"मित्रों और साथियों, हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है, और हर जगह अंधेरा है... हमारे प्रिय नेता, बापू, अब नहीं रहे."
-पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
महात्मा गांधी की हत्या की दुखद घटना को लेकर अनगिनत कहानियां, किताबें और रिपोर्टें मौजूद हैं. लेकिन सबसे ज्यादा सटीकता से गांधी मर्डर केस की ओरिजिनल जजमेंट फाइल में बताया गया है. हमारी चार-भाग वाली सीरीज की इस तीसरी किस्त में, GNT टीम आपके लिए गांधी के अंतिम दिन की घटनाओं का एक डिटेल्ड ब्योरा लेकर आई है. ये गांधी मर्डर केस की 211-पन्नों की ओरिजिनल जजमेंट फाइल से लिया गया है. इसी डॉक्यूमेंट से हम उस दिन के बारे में कुछ अनसुनी और कम ज्ञात कहानियों को सामने लेकर आ रहे हैं.
हत्या से पहले के सटीक पलों से लेकर उसके बाद की मेडिकल जांच तक यह रिपोर्ट कई जानकारियों का खुलासा करती है जिस पर व्यापक रूप से चर्चा नहीं की गई है.
30 जनवरी 1948… शाम 5 बजे… महात्मा गांधी अपने कमरे से प्रार्थना मैदान की ओर चल रहे थे… यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा था. वे कई साल से ऐसा कर रहे थे. उस दिन उनके करीबी सहायक गुरबचन सिंह ने उन्हें सूचित किया कि उन्हें सभा में पहुंचने में थोड़ी देर हो जाएगी… गांधी ने हंसते हुए जवाब दिया, “जो लोग देर से आते हैं, उन्हें सजा मिलनी चाहिए.” यह कहकर, उन्होंने प्रार्थना मैदान की ओर तेजी से कदम बढ़ाया.
गांधी के साथ उनकी भतीजियां, अवा बेन और माणू बेन, थीं, जो अक्सर उनके कंधों को पकड़कर उन्हें सहारा देती थीं. प्रार्थना मैदान में एक बड़ी भीड़ थी, सभी उनकी उपस्थिति का इंतजार कर रहे थे. आमतौर पर, गांधी के आगे एक या दो लोग रास्ता साफ करने के लिए चलते थे, लेकिन उस दिन कोई भी आगे नहीं था. जैसे ही वे मंच के करीब पहुंचे, गुरबचन सिंह ने गांधी के सामने आने की कोशिश की लेकिन थोड़ी देर वे बातचीत के लिए रुक गए.
गांधी ने आगे बढ़ना जारी रखा, और भीड़ ने उनके गुजरने के लिए रास्ता खोला. अपनी आदत के अनुसार गांधी ने उपस्थित लोगों को नमस्कार करने के लिए अपने हाथ जोड़ दिए. इसके बाद क्या हुआ, उसने पूरे देश और दुनिया को हिला कर रख दिया.
एक आदमी, नाथूराम गोडसे, भीड़ से बाहर आया. उसने गांधी के रास्ते में खड़ा होकर, उनके सामने झुकते हुए, तेजी से एक पिस्टल निकाली. बिना हिचकिचाहट के, गोडसे ने तीन गोलियां तेजी से चलाईं. गोलियां गांधी की छाती और पेट में लगीं. गंभीर रूप से घायल गांधी जमीन पर गिर गए, उनके मुंह से आखिरी शब्द "हे राम" निकला.
पुलिस ने तुरंत पिस्टल को जब्त कर लिया… उसमें चार कारतूस अभी भी थे. घटना स्थल पर ये सब देखकर लोग विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि क्या हुआ है. गांधीजी की हत्या की जा चुकी थी.
गांधी को जल्दी से उनके कमरे में ले जाया गया, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी. चोटें बहुत गंभीर थीं, और बहुत खून बह जाने के कारण कई प्रयासों के बावजूद भी, गांधी जल्द ही चल बसे.
कौन सी पिस्टल हुई थी इस्तेमाल?
हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्टल को Beretta 606824 के रूप में पहचाना गया. हत्यारा, नाथूराम गोडसे, ने गांधी पर फायरिंग के लिए इस पिस्टल का उपयोग किया था. पुलिस ने पिस्टल को बरामद किया, जिसमें चार कारतूस थे. सरदार गुरबचन सिंह, एएसआई अमरनाथ, नंदलाल मेहता, एफ.सी. रतन सिंह, और ई.सी. चरण सिंह ने इस हथियार की बरामदगी के बारे में महत्वपूर्ण गवाही दी. उनके बयान ने पुष्टि की कि पिस्टल गोडसे के हाथ से छीन ली गई थी और शूटिंग के तुरंत बाद पुलिस के कब्जे में ले ली गई थी.
मेडिकल रिपोर्ट में क्या आया?
हत्या के बाद के घंटों में, जांचकर्ताओं ने घटनास्थल से एविडेंस इकट्ठे करना शुरू किया. एफ.सी. रतन सिंह और जसवंत सिंह, पुलिस के दो अधिकारी, ने स्थिति को नियंत्रित किया. उन्होंने प्रार्थना मंच से दो खाली कारतूस केस, दो चली हुई गोलियां, और एक खून से सना हुआ कंधे पर रखने वाला पट्टा बरामद किया, जहां गांधी गिरे थे.
गांधी के शरीर की मेडिकल टेस्टिंग कर्नल डी.एल. तनेजा द्वारा की गई, जो नई दिल्ली के सिविल अस्पताल में डॉक्टर थे. उन्होंने सुबह 8 बजे, 31 जनवरी, 1948 को अपनी रिपोर्ट दी. रिपोर्ट में गांधी को लगी चोटों का जिक्र था:
1. गांधी की छाती के दाहिनी ओर, चौथे इंटरकोस्टल स्थान के पास, एक छिद्रित चोट, जो एक गोली द्वारा हुई. इस चोट से कोई बाहरी घाव नहीं था, जो यह दर्शाता है कि गोली अंदर ही फंसी रही.
2. पेट के दाहिनी ओर दो छिद्रित चोटें, एक सातवें इंटरकोस्टल स्थान के पास और दूसरी नाभि के ऊपर. ये चोटें भी गोलियों द्वारा की गईं, जो गांधी की पीठ के पास निकल गईं, जिससे अलग से क्षति हुई.
कर्नल तनेजा के मुताबिक मृत्यु का कारण इंटरनल ब्लीडिंग और शॉक था.
नाथूराम गोडसे की पिस्तौल लग गई थी किसी और के हाथ
ओरिजिनल जजमेंट के मुताबिक, नाथूराम गोडसे ने अपने बयान में गांधी को गोली मारने की बात स्वीकार की है. अपने बयान में गोडसे ने लिखा, “मैं गांधी के सामने झुका, लेकिन सम्मान में नहीं बल्कि केवल इसलिए कि मैं यह देखना चाहता था कि मैं दूरी उनसे ठीक हो. गोली चलाने से पहले मैंने अपनी पिस्टल की सेफ्टी कैच हटा दी थी. मेरा विचार था कि उन पर बिल्कुल नजदीक से दो बार गोली चलाई जाए ताकि आसपास के लोग घायल न हों. हालांकि, मुझसे तीन बार फायरिंग हो गई थी. एक मिनट तक सबकुछ शांत था. मैं भी जोश में आ गया था. फिर मैंने चिल्लाया, 'पुलिस-पुलिस आओ.'”
गोडसे ने आगे कहा, “फायरिंग के बाद अमरनाथ ने मुझे पीछे से पकड़ लिया था. उस समय कुछ लोगों ने शोर मचा दिया, जिससे पिस्तौल मेरे हाथ से गिर गई. एक माली ने डंडे से दो-तीन वार मेरे सिर पर किए और मेरे सिर से खून निकलने लगा. मैंने उससे कहा कि अगर वह मेरी खोपड़ी तोड़ देगा तो भी मैं प्रतिरोध नहीं करूंगा. मैं जो करना चाहता था वह पहले ही कर चुका हूं. पुलिस ने मुझे भीड़ से दूर ले जाने की कोशिश की. तभी मैंने उस व्यक्ति को देखा जिसके हाथ में मेरी पिस्तौल थी. जिस तरह से वह पिस्तौल लहरा रहा था उससे ऐसा लग रहा था कि वह इसे इस्तेमाल करना नहीं जानता. मैंने उससे कहा कि वह सेफ्टी-कैच को लगा दे नहीं तो वह किसी दूसरे को घायल कर सकता है. इस पर उसने बताया कि वह पिस्तौल से मुझे गोली मारने वाला है.”
जांच और बाद की गिरफ्तारी
हालांकि, हत्या से पहले इन सभी ने पूरी योजना बनाई थी. नवंबर 1947 से ही हत्या की योजना बनाई जा रही थी. नवंबर में ही नारायण आप्टे ने दिगंबर बड़गे से हथियार और गोला-बारूद की मांग की थी, जिसे दिगंबर बड़गे ने बाद में उपलब्ध कराने का वादा किया.
वहीं जनवरी की शुरुआत में आप्टे और बड़गे ने फिर मुलाकात की, जिसमें बागडे ने हैंड ग्रेनेड और गन-कॉटन स्लैब दिए थे. इस दौरान नाथूराम गोडसे ने आप्टे की पत्नी को लाभार्थी बनाकर जीवन बीमा पॉलिसियां खरीदीं. ठीक 17 जनवरी को गोडसे और आप्टे फिर से फेक नामों के तहत दिल्ली उड़ान भरते हैं और मरीना होटल में ठहरते हैं. वहीं करकरे और पाहवा ट्रेन से दिल्ली की यात्रा करते हैं, दोपहर में पहुंचते हैं. जहां पूरी योजना बनाई जाती है.
नारायण डी. आप्टे और विष्णु करकरे, जो साजिश में प्रमुख व्यक्ति थे, को अलग-अलग होटलों और जगहों के माध्यम से ट्रैक किया गया. ये वो जगहें थीं जहां वे फर्जी नाम से ठहरे थे. आप्टे और कर्करे को 14 अगस्त 1948 को बॉम्बे (मुंबई) के प्यर्केस अपोलो होटल में गिरफ्तार किया गया, जहां उनके कब्जे में कई संदिग्ध वस्तुएं मिलीं.
जवाहरलाल नेहरू ने दिया था देश के नाम संदेश
गांधी की हत्या की खबर फैलने के बाद, पूरा देश शोक में डूब गया था. पूरे भारत में, लोग सार्वजनिक जगहों पर इकट्ठे होकर दुःख मना रहे थे. दुनिया भर के नेताओं ने इस दुखद घटना पर अपनी चिंता और दुःख जताया था. उस समय भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक रेडियो प्रसारण में राष्ट्र को संबोधित किया:
"मित्रों और साथियों, हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है, और हर जगह अंधेरा है... हमारे प्रिय नेता, बापू, जैसा कि हम उन्हें कहते थे, राष्ट्रपिता, अब नहीं रहे."
31 जनवरी 1948, गांधी की हत्या के दिन के बाद, नई दिल्ली में एक विशाल अंतिम यात्रा का आयोजन किया गया. उनका शव एक साधारण लकड़ी के मंच पर ले जाया गया, इसके पीछे लाखों शोकाकुल लोग थे जो सड़कों पर खड़े थे, रोते और प्रार्थना गाते हुए. लाखों लोगों ने मिलकर एक साथ बापू को अलविदा कहा.
गौरतलब है कि अदालत के फैसले, को 211 पन्नों की फाइल में दर्ज किया गया है. इसी केस की पूरी जजमेंट फाइल को दिल्ली हाई कोर्ट ने हाई कोर्ट ई-म्यूजियम नाम के ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड किया है. पोर्टल पर कई ऐतिहासिक केस की ओरिजिनल जजमेंट फाइल अपलोड की गई है. इसमें दिल्ली हाई कोर्ट का पहला जजमेंट, इंदिरा गांधी हत्या, संसद हमला और लाल किला हमला जैसे कई जरूरी जजमेंट शामिल हैं.
इस सीरीज के पहले और दूसरे पार्ट को यहां पढ़ा जा सकता है