Classical Language Status: भारत सरकार ने देश की 5 भाषाओं को क्लासिकल लैंग्वैज की लिस्ट में शामिल किया है. केन्द्र सरकार ने बांग्ला, मराठी, असमिया, पालि और प्राकृत को क्लासिकल लैंग्वैज (Classical Language List) का स्टेटस दिया है.
इन पांच भाषाओं को क्लासिकल लैंग्वैज का स्टेटस देने का फैसला कैबिनेट मीटिंग में लिया गया. मीडिया में इसकी घोषणा सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने की. असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार जताया है.
क्लासिकल लैंग्वेज स्टेटस क्या होता है? शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा मिलने पर लैंग्वेज को क्या फायदा मिलता है? आइए इस बारे में जानते हैं.
प्राचीन भारत की लैंग्वेज पालि
कैबिनेट में 5 भाषाओं को क्लासिकल लैंग्वेज के रूप में मान्यता दी है. ये सभी भाषाएं इंडो-आर्यन फैमिली से ताल्लुक रखती हैं. इसमें से तीन लैंग्वेज मराठी, बांग्ला और असमिया भारत में बोली जाती है.
इन तीनों भाषाओं का ताल्लुक भारत के तीन राज्य बंगाल, महाराष्ट्र और असम है. इसके अलावा पालि और प्राकृत भाषा इंडिया की सबसे पुरानी लैंग्वेज में से एक हैं. पालि प्राचीन भारत की एक भाषा थी. इसे भारत की पहली भाषा भी माना जाता है. कहा जाता है पालि भाषा दक्षिण भारत से आई थी.
पालि भाषा का संबंध बौद्ध धर्म से हैं. इसे बौद्ध धर्म की भाषा के रूप में जाना जाता है. पालि लैंग्वेज में त्रिपिटिक समेत कई बौद्ध ग्रन्थ लिखे गए हैं. भगवान बुद्ध ने पालि भाषा में ही अपने उपदेश दिए. पालि भाषा दशकों तक भारत की साहित्यिक भाषा रही.
14वी शताब्दी में पाली लिटरेटर लैंग्वेज के रूप में समाप्त हो गई. कई सालों तक पालि बोल-चाल की भाषा बनी रहीं. आज भारत में कहीं भी पालि भाषा का इस्तेमाल नहीं होता है.
प्राकृत का इतिहास
प्राकृत भी एक इंडो-आर्यन परिवार की एक भाषा है. प्राकृत बोल चाल की भाषा थी. इसे आम लोग इस्तेमाल करते थे लेकिन प्राकृत ब्राह्मणों की भाषा नहीं रही है. प्राकृत भाषा का इस्तेमाल का समय 500 ई.पू. से 1000 ईस्वी तक माना जाता है.
कहा जाता है कि जब भारत में संस्कृत का इस्तेमाल कम होने लगा तो उसकी जगह प्राकृत भाषा ने ले ली. संस्कृत के मुकाबले प्राकृत भाषा काफी सरल है. प्राकृत जैन धर्म की भाषा मानी जाती है. प्राकृत लैंग्वेज में जैन धर्म के कई ग्रन्थ लिखे गए हैं.
प्राकृत भाषा में राजा हला ने गाथा सप्तशती लिखा था. इसके अलावा स्वप्न वासवदत्तम और मृच्छकटिक जैसे नाटक लिखे गए हैं. प्राकृत भाषा को 4 रूपों में बांटा गया है- अर्धमागधी प्राकृत, अद्ध मागधी, पौशाची प्राकृत और महाराष्ट्री प्राकृत.
क्लासिकल लैंग्वेज क्या है?
क्लासिकल लैंग्वेज भारत की प्राचीन भाषाएं होती हैं. ये भाषाएं ऐतिहासिक और कल्चरल अहमियत देती हैं. क्लासिकल लैंग्वेज की अपनी अलग परंपराएं होती हैं और इनका इतिहास भी काफी पुराना होता है.
साल 2004 में भारत की पुरानी भाषाओं को क्लासिकल लैंग्वेज का स्टेटस देने की शुरूआत की गई. किसी भी भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा देने के कुछ क्राइटेरिया होते हैं. इससे पहले 6 भाषाओं को क्लासिकल लैंग्वेज का स्टेटस मिल चुका है.
सबसे पहले साल 2004 में तमिल को क्लासिकल लैंग्वेज का स्टेटस दिया गया. 2005 में संस्कृत को क्लासिकल लैंग्वेज की लिस्ट में जोड़ा गया. 2008 में कन्नड़ और तेलुगु को इस लिस्ट में शामिल किया गया. बाद में मलयालम और उड़िया को क्लासिकल लैंग्वेज का स्टेटस दिया गया
क्या हैं क्राइटेरिया?
किसी भी भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज का स्टेटस देने के कुछ क्राइटेरिया तय किए गए हैं. उन्हीं को आधार बनाकर किसी भारतीय भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज का स्टेटस दिया जाता है.
कैसे मिलता है ये?
किसी भी भारतीय भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा देने की एक प्रक्रिया होती है. सबसे पहले संस्कृत मंत्रालय की लैंग्वेज साइंस एक्सपर्ट कमेटी इसकी सिफारिश करती है. इस समिति में मंत्रालयों के कुछ प्रतिनिधि होते हैं. साथ में 4-5 लैंग्वेज एक्सपर्ट होते हैं. इस कमेटी की अध्यक्षता साहित्य अकेडमी के अध्यक्ष करते हैं.
कमेटी भारतीय भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज का स्टेटस देने की सिफारिश करती है. इसके बाद भारत सरकार की कैबिनेट की बैठक में इस पर फैसला लिया जाता है. कैबिनेट की मंजूरी के बाद भाषा को क्लासिकल स्टेटस मिल जाता है.
क्या होगा फायदा?
क्लासिकल लैंग्वेज का स्टेटस मिलने से भारतीय भाषा को फायदा मिलता है. इन भाषाओं को ऐतिहासिक मान्यता दी जाती है. इनकी पहचान के लिए अधिक बढ़ावा दिया जाता है.