार निचले सदन के पास है. संविधान के अनुच्छेद 94 और 96 के अनुसार सदन बहुमत (सदन की उपस्थिति और वोट करने वाली कुल संख्या का 50 फीसदी से अधिक) द्वारा प्रस्ताव पारित कर स्पीकर को हटा सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 7 और 8 के तहत लोकसभा सदस्य के तौर पर अयोग्य घोषित होने पर स्पीकर को हटाया भी जा सकता है.

कितना अहम है स्पीकर का पद
1. लोकसभा के स्पीकर का पद सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन की ताकत का प्रतीक होता है और लोकसभा के कामकाज का पूरा कंट्रोल स्पीकर के हाथ में होता है.
2. लोकसभा का स्पीकर सदन के नियमों की व्याख्या से लेकर व्यवस्था बनाए रखने और सदस्यों के निष्कासन तक का काम करता है.
3. संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत स्पीकर लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त सत्रों की अध्यक्षता भी करता है. यदि कोरम की कमी होती है, तो वह बैठकों को स्थगित कर देता है.
4. अध्यक्ष यह निर्धारित करता है कि सदन में पेश किया गया विधेयक धन विधेयक है या साधारण विधेयक.
5. सदन की समितियां, जो मतदान से पहले किसी नीति पर चर्चा और विचार-विमर्श करती हैं, अध्यक्ष की ओर से गठित की जाती हैं. वे अध्यक्ष के निर्देशों के तहत काम करती हैं. 
6. स्पीकर दलबदल के आधार पर (संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत) किसी संसद सदस्य को सदन से अयोग्य घोषित कर सकता है.
7. यदि कोई लोकसबा सदस्य स्पीकर के आदेशों का उल्लंघन करता है तो ऐसे मामलों में उसे सदन से हटना पड़ सकता है. इतना ही नहीं अध्यक्ष ऐसे सदस्य को निलंबित भी कर सकते हैं.
8. सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को स्पीकर ही स्वीकार करता है. 
9. लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देने का निर्णय भी स्पीकर ही करता है.
10. अध्यक्ष का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है.आमतौर पर उन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, चुनौती नहीं दी जा सकती या आलोचना नहीं की जा सकती. 
11. लोकसभा में सदस्य को प्रश्न पूछने या किसी भी चर्चा के लिए स्पीकर की अनुमति जरूरी. अध्यक्ष ही तय करता है कि कौनसा प्रश्न पूछने योग्य. 
12. स्पीकर ही सदन में की गई टिप्पणियों को रिकॉर्ड से आंशिक या पूरी तरह हटाने का निर्णय करता है.
13. किसी भी प्रस्ताव पर वोटिंग के समय स्पीकर भूमिका काफी अहम रहती है.
14. यदि किसी विधेयक पर पक्ष और विपक्ष दोनों के मत विभाजन के बाद संख्या बराबर आ जाए तो स्पीकर को अधिकार है कि वह अपना वोट दे.
15. अध्यक्ष की अनुमति के बिना किसी भी सदस्य को सदन के परिसर में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है.

किसके पास क्या है संख्याबल
लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों का ऐलान 4 जून को किया गया था. इसमें एक बार फिर एनडीए सरकार बनाने में सफल रही. लोकसभा में एनडीए का संख्याबल 293 है. एनडीए की अगुवाई कर रही बीजेपी 240 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. उधर, इंडिया गठबंधन इस बार 233 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही है. इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस को सबसे अधिक 99 सीटों पर जीत मिली थी. राहुल गांधी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी. हालांकि राहुल ने वायनाड सीट छोड़ दी है. ऐसे में कांग्रेस के पास 98 सीटें रह गई हैं. इसके अलावा इस बार सात निर्दलीय समेत 16 अन्य भी चुनाव जीतने में सफल हुए हैं. 


 

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