Manipur's Ima Keithel: जिस मार्केट में रात को रुकते हैं प्रदर्शनकारी छात्र, उसको चलाती हैं सिर्फ महिलाएं, जानिए 16वीं शताब्दी के Women's Market के बारे में

मणिपुर में इंफाल का Ima Keithel एशिया की सबसे बड़ी Women's Market मानी जाती है जिसे Mother's Market के नाम से भी जाना जाता है. यह बाजार 500 साल पुराना है और यहां 5000 से ज्यादा महिलाएं अपनी छोटी-बड़ी दुकानें चलाती हैं.

Ima Keithel: The world’s largest women-run market
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली,
  • 11 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:31 PM IST
  • 16वीं शताब्दी में शुरू हुआ था यह महिलाओं का बाजार
  • एशिया का सबसे बड़ा Women

Manipur's Women Market Ima Keithel: मणिपुर में इंफाल का इमा कीथेल मार्केट, एशिया का सबसे बड़ा बाजार है जिसे महिलाएं चलाती हैं. Mother's Market के नाम से मशहूर यह बाजार मणिपुर में हो रहे छात्र विरोध के केंद्र में है. दरअसल, विरोध कर रहे बहुत से छात्रों के लिए यह बाजार उनका ठिकाना बन गया है. जहां वह सोते हैं, खाना खाते हैं और जहां से वह प्रशासन से अपने मांगे कर रहे हैं. पुलिस ने छात्रों को समझाने का प्रयास भी किया लेकिन प्रदर्शनकारियों ने पीछे हटने से इनकार कर दिया है. 

ऐसे में, महिलाओं द्वारा चलाया जाने वाला यह बाजार खूब चर्चा में है. इमा कीथेल मार्केट महिला सशक्तिकरण की झलक आपको दिखाता है. इस अनोखे बाजार की खास बात यह है कि यहां दुकानदार सिर्फ महिलाएं हैं. स्थानीय मैतेई भाषा में इमा कीथेल का मतलब होता है 'माँ का बाज़ार.' यहां सिर्फ महिलाएं बिजनेस करती हैं और पुरुष यहां सिर्फ खरीददारी करने आ सकते हैं. या फिर कुली या गार्ड के रूप में, या महिलाओं को चाय देने के लिए पुरुष आ सकते हैं. बाकी पूरा बाजार महिलाएं ही संभालती हैं. 

500 साल पुराना बाजार, 5000 महिला दुकानदार 
भारतीय राज्य मणिपुर की राजधानी इंफाल में स्थित, इमा कीथेल 500 साल से ज्यादा पुराना बाजार है. जिसे पूरी तरह से 5,000 महिला दुकानदार चलाती और मैनेज करती हैं. यह दुनिया में महिलाओं द्वारा संचालित सबसे बड़ा बाजार है. महिलाओं ने 16वीं शताब्दी में मुट्ठी भर स्टॉल्स के साथ बाजार की शुरुआत की थी. आज, तीन बहुमंजिला इमारतों का परिसर इंफाल में सभी कमर्शियल और सोशल- इकोनॉमिक एक्टिविटीज का केंद्र है जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है. 

दुनिया की एकमात्र महिला मार्केट (Photo: Getty Images)

इस बाजार में पारंपरिक मणिपुरी मिठाइयों से कपड़े, गलीचे, टेराकोटा मिट्टी के बर्तन, और सर्टिफाइड हैडीक्राफ्ट्स आदि की खरीदारी कर सकता है. यहां कई दुकानदार तो तीन पीढ़ियों से दुकान चला रही हैं. यहां कोई भी महिला तब ही दुकान चला सकती है जिसकी शादी हो चुकी हो और उसे पहले से बाजार में मौजूद कोई सदस्य नॉमिनेट करे. इस तरह से इस महिला मार्केट के अपने कुछ नियम हैं जिन्हें महिलाएं ही तय करती हैं. 

पुरुष जंग पर गए तो महिलाओं ने संभाली कमान 
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 16वीं शताब्दी में, मणिपुर में एक लेबर सिस्टम एक्टिव था. जिसके तहत, मैती समुदाय (जो मणिपुर की लगभग 50% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है) के सभी पुरुष सदस्यों को मजबूरी में दूसरे देशों में काम करने या युद्ध लड़ने के लिए जाना पड़ता था. और गांवों में महिलाएं रह जाती थीं जिन्हें घर-परिवार संभालना था. अपना घर चलाने के लिए इन महिलाओं ने जिम्मेदारी की कमान अपने हाथों में ली - अपने धान के खेतों की खेती की, कपड़े बुने और उत्पाद बनाए जिन्हें उन्होंने तात्कालीन बाजारों में बेचा.  

इससे इमा कीथेल का जन्म हुआ. धीरे-धीरे इस जगह ने बड़े बाजार का रूप ले लिया जहां महिलाएं घरेलू वस्तुओं से लेकर हस्तशिल्प और वस्त्रों तक सब कुछ बेचती-खरीदती थीं. इन महिलाओं ने अपना बाजार के नियम खुद तय किए और आज भी यह बाजार इस बात का प्रमाण बनकर खड़ा है कि एक महिला के लिए कुछ भी असंभव नहीं है. हर दिन के बिजनेस ट्रेडिंग और एक्सचेंज से परे, इमा कीथेल की महिलाओं ने मणिपुर में सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 

महिला सशक्तिकरण का अनूठा प्रतीक 
CNN की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1891 में, महिलाओं के विरोध प्रदर्शन ने ब्रिटिश सरकार को अपने कुछ नियम व सुधारों को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया था. क्योंकि ये नियम महिला बाजार की बजाय बाहरी व्यवसाय को प्राथमिकता दे रहे थे. साल 1939 में, भारत के दूसरे हिस्सों में स्थानीय चावल निर्यात करने की ब्रिटिश नीति से नाराज होकर, महिलाओं ने अनिशुबा नुपिलन, या द्वितीय महिला युद्ध में सेना का सामना किया - और जीत हासिल की. 

यहां तक कि जब राज्य सरकार ने 2003 में बाजार की साइट पर एक शॉपिंग मॉल बनाने की योजना की घोषणा की, तो इन महिलाओं ने हफ्तों तक बड़े पैमाने पर हड़तालें कीं, जिससे अर्थव्यवस्था ठहर गई और स्थिति उलट गई. आज भी, महिलाएं किसी भी ऐसे नियम या पहल के विरोध में नियमित प्रदर्शन करती हैं जो बाजार के हित में न हो और उनके विरोध का स्थानीय चुनावों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है. आज यह बाजार लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण का एक अनूठा प्रतीक है. 

 

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