मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा ने बुधवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें भारतीय वायु सेना स्टेशन, हलवारा, लुधियाना में बनने वाले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम शहीद करतार सिंह सराभा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रूप में रखने के लिए केंद्र से अनुरोध किया गया.
अब सवाल यह है कि आखिर शहीद करतार सिंह सराभा हैं कौन? बहुत ही कम लोग भारत मां के इस सच्चे सपूत के बारे में जानते होंगे. भारत मां की आजादी के लिए अपनी जान देने वाले इस बेटे के बारे में इतिहास की किताबों में शायद आपको ज्यादा कुछ न मिले. लेकिन देश की मिट्टी में इस शहीद की महक आज भी है.
करतार सिंह सराभा एक महान भारतीय क्रांतिकारी थे. सबसे दिलचस्प बात है कि हम सबके हीरो, शहीद भगत सिंह उन्हें अपना हीरो, अपना दोस्त और गुरु मानते थे. जी हां, करतार सिंह सराभा की कुर्बानी ने ही भगत सिंह को देश के लिए मर-मिटने की प्रेरणा दी.
आज 23 मार्च यानी कि शहीद दिवस के मौके पर हम आपको बता रहे हैं भारत मां के बेटे शहीद करतार सिंह सराभा के बारे में.
पढ़ाई के लिए गए थे अमेरिका
करतार सिंह का जन्म 24 मई 1896 को पंजाब में स्थित सराभा गांव में हुआ था. वह एक सिख परिवार में पैदा हुए इकलौते बेटे थे. वह बहुत छोटे थे जब पिता का साया उनके सिर से उठ गया और उनके दादा ने उनका पालन-पोषण किया. करतार सिंह सराभा जिस अविभाजित पंजाब में पैदा हुए थे, वह गंभीर सूखे से बर्बाद हो गया था.
ऐसे में, काम की तलाश में पंजाबियों ने कनाडा और अमेरिका जैसी जगहों की ओर पलायन करना शुरू कर दिया. 20वीं सदी के पहले दशक तक हजारों पंजाबी इन देशों में चले गए थे. जुलाई 1912 में, सराभा कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में अपनी उच्च शिक्षा के लिए सैन फ्रांसिस्को पहुंचे. हालांकि, कैलिफोर्निया में उनके अनुभवों ने उनके भविष्य की दिशा बदल दी.
परदेश में समझ आए देश के गुलाम होने के मायने
अमेरिका में माइग्रेंट्स और खासकर कि ब्रिटिश राज में गुलाम देशों से आने वाले लोगों के प्रति अमेरिकियों की नफरत जाहिर थी. सराभा भी वहां पर कई अन्य अप्रवासी भारतीयों की तरह कैलिफोर्निया में एक मजदूर के रूप में काम करते थे. और यहां पर उन्होंने गुलाम देश से होने के कारण अपमान झेला और इसके बाद उनके भविष्य की दिशा बदल गई.
अमेरिका में भारतीय अक्सर अपनी समस्याओं पर चर्चा करने और अपने दुखों को साझा करने के लिए एक साथ आते थे. ऐसे संघों और विचार विमर्श के माध्यम से सराभा भारत से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने की दिशा में काम करने लगे. साल 1913 में ओरेगॉन में गदर पार्टी की स्थापना हुई. यह भारतीयों का एक संगठन था जो सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंक कर अपने लोगों की गरिमा को बहाल करना चाहता था. संगठन का मुख्यालय सैन फ्रांसिस्को में था और सराभा सहित बहुत से भारतीय इसका हिस्सा थे.
देश के लिए लौट आए वापस
जुलाई 1914 में, जब प्रथम विश्व युद्ध के कारण यूरोप बेहाल था तब इन क्रांतिकारियों को अंग्रेजों पर हमला करने के एक अवसर दिखा. उन्होंने अमेरिका में संगठित गदर पार्टी के लोगों को भारत ले जाने की योजना बनाई. करतार सिंह उन क्रांतिकारियों में से एक थे जो 1914 के अंत में भारत लौट आए थे. उनमें से कई को ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके आने पर गिरफ्तार कर लिया था.
लेकिन करतार सिंह, और रास बिहारी बोस जैसे लोगों ने पंजाब में छावनियों को फ़िल्टर करके अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय सैनिकों को संगठित करने का काम किया. हालांकि, इससे पहले कि ग़दर पार्टी के लोग विद्रोह कर पाते, अंग्रेजों ने कार्यकर्ताओं पर शिकंजा कस दिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
करतार सिंह ने नहीं मांगी थी मांफी
गदर पार्टी के लोगों पर अंग्रेजों ने लाहौर षडयंत्र केस चलाया. इन गिरफ्तार लोगों में करतार सिंह सराभा भी शामिल थे. उनके पास से दो किताबें बरामद हुई थीं. उस समय करतार की उम्र मात्र साढ़े 18 साल थी. कोर्ट में करतार सिंह पर दवाब बनाया गया कि वे अंग्रेजों से माफी मांग लें लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. बलेकि उन्होंने गर्व से जज से कहा कि उन्हें मौत की सजा से डर नहीं लगता है. वह अपने लिए कारावास से बेहतर मौत चुनेंगे ताकि एक बार फिर जन्म लेकर अपने देश की आजादी के लिए लड़ सकें.
बताया जाता है कि उस समय जज ने कहा कि वह सभी क्रांतिकारियों में सबसे ज्यादा खतरनाक हैं और ब्रिटिश शासन के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं. इसलिए करतार को मौत की सजा सुनाई गई. वह सिर्फ 19 साल के थे जब उन्हें उनके हमवतन विष्णु गणेश पिंगले के साथ 16 नवंबर 1915 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई थी. करतार सिंह शहादत के प्रतीक बन गए और भगत सिंह जैसे युवाओं को उन्होंने ही क्रांति के लिए प्रेरित करते रहे.