Mahatma gandhi Murder case: ‘केवल मैं… कोई और नहीं था हत्या में शामिल’ बापू के हत्यारे गोडसे... साजिश में शामिल सावरकर ने क्या दलीलें दी थीं? बचाव पक्ष ने क्या कहा था?

Mahatma Gandhi Murder Case Verdict: महात्मा गांधी को गोली मारने वाले नाथूराम गोडसे और उनके सह-आरोपियों ने अपने पक्ष में कई तर्क दिए थे… ये सभी तर्क, गवाहियां, जिरह और अदालती कार्यवाही का पूरा विवरण एक 211 पन्नों के डॉक्यूमेंट में है. GNT टीम ने इस पूरे जजमेंट को पढ़ा और कई अनछुए पहलुओं को समझा. इस किस्त में हम बचाव पक्ष की कहानी बताएंगे कि कोर्ट में बापू के हत्यारे गोडसे, साजिश में शामिल सावरकर ने क्या-क्या दलीलें दी थीं?

Mohandas Karamchand Gandhi (Photo/Getty Images)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:26 AM IST
  • ‘केवल मैं था जिम्मेदार’- गोडसे 
  • नारायण आप्टे ने भी किया था अपना बचाव

महात्मा गांधी की हत्या में कई षड्यंत्र और कानूनी चुनौतियां शामिल थीं. नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी पर गोलियां चलाईं थीं. महात्मा गांधी मर्डर केस में आरोपियों में एक नाम ऐसा भी था जिसपर खूब बहस चली. ये नाम था विनायक दामोदर सावरकर और उनकी भूमिका. 

गांधी मर्डर केस जजमेंट वाली की इस चार भाग की सीरीज के दूसरे हिस्से में हम विपक्ष की दलीलों की बात करेंगे. महात्मा गांधी को गोली मारने वाले नाथूराम गोडसे और उनके सह-आरोपियों ने अपने पक्ष में कई तर्क दिए थे… ये सभी तर्क, गवाहियां, जिरह और अदालती कार्यवाही का पूरा विवरण एक 211 पन्नों के जजमेंट डॉक्यूमेंट में है. GNT टीम ने इस पूरे जजमेंट को पढ़ा और कई अनछुए पहलुओं को समझा. इस किस्त में हम बचाव पक्ष की कहानी बताएंगे. 

इस पूरी जिरह में कई षड्यंत्रकारी सामने आए और गवाहों की घंटों पूछताछ की गई. बचाव की रणनीतियां सबकी अलग-अलग थीं. लेकिन इन सबमें मुख्य तर्क यह था कि नाथूराम गोडसे ने अकेले इस हत्या को अंजाम दिया है और इसके पीछे कोई बड़ा षड्यंत्र नहीं था. बचाव पक्ष ने अन्य आरोपियों जैसे नारायण डी. आप्टे, दिगंबर बड़गे और अन्य की भूमिकाओं को कम करके दिखाने की कोशिश की गई. इस दौरान सभी ने अपने-अपने स्टेटमेंट दिए थे. 

‘केवल मैं था जिम्मेदार’- गोडसे 
नाथूराम गोडसे, जिसने 30 जनवरी, 1948 को गांधी को गोली मारी थी, ने अपने बचाव में एक लंबा लिखित बयान दायर किया था. इस दस्तावेज में उसने अपने कदमों और गांधी की हत्या से पहले की घटनाओं के बारे में डिटेल में बताया. गोडसे ने दावा किया कि भले ही उसने हत्या की हो, लेकिन ये हत्या केवल उसके अपने व्यक्तिगत राजनीतिक पक्ष से प्रभावित थी न कि किसी साजिश का हिस्सा. गोडसे ने खुद को अपराध का एकमात्र सूत्रधार बताया. इतना ही नहीं बल्कि गोडसे ने दूसरों की भूमिका को भी सिरे से खारिज कर दिया. 

अपने लिखित बयान के अनुसार, गोडसे और उनके करीबी सहयोगी नारायण डी. आप्टे 14 जनवरी, 1948 को पूना (अब पुणे) से बॉम्बे (अब मुंबई) गए थे. गोडसे के अनुसार, उनका उद्देश्य गांधी के अनशन और पाकिस्तान को ₹55 करोड़ देने में उनकी भूमिका के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करना था. गोडसे को गांधी के विभाजन के दौरान किए गए कार्यों और उसके बाद हुए सांप्रदायिक हिंसा से गहरा दुख और धोखा महसूस हुआ था. उनके अनुसार, गांधी की नीतियां पाकिस्तान के बनने और लाखों हिंदुओं की पीड़ा के लिए जिम्मेदार थीं.

नाथूराम गोडसे (फोटो- Getty Images)

गोडसे और आप्टे ने फर्जी नामों का इस्तेमाल करते हुए 17 जनवरी, 1948 को बॉम्बे से दिल्ली की फ्लाइट ली और वे नकली नामों से मरीना होटल में ठहरे. वे 20 जनवरी तक दिल्ली में रहे, जिसके बाद वे कानपुर के लिए रवाना हो गए और फिर बॉम्बे लौट आए. गोडसे के अनुसार, वे 27 जनवरी को आप्टे के साथ फिर से फर्जी नामों के साथ ही दिल्ली लौटे. 30 जनवरी, 1948 को गोडसे ने स्वीकार किया कि उन्होंने अकेले ही बिरला हाउस में महात्मा गांधी को गोली मारी थी और इस तरह हत्या की पूरी जिम्मेदारी ली.

गोडसे का बचाव दो प्रमुख तर्कों पर आधारित था: पहला, कि गांधी की हत्या के लिए वे अकेले जिम्मेदार थे, और दूसरा, कि उनका काम राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित था, न कि किसी व्यक्तिगत दुश्मनी से. 

नारायण आप्टे का बचाव
नारायण आप्टे, जिन्हें गोडसे का सबसे करीबी सहयोगी माना जाता था, ने भी अदालत में एक बड़ा लिखित बयान प्रस्तुत किया. आप्टे का बयान गोडसे की घटनाओं की समयरेखा के बारे में बताता है. हालांकि, बयान में कई चीजें और थीं. गोडसे की तरह, आप्टे ने भी दावा किया कि उनकी प्राथमिक कारण गांधी के अनशन का विरोध करना था. आप्टे का बचाव यह था कि उसने  शुरू में गांधी की हत्या करने के बजाय एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का इरादा किया था.

नारायण आप्टे (फोटो- Getty Images)

आप्टे ने आगे बताया कि उसने दिल्ली की यात्रा इसलिए की थी ताकि स्वयंसेवकों को संगठित कर प्रदर्शन किया जा सके. 20 जनवरी, 1948 को, आप्टे ने एक अन्य आरोपी, दिगंबर बड़गे के साथ बिरला हाउस का दौरा किया ताकि स्थिति का आकलन किया जा सके. आप्टे के अनुसार, उन्होंने यह तय किया कि प्रदर्शन के लिए माहौल अनुकूल नहीं था, और उन्होंने अपने योजनाओं को कैंसिल कर दिया. हालांकि, जब उसे पता चला कि एक अन्य आरोपी, मदनलाल पहवा, को 20 जनवरी को बिरला हाउस में एक विस्फोट के संबंध में गिरफ्तार कर लिया गया था, तो आप्टे और गोडसे ने नई योजना बनाई. इन दोनों ने  रात दिल्ली से कानपुर के लिए निकलने का फैसला किया. 

बयान में आप्टे ने भी किसी साजिश के होने से इनकार किया है. उसने स्वीकार किया कि उसने गोडसे के साथ दिल्ली की यात्रा की थी. लेकिन इसके साथ यह भी दावा किया कि 30 जनवरी, 1948, यानी हत्या के दिन, वह दिल्ली में नहीं था. इसके बजाय, आप्टे ने दावा किया कि वह उस दिन बॉम्बे में था. 

विष्णु करकरे- मैं नहीं था दिल्ली में 
विष्णु करकरे, जो इस मामले के एक और आरोपी था, ने भी अपने बचाव में एक लिखित बयान प्रस्तुत किया था. करकरे का दावा था कि वह दिल्ली मदनलाल पहवा के आग्रह पर गया था, जिसने उसे अपनी शादी की व्यवस्था में मदद करने के लिए कहा था. करकरे ने जोर देकर कहा कि उसे महात्मा गांधी की हत्या की किसी भी योजना की जानकारी नहीं थी और वह केवल व्यक्तिगत कारणों से पहवा के साथ दिल्ली गया था. उसने आगे लिखा कि वह शरिफ होटल में एक फेक नाम से ठहरे थे. दिल्ली में उसे होने का और गांधी के खिलाफ किसी साजिश से कोई संबंध नहीं था.

विष्णु करकरे (फोटो- Getty Images)

हत्या के दिन करकरे ने कहा कि वह दिल्ली में नहीं बल्कि बॉम्बे में था. 

हथियार-बारूद सप्लाई करने वाला कहां था?
दिगंबर बड़गे, जिसने साजिशकर्ताओं को हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति की थी, गांधी की हत्या में बड़ी भूमिका निभाई थी. अपने बचाव में, बड़गे ने हथियारों की आपूर्ति को लेकर स्वीकारा था, लेकिन यह तर्क दिया कि उन्हें गांधी की हत्या की अंतिम योजना के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी. उसने यह भी दावा किया कि गोडसे और आप्टे से उसकी चर्चा केवल विरोध प्रदर्शन तक ही सीमित थी. 

बड़गे कई मौकों ओर आप्टे और गोडसे के साथ देखा जा चुका था, जिसमें बिड़ला हाउस भी शामिल था, जहां गांधी की हत्या हुई थी. इन्हें लेकर बड़गे ने दावा किया था कि ये केवल शांतिपूर्ण प्रदर्शन की तैयारी के लिए था, इसमें हत्या की योजना शामिल नहीं थी. बड़गे ने पूरी बयान में खुद को बेकसूर दिखाया. 

लेकिन फिर भी हथियारों की आपूर्ति में बड़गे की भूमिका काफी बड़ी थी. बड़गे ने इन सभी को हथगोले और बंदूक के बारूद सप्लाई किए थे. 

दिगंबर बड़गे (फोटो- Getty Images)

सावरकर की क्या भूमिका थी?
गांधी हत्या मामले के सबसे विवादास्पद पहलुओं में से एक हिंदू महासभा के प्रमुख नेता विनायक दामोदर सावरकर की भूमिका थी. सावरकर पर हत्या की साजिश में प्रमुख साजिशकर्ता होने का आरोप लगाया गया था, और पक्ष ने तर्क दिया कि सावरकर ने गोडसे और आप्टे को वैचारिक समर्थन दिया था. 

अपने बचाव में, सावरकर ने साजिश में किसी भी तरह की भागीदारी से इनकार किया था. सावरकर का दावा था कि भले ही उनकी गोडसे और आप्टे से बातचीत हुई थी, लेकिन ये चर्चाएं केवल राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रित थीं और गांधी की हत्या से उनका कोई संबंध नहीं था. सावरकर के बचाव का जोर इस बात पर था कि वह हिंदू राष्ट्रवाद के पक्षधर थे, लेकिन हिंसा का समर्थन नहीं करते थे.

सावरकर (फोटो- सोशल मीडिया)

अदालत को साजिश में सावरकर की प्रत्यक्ष भागीदारी को लेकर कोई तथ्य नहीं मिला. उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे जो उन्हें हत्या की योजना से जोड़ते हों. आखिर में साक्ष्यों की कमी के कारण सावरकर को बरी कर दिया गया था.

मदनलाल पहवा का बचाव क्या था?
मदनलाल के. पहवा, भी इस मामले में अन्य आरोपी था. पहवा ने 20 जनवरी, 1948 को बिड़ला हाउस में विस्फोटक उपकरण लगाने की बात स्वीकार की थी. ये बात गांधी की हत्या से दस दिन पहले की है. हालांकि, उसका दावा था कि यह विस्फोट एक चेतावनी के रूप में था, न कि गांधी की हत्या का प्रयास में. 

पहवा ने साजिश में अपनी भूमिकाओं को कम करके दिखाने की कोशिश की. हालांकि, अदालत ने पाया कि पहवा का काम, विशेष रूप से बिड़ला हाउस में पहवा का विस्फोट, गांधी की हत्या के पीछे के षड्यंत्र का हिस्सा था.

मदनलाल के. पहवा (फोटो- Getty Images)

बचाव पक्ष की रणनीति अलग-अलग थी
गांधी हत्या मामले में बचाव पक्ष की रणनीति काफी अलग-अलग थी. गोडसे का बचाव उसके व्यक्तिगत उद्देश्यों पर केंद्रित था, जबकि आप्टे और बड़गे जैसे अन्य लोगों ने अपनी भागीदारी को कम करके दिखाने या साजिश की जानकारी न होने का दावा करने की कोशिश की थी. 

अदालत के फैसले, को 211 पन्नों की फाइल में दर्ज किया गया. महात्मा गांधी मर्डर केस की पूरी जजमेंट फाइल को दिल्ली हाई कोर्ट ने हाई कोर्ट ई-म्यूजियम नाम के ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड किया है. इसमें कई ऐतिहासिक केस की ओरिजिनल जजमेंट फाइल अपलोड की गई है. जिसमें डिस्ट्रिक्ट कोर्ट सुप्रीम कोर्ट दोनों के दस ऐतिहासिक केस के डिजिटल रिकॉर्ड शामिल हैं. जैसे- दिल्ली हाई कोर्ट का पहला जजमेंट, इंदिरा गांधी हत्या, संसद हमला और लाल किला हमला जैसे कई जरूरी जजमेंट आदि. 

इस जजमेंट में गोडसे ने अपना अपराध स्वीकारा था. वहीं अन्य लोगों, विशेष रूप से आप्टे, बड़गे और सावरकर की भागीदारी को लेकर काफी बड़ी जांच हुई. आखिर में, कई आरोपियों को दोषी ठहराया गया, जबकि सावरकर जैसे अन्य लोगों को सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया गया. 

 

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